कोटा: अब तक 107 बच्चों की मौत, आखिर कौन लेगा इन मौतों की जिम्मेदारी?
राजस्थान के सरकारी अस्पतालों में हो रही शिशुओं की मौत थमने का नाम नहीं ले रही है। शनिवार को कोटा के जेके लोन अस्पताल में एक और शिशु की मौत हुई। इसके साथ ही दिसंबर से लेकर अब तक इस अस्पताल में 107 शिशुओं की मौत हो गई है। इस मामले में राजनीति भी जोरों पर है। विपक्ष लगातार राज्य की कांग्रेस सरकार पर हमलावर बना हुआ है। वहीं सरकार सरकारों की तरह ही बयानबाजी कर बचाव में जुटी है।
जेके लोन अस्पताल में एक साल में 963 बच्चों की मौत
कोटा के इस अस्पताल की बात करें तो पिछले साल यहां कुल 963 बच्चों की मौत हुई है। यानी इलाज के लिए अस्पताल आए दो से ज्यादा रोजाना दम तोड़ रहे हैं। राजस्थान के ही एक दूसरे जिले बाड़मेर के सरकारी अस्पताल में 200 से ज्यादा बच्चों की मौत हुई थी, जो यहां इलाज के लिए भर्ती हुए कुल बच्चों का छह फीसद है। ये आंकड़ें सरकार के तमाम वादों से अलग वास्तविक स्थिति दिखाते हैं।
पिछले सालों का क्या रहा रिकॉर्ड?
राजस्थान सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, जेके लोन अस्पताल में 2014 में 1,198 बच्चों की मौत हुई, 2015 में 1,260 बच्चे मारे गए, 2016 में 1,193, 2017 में 1,027 बच्चों और 2018 में 1,005 बच्चों की मौत हुई थी।
बूंदी में एक महीने में 10 बच्चों की मौत
बच्चों की मौत की घटनाएं अकेले कोटा में नहीं हो रही है। कोटा से ही सटे बूंदी जिले के सरकारी अस्पताल में पिछले एक महीने में 10 बच्चों की मौत हो चुकी है। ये सभी मौतें नियोनटल इंटेंसिव केयर यूनिट (NICU) में हुई हैं। अस्पताल की लापरवाही की खबरें शुक्रवार को कलेक्टर के दौरे के बाद सामने आई। शुक्रवार को अस्पताल के दौरे पर पहुंचे कलेक्टर ने जब रजिस्टर चेक किया तो यह बात सामने आई।
क्या है बच्चों की मौत की वजह?
रिपोर्ट्स के मुताबिक, दिसंबर में जिन कारणों से बच्चों की मौत हुई हैं, उनमें न्यूमोनिया, कॉग्निजेंटल न्यूमोनिया, न्यूमैटिक सेप्टिसीमिया, मेनिंगोइन्सेफेलाइटिस और सांस की समस्या आदि प्रमुख हैं।
जांच के लिए पहुंची केंद्र सरकार की टीम
जेके लोन अस्पताल में हो रही मौतों के बीच केंद्र सरकार की तरफ गठित एक टीम जांच के लिए पहुंच गई है। इस टीम में AIIMS के डॉक्टर और स्वास्थ्य विशेषज्ञ शामिल हैं। यह टीम स्थिति का जायजा लेकर समस्या का समाधान सुझाएगी। शनिवार को कोटा से सांसद और लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने अस्पताल में मरे बच्चों के परिजनों से मुलाकात की। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने भी इस मामले में राजस्थान सरकार को नोटिस भेजा है।
हर स्तर पर बरती जा रही लापरवाही
देश में स्वास्थ्य सुविधाएं किसी से छिपी नहीं है। जब सरकारों और अस्पतालों की लापरवाही से कोई बड़ी घटना होती है तो सबकी आंखें तुरंत खुल जाती है। कोटा के जेके लोन अस्पताल का मामला भी अलग नहीं है। जांच के लिए आई राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की टीम ने पाया कि कोटा का यह अस्पताल मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (MCI) के मानदंडों को भी पूरा नहीं कर रहा। अस्पताल में कर्मचारियों की भारी कमी है।
अस्पताल में घूम रहे सुअर, वेंटिलेटर पड़े हैं खराब
टीम ने पाया कि अस्पताल में सामान्य रखरखाव की चीजें भी उपलब्ध नहीं हैं। सफाई व्यवस्था भी बेहद खराब है। अस्पताल परिसर के अंदर सुअर घूम रहे हैं। मामला सामने आने के बाद नगर निगम ने ये सुअर पकड़े हैं। आपात स्थिति में मरीज की जान बचाने के लिए अस्पताल में 15 वेंटिलेटर हैं, लेकिन इनमें से काम केवल नौ ही कर रहे हैैं। इसके अलावा अस्पताल में मौजूद 533 उपकरणों में से 320 खराब पड़े हैं।
सर्दी से बचने के कोई इंतजाम नहीं
NDTV ने बाड़मेर के एक अस्पताल में जाकर वहां की व्यवस्थाओं की जानकारी ली। इसमें पता चला कि अस्पताल में जिस मंजिल पर बच्चों को भर्ती किया गया है, वहां सर्द हवाओं को रोकने के लिए खिड़की पर शीशे भी नहीं लगे हैं। आप सोचिये इतनी भयंकर सर्दी में स्वस्थ आदमी बीमार हो जाता है तो बीमार बच्चों पर क्या गुजरती है। बच्चों के परिजन खुद खिड़कियों पर कागज, चादर और गत्ते लगाकर सर्दी को रोकने का इंतजाम करते हैं।
अस्पताल को क्लीन चिट दे चुकी है जांच समिति
इतनी बदइंतजामियों के बावजूद अस्पतालों को राज्य सरकार की जांच समिति क्लीन चिट भी दे देती है। राजस्थान सरकार की जांच समिति ने अस्पताल को क्लीन चिट देते हुए कहा था कि शिशुओं को उचित उपचार दिया गया था। समिति ने ऑक्सीजन पाइप लाइन नहीं होने और ठंड को शिशुओं की मौत की वजह बताया था। अस्पताल की अपनी जांच समिति ने भी अस्पताल की लापरवाही की बात से इनकार किया था।
सफाई हो या न हो, लेकिन मंत्रीजी के लिए कालीन जरूर बिछेगी
कोटा के अस्पताल में सफाई का आलम इससे समझा जा सकता है कि यहां सुअर घूमते रहते हैं। अस्पताल प्रशासन को आमतौर पर सफाई की नहीं पड़ी रहती है, लेकिन जब ये पता चला कि मंत्रीजी दौरा करने आ रहे हैं तो इसके लिए बकायदा हरे कालीन का इंतजाम किया गया। इतना ही नहीं, मंत्रीजी के दौरे से पहले दीवारों की रंगाई-पुताई हुई, खराब हीटर और बल्बों को बदला गया और टूटे हुए हिस्से को दोबारा बनाया गया।
मुख्यमंत्री के लिए यह नई बात नहीं है!
जब बच्चों की मौतों को लेकर राज्य के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि पिछले सालों के मुकाबले इस साल कम मौते हुई हैं। यह कोई नई बात नहीं है।
मौतों का जिम्मेदार कौन?
ऐसा नहीं है कि इस साल पहली बार किसी अस्पताल में इतनी संख्या में बच्चों की जान गई है। अगस्त, 2017 में उत्तर प्रदेश के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में ऑक्सीजन खत्म होने के कारण 63 बच्चों की मौत हो गई थी। इस पर सरकार के एक मंत्री ने कहा था कि अगस्त में बच्चे मरते रहते हैं। सरकारों की तरफ से ऐसे बयानों और बड़े-बड़े वादों के बीच इसका पता नहीं चल पाता कि इन मौतों का जिम्मेदार कौन है?