किसानों को कानूनों की खामियां पता नहीं, दूसरों के कहने पर कर रहे आंदोलन- हेमा मालिनी
क्या है खबर?
बॉलीवुड अदाकारा और उत्तर प्रदेश के मथुरा से भाजपा सांसद हेमा मालिनी ने कहा है कि आंदोलनकारी किसानों को ये नहीं पता है कि कृषि कानूनों में क्या दिक्कत है और वे किसी और के कहने पर धरने पर बैठे हुए हैं।
कृषि कानूनों के अमल पर रोक लगाने के सुप्रीम कोर्ट के अहम फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए उन्होंने ये बात कही। कोर्ट के फैसले पर उन्होंने कहा कि माहौल शांत करने के लिए ये जरूरी था।
बयान
क्या बोलीं हेमा मालिनी?
समाचार एजेंसी ANI के साथ बातचीत में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर खुशी जाहिर करते हुए हेमा मालिनी ने कहा, "बहुत अच्छा हुआ है क्योंकि कई दिनों से ये आंदोलन चढ़ता और बढ़ता ही जा रहा था। लेकिन अभी सुप्रीम कोर्ट ने उस (कानूनों) पर रोक लगाई है, जरूरी था ताकि कुछ शांत हो जाए क्योंकि जब भी किसान बात करने को आते हैं तो बराबर मानने को तैयार नहीं है।"
आरोप
किसानों को नहीं पता उन्हें क्या चाहिए- हेमा मालिनी
हेमा मालिनी ने आगे कहा, "उनको (किसानों को) ये भी मालूम नहीं है कि उन्हें क्या चाहिए। इस बिल में समस्या क्या है, ये भी वो समझ नहीं रहे हैं। इसका मतलब है कि किसी के कहने पर ये लोग (आंदोलन) कर रहे हैं न। अपने आप से नहीं कर रहे हैं।"
पंजाब में आंदोलन के दौरान मोबाइल टॉवर तोड़े जाने की घटना पर उन्होंने कहा, "कितना नुकसान कराया पूरे पंजाब में। यह देखकर बड़ा खराब लगा।"
बयान
"सरकार लगातार पूछ रही समस्या, किसानों के पास कोई मुद्दा नहीं"
अपने बयान के अंत में हेमा मालिनी ने कहा कि भाजपा सरकार हमेशा से किसानों को बातचीत के लिए बुला रही है और उनसे उनकी समस्याएं पूछ रही है, लेकिन किसानों के पास कोई मुद्दा ही नहीं है।
मथुरा के किसानों के आंदोलन में शामिल न होने का दावा करते हुए उन्होंने कहा, "मुझे बहुत खुशी है कि हमारे ब्रज के जितने किसान हैं, उन्होंने मेरे पास कोई शिकायत नहीं की है।"
फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने अगले आदेश तक लगाई है कानूनों पर रोक, समिति भी बनाई
बता दें कि मंगलवार को कृषि कानूनों पर अहम फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अगले आदेश तक इनके अमल पर रोक लगा दी थी। इसके अलावा कोर्ट ने जमीनी स्थिति जानने के लिए एक चार सदस्यीय समिति भी बनाई है और सभी पक्षों को इसके पास जाकर अपनी दलीलें रखनी होंगी।
हालांकि इस समिति के चारों सदस्य अतीत में खुलकर कृषि कानूनों का समर्थन कर चुके हैं और इस कारण अहम किसान संगठन इसके सामने पेश नहीं होंगे।
पृष्ठभूमि
क्या है कृषि कानूनों का पूरा मुद्दा?
दरअसल, मोदी सरकार कृषि क्षेत्र में सुधार के लिए तीन कानून लेकर लाई है।
इनमें सरकारी मंडियों के बाहर खरीद के लिए व्यापारिक इलाके बनाने, अनुबंध खेती को मंजूरी देने और कई अनाजों और दालों की भंडारण सीमा खत्म करने समेत कई प्रावधान किए गए हैं।
पंजाब और हरियाणा समेत कई राज्यों के किसान इन कानूनों का विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि इनके जरिये सरकार मंडियों और MSP से छुटकारा पाना चाहती है।
बातचीत
असफल रही है किसानों और सरकार के बीच आठ दौर की बातचीत
इस गतिरोध को तोड़ने के लिए केंद्र सरकार और किसानों के बीच आठ दौर की बातचीत भी हो चुकी है, हालांकि इनमें कोई समाधान नहीं निकला है।
8 जनवरी को हुई पिछली बातचीत में सरकार ने साफ कर दिया कि वह कानूनों को वापस नहीं लेगी और किसान चाहें तो सुप्रीम कोर्ट जा सकते हैं।
किसान भी अपनी मांग से पीछे हटने को तैयार नहीं हैं और उन्हें कानूनों की वापसी से कम कुछ भी मंजूर नहीं है।