गरीब बच्चों को गैजेट और इंटरनेट पैक मुहैया कराएं सभी स्कूल- दिल्ली हाई कोर्ट
दिल्ली हाई कोर्ट ने सभी निजी और सरकारी स्कूलों को गरीब बच्चों को ऑनलाइन क्लासेस लगाने के लिए गैजेट और इंटरनेट पैक मुहैया कराने का आदेश दिया है। कोर्ट ने कहा कि गैजेट और डिवाइस न होने के कारण एक ही क्लास के बच्चों को अलग करना उनमें हीनता की भावना पैदा करेगा जो उनके दिल और दिमाग पर ऐसा असर डाल सकती है, जिसे भविष्य में कभी दूर नहीं किया जा सकता।
छात्रों को पढ़ाई में अलग-अलग करना RTE का उल्लंघन- हाई कोर्ट
जस्टिस मनमोहन और संजीव नरूला की बेंच ने कहा कि अगर स्कूल ऑनलाइन क्लासेस का आयोजन कर रहे हैं तो यह सुनिश्चित करना होगा कि आर्थिक रूप से कमजोर और वंचित वर्ग के छात्रों को भी उन क्लासों की एक्सेस हो। कोर्ट ने कहा कि पढ़ाई में अलग-अलग करना शिक्षा का अधिकार (RTE) कानून का उल्लंघन है। ऐसे छात्रों को जरूरी डिवाइस न देकर निजी स्कूल उन पर आर्थिक बोझ डाल रहे हैं, जिससे वो पढ़ाई नहीं कर पा रहे।
आर्थिक कमजोरी नहीं बन सकती पढ़ाई में बाधा
बेंच ने कहा कि RTE कानून में प्रावधान किया गया है कि निजी स्कूल कमजोर वर्गों के 25 प्रतिशत छात्रों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा देंगे। इसका मतलब यह होगा कि उनकी पढ़ाई में आर्थिक कमजोरी बाधा नहीं बन सकती। बेंच ने गैर सहायता प्राप्त स्कूलों को निर्देश देते हुए कहा कि ये स्कूल RTE कानून 2009 के तहत छात्रों को ऐसी सुविधाएं मुहैया कराने के बदले राज्य से इसकी भरपाई की कीमत मांग सकते हैं।
कोर्ट ने तीन सदस्यीय समिति बनाने का दिया आदेश
कोर्ट ने 94 पेज के आदेश में कहा कि हालांकि राज्य भी अभी अपने छात्रों को ये सुविधाएं मुहैया नहीं करा रहे हैं। बेंच ने इस मामले में तीन सदस्यीय समिति बनाने का निर्देश दिया है, जिसमें केंद्र से शिक्षा सचिव, दिल्ली सरकार के शिक्षा सचिव या दोनों की ओर से उनके कोई मनोनीत प्रतिनिधि और निजी स्कूलों के प्रतिनिधि शामिल हों। यह इस प्रक्रिया के लिए जरूरी मानकों की पहचान कर गरीब और वंचित बच्चों को सुविधा मुहैया कराएगी।
PIL पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने दिया फैसला
यह फैसला 'जस्टिस फॉर ऑल' NGO की तरफ से दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई के बाद आया है। NGO की तरफ से अधिवक्ता खगेश झा ने याचिका दायर कर अदालत से केंद्र और दिल्ली सरकार को गरीब बच्चों को मुफ्त में लैपटॉप या मोबाइल फोन देने के आदेश देने की मांग की थी। याचिकाकर्ता की दलील थी कि इन डिवाइस के न होने के कारण आर्थिक रूप से कमजोर बच्चे ऑनलाइन क्लासेस नहीं लगा पा रहे हैं।