कलकत्ता हाई कोर्ट की दहेज कानून के दुरुपयोग पर सख्त टिप्पणी, कहा- फैल रहा कानूनी आतंकवाद
कलकत्ता हाई कोर्ट ने सोमवार को कहा कि कुछ महिलाओं ने दहेज प्रथा के खिलाफ बनाए गए कानून का दुरुपयोग करके 'कानूनी आतंकवाद' को बढ़ावा दिया है। हाई कोर्ट ने कहा कि यह कानून महिलाओं के हितों की रक्षा के लिए लाया गया था, लेकिन अब इसका इस्तेमाल झूठे मामले दर्ज करवाने में किया जा रहा है। कोर्ट ने यह टिप्पणी दहेज के मामले का सामना कर रहे एक व्यक्ति और उसके परिवार की याचिका पर की है।
क्या है पूरा मामला?
पीड़ित व्यक्ति ने उससे अलग हो चुकी पत्नी के खिलाफ हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। पत्नी ने उसके और परिवार के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज करवाए थे। पत्नी ने अक्टूबर, 2017 में याचिकाकर्ता पर दहेज मांगने का आरोप लगाते हुए घरेलू हिंसा और मानसिक उत्पीड़न का केस दर्ज करवाया था। इसके बाद दिसंबर, 2017 में पत्नी ने व्यक्ति के परिवार पर भी शारीरिक और मानसिक तौर पर प्रताड़ित करने का केस दर्ज करवाया था।
सिर्फ शिकायत के आधार पर साबित नहीं हो सकते आरोप- हाई कोर्ट
कोर्ट ने कहा, "दहेज को समाज से खत्म करने के लिए भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498A का प्रावधान लागू किया गया है, लेकिन कई मामलों में यह देखा गया है कि इस प्रावधान का दुरुपयोग कर एक नए कानूनी आतंकवाद को फैलाया जा रहा है।" कोर्ट ने आगे कहा कि धारा 498A के तहत सुरक्षा की परिभाषा में उल्लेखित उत्पीड़न और यातना के आरोपों को केवल शिकायतकर्ता के बयान के आधार पर सही नहीं माना जा सकता।
हाई कोर्ट ने और क्या कहा?
हाई कोर्ट के जस्टिस सुभेंदु सामंत ने सुनवाई के दौरान कहा, "याचिकाकर्ता के खिलाफ लगाया गया सीधा आरोप केवल वास्तविक शिकायतकर्ता के बयान के आधार पर है। शिकायत के समर्थन में किसी प्रकार के दस्तावेज या मेडिकल साक्ष्य नहीं दिए गए। यह कार्यवाही केवल व्यक्तिगत द्वेष को पूरा करने के लिए शुरू की गई थी।" कोर्ट ने इस तथ्य को आधार बनाते हुए याचिकाकर्ता पति और उसके परिवार के खिलाफ चल रही आपराधिक कार्रवाई को खारिज कर दिया।
याचिका में क्या कहा गया था?
याचिकाकर्ता पति ने कहा था कि उसके और परिवार शुरू की गई आपराधिक कार्यवाही द्वेषपूर्ण है और ये बदला लेने के उद्देश्य से की गई है। उन्होंने याचिका में कहा था कि उसकी पत्नी शादी के बाद से कभी भी अपने ससुरालवालों के साथ नहीं रही और शारीरिक उत्पीड़न का सवाल नहीं उठता। पति ने कहा था कि 2018 में तलाक के लिए अर्जी देने पर निचली अदालत ने उसकी पत्नी के पक्ष में एकतरफा फैसला सुना दिया था।
न्यूजबाइट्स प्लस
भारत में दहेज निषेध अधिनियम, 1961 के अनुसार दहेज लेना या देना कानूनी अपराध है। दहेज की लेन-देन में शमिल लोगों को आरोप सिद्ध होने पर 5 वर्ष जेल की सजा के साथ-साथ 15,000 रुपये के जुर्माने का प्रावधान है। इसके साथ ही दहेज के लिए मारपीट करने या शारीरिक उत्पीड़न करने पर IPC की धारा 498A के तहत 3 वर्ष तक की जेल और जुर्माना लगाए जाने का प्रावधान है।