कर्नाटक: सरकारी स्कूल के मिड-डे मील में मिली मरी हुई छिपकली, 80 बच्चे बीमार
कर्नाटक के एक सरकारी स्कूल में मिड-डे मील में तैयार किए गए सांभर को खाकर 80 बच्चे बीमार पड़ गए। सांभर में मरी हुई छिपकली पाई गई। सभी 80 बच्चों को नजदीकी रानीबेन्नूर कस्बे के सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया गया। जिला प्रशासन ने लापरवाही बरतने को लेकर स्कूल प्रशासन के खिलाफ कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं। घटना कर्नाटक के हावेरी जिले के वेंकटपुरा टांडा गांव के राजकीय प्राथमिक विद्यालय की है।
दो बच्चों की हालत नाजुक- सूत्र
शिक्षा विभाग के सूत्रों के मुताबिक, दो बच्चों की हालत नाजुक बताई जा रही है। बाकी 78 बच्चे प्राथमिक उपचार के बाद ठीक हो गए हैं। द न्यूज़ मिनट के अनुसार, प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया, "स्कूल में मिड-डे मील में एक बच्चे को परोसे गए सांभर में मरी हुई छिपकली पाई गई थी। बच्चे ने छिपकली देखते हुए दूसरे बच्चों को यह बात बताई और उल्टी करना शुरू कर दिया। कुछ ही देर में दूसरे बच्चे भी बीमार पड़ने लगे।"
मिड-डे मील में पहले भी दिया जा चुका है दूषित खाना
सरकारी स्कूलों में मिलने वाले मिड-डे में पहले भी मरी हुई छिपकली और चूहे मिल चुके हैं। देश के अलग-अलग राज्यों से मिड-डे मील में दूषित खाना मिलने की खबरें सामने आती रहती हैं। कुछ दिन पहले तमिलनाडु के एक सरकारी स्कूल में बच्चों को सड़े हुए अंडे दिए गए थे, जिनमें कीड़े तक पड़ चुके थे। मिड-डे मील योजना के तहत आंगनबाड़ी के बच्चों को यह अंडे बांटे गए थे।
2013 में बिहार में मिड-डे मील खाकर 23 बच्चों की हुई थी मौत
2013 में बिहार के छपरा जिले में सरकारी स्कूल में मिड-डे मील खाने से 23 बच्चों की जान चली गई थी। इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक, "मिड-डे मील खाने के आधे घंटे बाद बच्चों को पेट दर्द और उल्टियां होने लगीं। कुछ बीमार बच्चों को घर भेज दिया था, जबकि 16 बच्चों की स्कूल में ही मौत हो गई। चार बच्चों को अस्पताल पहुंचने पर मृत घोषित कर दिया गया और अन्य बच्चों की अस्पताल में जान चली गई।"
कब हुई थी मिड-डे मील की शुरुआत?
मिड-डे मील योजना की शुरुआत 15 अगस्त 1995 को हुई थी। इसके अंतर्गत सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले कक्षा एक से लेकर पांच तक के विद्यार्थियों को हर महीने तीन किलो चावल या गेंहू दिया जाना था। 2001 में सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के बाद 2004 से सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में बच्चों को पका पकाया भोजन देने की शुरुआत हुई। इस योजना का उद्देश्य बच्चों को पढ़ने के लिए स्कूल बुलाना और उन्हें पौष्टिक आहार उपलब्ध कराना था।