असम: कृषि कानूनों की वापसी ने CAA विरोधी आंदोलन में फूंकी जान, 12 दिसंबर को प्रदर्शन
कृषि कानूनों को वापस लेने के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के फैसले ने असम में नागरिकता संशोधन कानून (CAA) विरोधी आंदोलन को फिर से जिंदा कर दिया है। कुछ संगठनों ने 12 दिसंबर को राज्य में एक बड़ा प्रदर्शन बुलाया है और केंद्र से इस कानून को निरस्त करने की मांग की है। इन संगठनों में ऑल असम स्टूटेंड्स यूनियन (AASU), अखिल गोगोई के नेतृत्व वाली कृषक मुक्ति संग्राम समिति (KMSS) और असम जातीय परिषद शामिल हैं।
CAA विरोधी बोले- हमें किसानों से सीखने की जरूरत
AASU के सलाहकार समुज्जल भट्टाचार्य ने इस बारे में बात करते हुए कहा कि किसानों की दृढ़ता CAA विरोधी आंदोलनकारियों के लिए एक सीख है। उन्होंने कहा, "हमें केंद्र को CAA निरस्त करने पर मजबूर करना होगा। यह पूर्वोत्तर में स्थानीय समुदायों की पहचान के लिए एक गंभीर खतरा है और संविधान के खिलाफ है।" अखिल गोगोई ने भी किसानों के साहस की तारीफ करते हुए सभी संगठनों से CAA विरोधी प्रदर्शनों को फिर से शुरू करने की अपील की।
जमात-ए-उलेमा-ए-हिंद और अमरोहा के सांसद ने भी की CAA निरस्त करने की मांग
असम के इन संगठनों के अलावा अन्य कुछ संगठनों ने भी CAA को निरस्त करने की मांग की है। इन संगठनों में मुस्लिम संगठन जमात-ए-उलेमा-ए-हिंद भी शामिल है। इसके अलावा उत्तर प्रदेश के अमरोहा से सांसद दानिश अली ने भी ये मांग की है।
केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्री बोले- सांप्रदायिक राजनीति शुरू हुई
इन मांगों पर प्रतिक्रिया देते हुए केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा, "मामले पर सांप्रदायिक राजनीति शुरू हो गई है। CAA का भारतीयों से नागरिकता वापस लेने से कोई संबंध नहीं है और ये पड़ोसी देशों के सताए हुए अल्पसंख्यकों को नागरिकता प्रदान करने के लिए है।" उन्होंने कहा कि CAA निरस्त करने की मांग करने वालों को पता है कि ये पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के हिंदू, सिख और अन्य अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने के लिए है।
क्या है CAA?
CAA में पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में धार्मिक अत्याचार का सामना करने वाले हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धर्म के लोगों को आसानी से भारतीय नागरिकता देने की व्यवस्था की गई है। कानून में 31 दिसंबर, 2014 तक भारत आ चुके इन धर्म के लोगों को तुरंत भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान किया गया है। इसके बाद आने वाले लोगों को छह साल भारत में रहने के बाद नागरिकता दे दी जाएगी।
कानून के खिलाफ सड़कों पर उतर आए थे करोड़ों लोग
भारतीय संविधान की धर्मनिरपेक्षता और धर्म के आधार पर भेदभाव न करने की अवधारणा के खिलाफ पहली बार नागरिकता को धर्म से जोड़ने और मुस्लिम समुदाय के लोगों को इससे बाहर रखने के कारण CAA का जमकर विरोध हुआ था। इसके खिलाफ देशभर में करोड़ों लोग सड़क पर उतर आए थे और सरकार को कई बार इस पर सफाई देनी पड़ी थी। अभी तक इस कानून के नियम तय नहीं हुए हैं और इसकी प्रक्रिया जारी है।
असम में थोड़ा हटकर था CAA के विरोध का कारण
असम और अन्य पूर्वोत्तर राज्यों में इस कानून के विरोध का कारण थोड़ा हटकर था और यहां धर्म की बजाय भाषा इसके विरोध का आधार था। दरअसल, असम के लोग बांग्लादेश से आने वाले और बंगाली बोलने वाले हिंदू और मुस्लिम दोनों को ही राज्य में जगह नहीं देना चाहते। ये कानून असम समझौते का उल्लंघन भी करता है जिसमें 25 मार्च, 1971 के बाद अवैध तरीके से असम में घुसने वाले लोगों को बाहर निकालने का प्रावधान है।