कृषि कानून: CJI बोबड़े ने किया समिति का बचाव, कहा- बदल सकते हैं विचार
कृषि कानूनों के संदर्भ में बनाई गई समिति के सभी सदस्यों के पहले से ही इन कानूनों के समर्थन में होने के मामले में अपना बचाव करते हुए मुख्य न्यायाधीश (CJI) एसए बोबडे ने कहा कि किसी के विचार उन्हें अयोग्य करार देने का आधार नहीं बन सकते और विचार बदल भी सकते हैं। उन्होंने कहा कि समिति के गठन को लेकर लोगों की समझ में कमी है और समिति के सदस्य जज नहीं होते हैं।
क्या है पूरा मामला?
12 जनवरी को कृषि कानूनों पर रोक लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मामले की जमीनी जानकारी के लिए एक चार सदस्यीय समिति का गठन किया था और सभी पक्षों को इस समिति के सामने अपनी दलीलें रखनी थीं। हालांकि इस समिति के सभी सदस्य कभी न कभी कृषि कानूनों के समर्थन में अपना पक्ष रख चुके थे और इसलिए उन्हें समिति में जगह दिए जाने पर किसान संगठनों ने सवाल उठाए थे।
CJI बोले- मुद्दे पर राय वाला व्यक्ति भी बन सकता है समिति का सदस्य
अब आज एक अन्य मामले की सुनवाई के दौरान CJI बोबड़े ने कहा, "कानून की समझ में कुछ भ्रम है। समिति का सदस्य बनने से पहले किसी व्यक्ति की एक राय हो सकती है और उसकी राय बदल भी सकती है। ऐसा कुछ नहीं है कि ऐसा व्यक्ति समिति का सदस्य नहीं बन सकता। सिर्फ इसलिए क्योंकि एक व्यक्ति ने मामले पर अपने विचार व्यक्त किए हैं, यह उसे अयोग्य करार देने का आधार नहीं बन सकता।"
समिति के गठन के बारे में समझ की कमी- CJI
CJI बोबड़े ने अपनी टिप्पणी में आगे कहा, "आमतौर पर एक समिति के गठन के बारे में समझ की कमी है। वे (समिति के सदस्य) जज नहीं होते हैं।"
इन चार सदस्यों को दी गई है समिति में जगह, एक ने लिया नाम वापस
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने अपनी चार सदस्यीय में जिन लोगों को जगह दी है, उनमें भारतीय किसान यूनियन (BKU) के अध्यक्ष भूपेंदर सिंह मान, अंतरराष्ट्रीय नीति प्रमुख डॉ प्रमोद कुमार जोशी, कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी और महाराष्ट्र के शिवकेरी संगठन के अनिल धनवट शामिल हैं। इनमें से भूपेंदर सिंह मान यह कहते हुए समिति से अपना नाम वापस ले चुके हैं कि वह किसानों और पंजाब के हितों के कोई भी पद कुर्बान करने को तैयार हैं।
सुप्रीम कोर्ट से किया गया है समिति के पुनर्गठन का अनुरोध
इस विवाद के बीच भारतीय किसान यूनियन (लोक शक्ति) नामक किसान संगठन ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करते हुए उससे समिति के पुनर्गठन का अनुरोध किया है। संगठन ने अपनी याचिका में सवाल किया है कि ये समिति बिना किसी पक्षपात के रिपोर्ट कैसे सौंपेंगे, जब इसके सदस्य पहले ही सरकार के इन कृषि कानूनों का समर्थन कर चुके हैं। हालांकि धनवट ने कहा है कि समिति के सदस्य अपनी राय को अलग रखकर रिपोर्ट बनाएंगे।
क्या है कृषि कानूनों का पूरा मुद्दा?
मोदी सरकार कृषि क्षेत्र में सुधार के लिए तीन कानून लेकर लाई है। इनमें सरकारी मंडियों के बाहर खरीद के लिए व्यापारिक इलाके बनाने, अनुबंध खेती को मंजूरी देने और कई अनाजों और दालों की भंडारण सीमा खत्म करने समेत कई प्रावधान किए गए हैं। पंजाब और हरियाणा समेत कई राज्यों के किसान इन कानूनों का विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि इनके जरिये सरकार मंडियों और MSP से छुटकारा पाना चाहती है।