सरकार से अलग राय और असहमति रखना देशद्रोह नहीं- सुप्रीम कोर्ट
नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC) प्रमुख फारूक अब्दुल्ला के खिलाफ दायर की गई एक याचिका को खारिज करते हुए आज सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकार से अलग राय रखना और उससे असहमति जताना देशद्रोह नहीं है। याचिका में अब्दुल्ला पर जम्मू-कश्मीर में फिर से अनुच्छेद 370 लागू कराने के लिए चीन और पाकिस्तान से मदद मांगने का आरोप लगाया गया था। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि याचिकाकर्ता अपने इन आरोपों को साबित करने में नाकाम रहा।
फारूक अब्दुल्ला के किस बयान पर विवाद?
पिछले साल अक्टूबर में इंडिया टुडे से बात करते हुए फारूक अब्दुल्ला ने चीन की मदद से अनुच्छेद 370 फिर से लागू होने की उम्मीद जताई थी। उन्होंने कहा था, "वो (चीन) लद्दाख में LAC पर जो भी कर रहे हैं, यह सब अनुच्छेद 370 के रद्द होने के कारण हो रहा है, जिसे उन्होंने कभी स्वीकार नहीं किया। मुझे उम्मीद है कि उनके सहयोग से जम्मू-कश्मीर में फिर से अनुच्छेद 370 लागू किया जाएगा।"
याचिकर्ताओं ने कहा- अब्दुल्ला का बयान देश-विरोधी
याचिकाकर्ताओं रजत शर्मा और नेह श्रीवास्तव ने अब्दुल्ला के इसी बयान पर आपत्ति जताई थी और सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर उससे अब्दुल्ला के खिलाफ देशद्रोह की कार्रवाई करने का अनुरोध किया था। याचिका में कहा गया था कि अब्दुल्ला का यह बयान कि वो अनुच्छेद 370 को फिर से लागू कर देंगे देश-विरोधी है और देशद्रोह के समान है क्योंकि यह आदेश संसद ने बहुमत से पारित किया था।
याचिका में किया गया था अब्दुल्ला की संसद की सदस्यता रद्द करने का अनुरोध
याचिका में अब्दुल्ला की संसद की सदस्यता रद्द करने का अनुरोध भी किया गया था। याचिकाकर्ताओं ने कहा था, "अब्दुल्ला के खिलाफ ना केवल गृह मंत्रालय को कानूनी कार्रवाई करनी चाहिए बल्कि उनकी संसद की सदस्यता भी रद्द की जाए। अगर उनको संसद सदस्य के तौर पर जारी रखा जाता है तो इसका अर्थ है कि भारत में देश-विरोधी गतिविधियों को स्वीकार किया जा रहा है और ये देश की एकता को नुकसान पहुंचाएगा।'
सुप्रीम कोर्ट ने कहा- आरोपों को साबित करने में नाकाम रहे याचिकाकर्ता
हालांकि जस्टिस संजय कौल और जस्टिस हेमंत गुप्ता की सुप्रीम कोर्ट बेंच को ये दलीलें पसंद नहीं आईं और उन्होंने याचिका को खारिज कर दिया। अपने आदेश में उन्होंने कहा, "सरकार की राय से अलग और विरोधी विचारों को व्यक्त करने को देशद्रोह नहीं कहा जा सकता।" उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता अब्दुल्ला के भारत के खिलाफ चीन और पाकिस्तान से मदद लेने के आरोपों को साबित करने में नाकाम रहे। इसके लिए उन पर 50,000 रुपये जुर्माना लगाया गया है।
हालिया समय में सरकार के कई आलोचकों पर किए गए हैं देशद्रोह के मुकदमे
बता दें कि देशद्रोह पर सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला ऐसे समय पर आया है जब हालिया समय में देश में देशद्रोह के मुकदमों की भरमार देखने को मिली है और सरकार के कई आलोचकों पर देशद्रोह के मुकदमे दर्ज किए गए हैं।