#Exclusive: कहीं खुद परेशान तो कहीं कर रहे मदद, लॉकडाउन में ऐसी है ट्रांसजेंडर्स की जिंदगी
क्या है खबर?
कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिए लागू किए गए लॉकडाउन ने हर तबके को प्रभावित किया है।
हालांकि, सरकार ने उनकी मदद के लिए कई कदम उठाए हैं। इन सबके बीच एक तबका ऐसा भी है जिस पर सरकार का विशेष ध्यान नहीं है।
हम बात कर रहे हैं तीसरे जेंडर यानी ट्रांसजेंडर (किन्नर) समुदाय की। वर्तमान में यह तबका आर्थिक हालातों से जूझ रहा है, लेकिन उसके बाद भी यह मदद को हाथ बढ़ा रहा है।
जनसंख्या
देशभर में छह लाख के करीब है ट्रांसजेंडरों की संख्या
वर्तमान में भारत में ट्रांसजेंडरों की संख्या करीब छह लाख है। इनमें सबसे ज्यादा महाराष्ट्र में करीब 2.5 लाख है।
इस समुदाय के लोग शादी समारोह, घर में बच्चा या मंगल कार्य होने पर बधाई गाकर गुजारा करते हैं। कई जगहों पर इन्हें ट्रैफिक सिग्नल और लोकल ट्रेनों में पैसे मांगते भी देखा जा सकता है। इसी तरह कुछ देह व्यापार से जुड़कर भी अपना गुजारा करते हैं।
ये सब काम बंद होने पर ट्रांसजेडरों पर संकट आ गया है।
जानकारी
सरकारी सहायता के लिए नहीं है कोई दस्तावेज
सरकार ने भले ही इन्हें तीसरे जेंडर का दर्जा दे दिया हो, लेकिन आर्थिक, सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े इस समुदाय के लोग असंगठित रूप से रहते हैं। सरकारी सहायता प्राप्त करने के लिए इनके पास राशन कार्ड तक उपलब्ध नहीं है।
राजस्थान के हालात
राजस्थान में 75 हजार किन्नरों पर आई भूखे मरने की नौबत
राजस्थान में ट्रांसजेंडरों के उत्थान के लिए बनी 'नई भौर संस्था' की संस्थापक और अध्यक्ष महामंडलेश्वर पुष्पा मां से हमने इस पर बात की तो उन्होंने बताया कि लॉकडाउन के कारण राजस्थान में रहने वाले करीब 75 हजार किन्नरों पर रोजी रोटी का संकट आ गया है।
उन्होंने कहा कि बधाइयों का काम खत्म होने से ये लोग घरों में कैद हो गए हैं। ऐसे में वह इनके लिए राशन और आर्थिक सहायता मुहैया कराने का प्रयास कर रही हैं।
मदद
650 से अधिक किन्नरों को पहुंचाई आर्थिक मदद
पुष्पा मां ने बताया कि उन्होंने राज्य के करीब 650 से अधिक किन्नरों के खाते में 1,500-1,500 रुपये की आर्थिक सहायता मुहैया कराई है। इसके अलावा प्रशासन के सहयोग से करीब 1,000 किन्नरों को राशन किट मुहैया कराए गए हैं।
इसी तरह उन्हें साबुन, सैनिटाइजर और मास्क वितरित कर कोरोना वायरस से बचने के लिए जागरुक किया है।
उन्होंने बताया कि वह अन्य किन्नरों तक भी सहायता पहुंचाने का प्रयास कर रही हैं।
बयान
दो किन्नर बच्चों ने की आत्महत्या
पुष्पा मां ने बताया कि राजस्थान में पिछले दिनों दो किन्नर बच्चों ने फंदे से झूलकर आत्महत्या कर ली। उन्होंने कहा कि वर्तमान में किन्नरों को मानसिक मजबूती की जरूरत है। ऐसे में सरकार को उनके लिए विशेष शेल्टर होम खोलकर राहत पहुंचानी चाहिए।
प्रवासी
प्रवासी मजदूर और जरूरतमंदों को भी पहुंचाई मदद
पुष्पा मां ने बताया कि उन्होंने राजस्थान में अपने किन्नर समुदाय के लोगों की ही नहीं, बल्कि प्रवासी मजदूर और अन्य प्रभावित परिवारों को भी मदद पहुंचाई है।
उन्होंने प्रवासी मजदूरों के लिए जनता रसोई में एक क्विंटल आटा और एक क्विंटल चावल भिजवाए हैं। इसी तरह क्षेत्र के 150 परिवारों को भी राशन किट मुहैया कराया है।
उन्होंने कहा कि वह किन्नरों की भलाई के लिए आने वाले समय में सरकार के सामने कई मांग उठाएंगी।
महाराष्ट्र के हालात
महाराष्ट्र में ढाई लाख किन्नरों की हुई हालत खराब
महाराष्ट्र में किन्नर समाज की वरिष्ठ पदाधिकारी और महामंडलेश्वर पवित्रा मां ने हमें बताया कि लॉकडाउन से राज्य में रहने वाले करीब 2.5 लाख किनरों की हालत दयनीय हो गई है। उनके पास ना तो खाने को पैसा है और ना ही किराया चुकाने का।
हालांकि, उन्होंने शहरी क्षेत्र के करीब 200 से अधिक किन्नरों को घर-घर जाकर आचार्य महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी के नेतृत्व में राशन सामग्री, सैनिटाइजर और मास्क वितरित किए हैं।
बयान
कुछ ही किन्नरों को मिली आर्थिक मदद
पवित्रा मां ने बताया कि महाराष्ट्र में कुछ ही किन्नरों को केंद्र सरकार की ओर आर्थिक मदद पहुंचाई गई है। इसके अलावा उन्होंने अपने संगठन समर्थन द्वारा भी किन्नर समुदाय के सैंकड़ों लोगों को राशन सामग्री मुहैया कराई है।
प्रवासी मजदूर
प्रवासी मजदूरों को बांटे 4,000 राशन किट
पवित्रा मां ने बताया कि उन्होंने किन्नर समुदाय के लोगों को राशन किट बांटने के साथ-साथ राज्य में फंसे दूसरे राज्यों के प्रवासी मजदूरों को भी मदद पहुंचाई है।
उन्होंने कहा कि किन्नर हो या आम इंसान, जिंदगी सबकी बराबर होती है। ऐसे में उन्होंने अपने समुदाय के लोगों के साथ प्रवासी मजदूरों की मदद करने का निर्णय किया।
उन्होंने बताया कि लॉकडाउन अवधि में उनहोंने करीब 4,000 प्रवासी मजदूरों को राशन किट वितरित किए हैं।
पश्चिम बंगाल के हालात
पश्चिम बंगाल में ट्रांसजेंडरों की हुई सबसे बुरी हालत
पश्चिम बंगाल में किन्नर समाज की वरिष्ठ पदाधिकारी और एसोसिएशन ऑफ ट्रांसजेंडर बंगाल की अध्यक्ष रणजीता मां ने हमें बताया कि लॉकडाउन के कारण राज्य में रहने वाले करीब 50,000 किन्नरों की हालत दयनीय हो गई है।
उन्होंने बताया कि कुछ किन्नरों को केंद्र सरकार की ओर से 1,500 रुपये की आर्थिक सहायता मिली है। राज्य सरकार ने भी राशन किट मुहैया कराए हैं, लेकिन महज एक बार के वितरण से उनकी पूर्ति नहीं हो पा रही है।
बयान
300 लोगों तक पहुंचाई मदद
रणजीता मां ने बताया कि उन्होंने अपने संगठन की ओर से करीब 300 किन्नरों को राशन मुहैया कराया है और अन्य लोगों तक पहुंचने का प्रयास कर रही है। इसके अलावा उन्होंने किन्नरों के लिए अस्पतालों में कोरोना बेड भी आवंटित कराए हैं।
अम्फान का कहर
साइक्लोन अम्फान से प्रभावित हुए 10,000 किन्नर
रणजीता ने बताया कि राज्य के किन्नरों को लॉकडाउन ही नहीं बल्कि साइक्लोन अम्फान ने भी खासा प्रभावित किया है। अम्फान के कारण करीब 10,000 किन्नर बेघर हो गए हैं। ऐसे में खुले में रहने को मजबूर हैं। सरकार की ओर से उन्हें महज बरसाती मुहैया कराई गई है। इन लोगों के पास खाने के लिए राशन तक नहीं है।
उन्होंने बताया कि अब वह अधिकारियों से बात कर प्रभावित लोगों तक मदद पहुंचाने का प्रयास कर रही हैं।
बयान
प्रवासी मजदूरों के लिए बनवाएं कम्यूनिटी किचन
रणजीता ने बताया कि उन्होंने प्रवासी मजदूरों की मदद का भी प्रयास किया है। उन्होंने राज्य में फंसे प्रवासी मजदूरों के लिए कम्यूनिटी किचन बनवाकर वहां राशन मुहैया कराया है। अब तक करीब 2,000 से अधिक प्रवासियों को खाना खिलाया जा चुका है।
बिहार के हालात
बिहार में 40,000 हजार किन्नरों पर आया संकट
बिहार में किन्नर समाज की पदाधिकारी और दोस्ताना सफर संगठन की सचिव रेशमा ने हमें बताया कि राज्य में लॉकडाउन के कारण 40,000 किन्नरों पर आर्थिक संकट खड़ा हो गया है।
उन्होंने करीब 1,500 किन्नरों को अपने संगठन से जोड़कर उन्हें आर्थिक सहायता और राशन मुहैया कराया है, लेकिन अन्य किन्नरों की हालत बहुत खराब है।
उन्होंने सोशल मीडिया पर एक वीडियो कर लोगों से किन्नरों की मदद करने की अपील की है।
सवाल
किन्नर समुदाय के लिए उत्थान के लिए कब प्रयास करेगी सरकार?
देश में लॉकडाउन के कारण सभी की स्थिति खराब है। इससे उभरने के लिए सरकार ने लाखों करोड़ों के पैकेज घोषित किए हैं जिनमें ट्रांसजेंडर्स का कहीं जिक्र नहीं हुआ।
यदि सरकार ने समय रहते हुए इनके उत्थान पर ध्यान दिया होता तो आज इनकी भूखे मरने की नौबत नहीं आती।
ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर सरकार ट्रांसजेंडर्स पर कब अपना ध्यान केंद्रित करेगी, जिससे की वह भी समाज की मुख्य धारा के साथ चल सकें?