CAA के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचा UN का संगठन, भारत ने कहा- हमारा आंतरिक मसला
क्या है खबर?
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UNHRC) विवादित नागरिकता कानून (CAA) के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। कोर्ट में आवेदन दाखिल करते हुए UNHRC ने इस कानून की खिलाफत की है और इसे भेदभावपूर्ण बताया है।
UNHRC के इस आवेदन पर प्रतिक्रिया देते हुए विदेश मंत्रालय ने इसे भारत का आंतरिक मामला बताया है। मंत्रालय का कहना है कि किसी भी विदेशी संस्था को इस मामले में दखल देने का कोई अधिकार नहीं है।
नागरिकता कानून
क्या है नागरिकता कानून?
पिछले साल दिसंबर में संसद में पारित हुए CAA में पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से भारत आने वाले हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धर्म के लोगों को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान किया गया है।
31 दिसंबर, 2014 से पहले भारत इन तीन देशों से भारत आने वाले इन छह धार्मिक समुदायों के लोगों को तत्काल भारतीय नागरिकता दे दी जाएगी।
वहीं उसके बाद आने वालों को छह साल भारत में रहने के बाद नागरिकता दी जाएगी।
विरोध
इसलिए हो रहा है CAA का विरोध
मुस्लिम समुदाय को इसके दायरे से बाहर रखे जाने के कारण CAA का विरोध हो रहा है और इसे भारत के धर्मनिरपेक्ष चरित्र के खिलाफ बताया जा रहा है।
इसकी संवैधानिक को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं भी दाखिल की गई हैं और पांच सदस्यीय संवैधानिक बेंच इस पर सुनवाई कर रही है।
UNHRC ने आज इसी मामले में सुप्रीम कोर्ट में 12 पेज का आवेदन दाखिल CAA को भेदभाव करने वाला कानून बताया है।
जानकारी
UNHRC ने लिखा- समानता के अधिका पर खरा नहीं उतरता CAA
CAA की आलोचना करते हुए UNHRC ने लिखा है कि ये समानता के अधिकार की कसौटी पर खरा नहीं उतरता और मुस्लिम आप्रवासियों को जोखिम में डालता है। आवेदन के अनुसार, CAA मानवाधिकारों के प्रति भारत की जिम्मेदारी और अंतरराष्ट्रीय वचनों पर सवाल उठाता है।
प्रतिक्रिया
विदेश मंत्रालय ने कहा- कानून बनाना भारत का संप्रभु अधिकार
लेकिन UNHRC का ये आवेदन भारत सरकार के गले नहीं उतरा है और उसने इस पर सख्त आपत्ति जताई है।
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने मामले पर बयान जारी करते हुए कहा, "CAA भारत का आंतरिक मसला है और कानून बनाने के भारतीय संसद के संप्रभु अधिकार के तहत आता है। हमारा मानना है कि किसी भी विदेशी पक्ष के पास भारत की संप्रभुता से संबंधित मामलों में दखल देने का कोई अधिकार नहीं है।"
बयान
रवीश कुमार बोले- CAA संवैधानिक रूप से वैध
CAA को संवैधानिक रूप से वैध बताते हुए रवीश कुमार ने कहा, "CAA संवैधानिक रूप से वैध है और हमारे संवैधानिक मूल्यों की सभी जरूरतों पर खरा उतरता है। ये भारत के बंटवारे के मुश्किल हालातों से उत्पन्न मानवाधिकारों के मुद्दों को लेकर हमारी लंबी राष्ट्रीय प्रतिबद्धता को दर्शाता है।"
उन्होंने कहा, "भारत एक लोकतांत्रिक देश है जहां कानून का शासन है। हमें पूरा यकीन है कि सुप्रीम कोर्ट में इस मुद्दे पर हमारा मजबूत वैधानिक पक्ष सही साबित होगा।"
अन्य संगठन
OHCHR ने भी CAA को भेदभावपूर्ण बताया
इस बीच UN मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय (OHCHR) के प्रवक्ता ने कहा है कि 1955 के भारतीय नागरिकता कानून में संशोधनों का लोगों की नागरिकता तक पहुंच पर भेदभावपूर्ण असर पड़ेगा। उन्होंने कहा कि सभी आप्रवासी अपने मानवाधिकारों के सम्मान, सुरक्षा और पूर्ति के अधिकारी हैं।
इससे पहले OHCHR प्रमुख जेरेमी लॉरेंस ने भी CAA पारित होने के ठीक बाद बयान जारी करते हुए इसे मौलिक रूप से भेदभावपूर्ण बताया था।