#NewsBytesExclusive: जब फाइनल से पहले चोटिल हुए पैरालंपिक पदक विजेता शरद, भगवत गीता ने की मदद
बीते महीने टोक्यो में सम्पन्न हुए पैरालंपिक खेलों में भारत ने अब तक का सबसे बेहतर प्रदर्शन करते हुए कुल 19 पदक अपने नाम किए। इन पदक विजेताओं में बिहार के मुजफ्फरपुर में जन्मे पैरा खिलाड़ी शरद कुमार भी शामिल थे। 29 वर्षीय शरद ने ऊंची कूद स्पर्धा के T-63 वर्ग में कांस्य पदक हासिल किया। उनकी इस उपलब्धि और सफर के बारे में न्यूजबाइट्स ने उनसे खास बातचीत की। जानिए उन्होंने क्या कुछ कहा।
पैरालंपिक में क्या है T-63 वर्ग?
पैरालंपिक खेलो में T-63 वर्ग के अंतर्गत आपकी कमर से नीचे एक पैर या फिर दोनों पैर काम नहीं करते हैं। उन पैरों में ताकत नहीं होती है। इन खिलाड़ियों को T-63 वर्ग में रखा जाता है।
दो साल की उम्र में पोलियो ग्रसित हुए थे शरद
शरद को महज दो साल की उम्र में ही पोलियो हो गया था, जिससे उनके बाएं पैर में पूरी तरह से लकवा मार गया था। दिग्गज टेनिस खिलाड़ी रोजर फेडरर को आदर्श मानने वाले शरद के अनुसार, उनके भाई ने उन्हें ऊंची कूद प्रतियोगिता में हिस्सा लेने के लिए प्रेरित किया, क्योंकि स्कूल में शरद अपने भाई के सब रिकॉर्ड तोड़ देते थे। बता दें कि शरद एशियाई पैरा गेम्स में दो बार (2014 और 2018) चैंपियन रहे हैं।
टोक्यो में पदक को लेकर पूरा भरोसा था- शरद
शरद ने बताया कि उन्हें टोक्यो में पदक को लेकर पूरा भरोसा था। उन्होंने कहा, "मुझे विश्वास था की मैं विश्व रिकॉर्ड बनाकर स्वर्ण पदक जीतूंगा। हालांकि, मुझे एक दिन पहले चोट लग गई थी। चूंकि मैं TOPS स्कीम का हिस्सा हूं तो हमारा लक्ष्य ही पोडियम फिनिश करना था। एशियाई खेलों में मैंने स्वर्ण जीता, वर्ल्ड चैंपियनशिप में मैंने रजत जीता था। चोट के कारण मैं स्वर्ण से चूक गया और मुझे कांसे से ही संतोष करना पड़ा।"
निर्णायक मुकाबले में हिस्सा लेते शरद
फाइनल में हिस्सा लेने की स्थिति में नहीं थे शरद
शरद ने बताया कि पदक के लिए होने वाले मुकाबले से एक रात पहले अभ्यास के दौरान उन्हें चोट (ग्रेड-1 टियर) लग गई थी। उन्होंने बताया, "निर्णायक मुकाबले से दो रात पहले मुझे लग रहा था कि मैं नए विश्व रिकॉर्ड के साथ स्वर्ण पदक जीतूंगा, लेकिन चोट के कारण मैं चलने में भी असमर्थ था। मैं रात भर रोने लगा और मेरे साथ कोच भी परेशान थे। हम उस परिस्थिति को संभाल नहीं पा रहे थे।"
भगवत गीता से जुटाया हौसला
शरद ने बताया कि असहाय होने की स्थिति में 'श्रीमद भगवत गीता' उनका सहारा बनी। उन्होंने कहा, "मैंने अपने मां-पापा से फोन पर बात की और कहा कि मैं इसमें भाग नहीं ले पाऊंगा। मैं हमेशा 'भगवत गीता' अपने साथ लेकर चलता हूं। मेरे पापा ने मुझे गीता पढ़ने की सलाह दी, जिसमें लिखा हुआ है कि 'कर्म करते रहो फल की इच्छा मत करो'। इसे ही आधार मान कर मैंने प्रतियोगिता में हिस्सा लिया और पदक जीत लिया।"
रियो पैरालंपिक में पदक नहीं जीत सके थे शरद
2016 में हुए रियो पैरालंपिक खेलों में शरद छठे स्थान पर रहे थे। उन्होंने रियो में 1.77 मीटर का सर्वश्रेष्ठ प्रयास किया था। इसके बाद उन्होंने यूक्रेन जाकर कड़ी ट्रेनिंग की और पदक नहीं जीत पाने की निराशा को टोक्यो में खत्म कर दिया।
रियो पैरालंपिक से पहले चोटिल हो गए थे शरद
रियो के बारे में शरद ने बताया, "रियो से सात महीने पहले मेरे पोलियो वाले पैर में चोट लग गई। पोलियो वाले पैर को ठीक होने में सामान्य से ज्यादा समय लगता है। हालत तो यह हो गई थी कि मेरा रियो में हिस्सा लेना ही काफी हो गया था।" उन्होंने आगे कहा, "मैंने इससे सबक लिया कि चार सालों की मेहनत पर इंजरी के चलते पानी नहीं फेरा जाना चाहिए। यह सबक मेरे लिए टोक्यो में काम आया।"
स्पेशल कैटेगरी में ऊंची कूद के खिलाड़ियों के सामने क्या अलग चुनौतियां हैं?
ऊंची कूद में अपनी चुनौतियों के बारे में शरद ने बताया, "हम एक पैर से ऊंची कूद कर रहे हैं। हम कई सालों से सिर्फ एक ही पैर से कूद रहे होते हैं। हम उस पैर को इतना दर्द और दबाव में डालते हैं।" शरद कहते हैं, "ऊंची कूद जैसे खेल में हिस्सा लेना ही अपने आप में एक उपलब्धि है। कई लोग दो पैरों से कुछ नहीं कर पाते और हम एक पैर से ही ऊंची कूद करते हैं।"
केंद्र सरकार की तरफ से कितना समर्थन मिला?
शरद ने बताया कि उन्हें केंद्र सरकार से पर्याप्त समर्थन मिला है। उन्होंने कहा, "बिलकुल, केंद्र सरकार के समर्थन के बिना यह सब संभव ही नहीं है। हमें TOPS में शामिल करके सारी सुविधाएं दी हैं। पहले हम सिर्फ अपने जूनून और शौक से खेल रहे होते थे, लेकिन सरकार के समर्थन ने हमें प्रोफेशनल एथलीट बनाया है। मैं 2016 से TOPS में शामिल हूं। TOPS एक अच्छी स्कीम है, जिसमें हर एथलीट को पूरी तरह से समर्थन मिलता है।"
क्या है टारगेट ओलंपिक पोडियम स्कीम (TOPS)?
2014 में शुरू हुई TOPS स्कीम के तहत देशभर के ऐसे खिलाड़ियों का चुनाव होता है, जो भारत को ओलंपिक और पैरालंपिक में पदक दिला सकें। ऐसे खिलाड़ियों का चुनाव कर सरकार उनके लिए जरूरी इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार करती है और आर्थिक मदद करती है।
हर राज्य में बराबर पैसे मिलने चाहिए- शरद
ओलंपिक या पैरालंपिक में पदक जीतने पर अलग-अलग राज्यों में सरकारें कम या ज्यादा इनामी राशि देती हैं। इस बार हरियाणा सरकार ने अपने राज्य के खिलाड़ियों को सबसे ज्यादा राशि दी। इस पर शरद ने कहा, "मेरी निजी राय में हर राज्य में बराबर पैसे मिलने चाहिए। कुछ राज्यों के पास पैसा (राजस्व) ज्यादा होता है। किसी राज्य में कांस्य से मिलने वाली इनामी राशि, दूसरे राज्य के स्वर्ण से मिलने वाली राशि के बराबर होती है।"
अब मैं बिना दबाव के खेल का मजा लेते हुए प्रतिस्पर्धा करूंगा- शरद
शरद कहते हैं कि टोक्यो की सफलता के बाद अब उनसे काफी दबाव कम हुआ है। उन्होंने कहा, "मैंने अपनी लगभग हर बड़ी प्रतियोगिता में पदक जीत लिया है। चाहे वो एशियाई खेल हों, विश्व चैंपियनशिप या फिर पैरालंपिक। इससे पहले मैं काफी दबाव में प्रतियोगिता में हिस्सा लेता था। मैंने खुद को साबित कर लिया है। कहीं न कहीं पदक जीतने की अपेक्षा के चलते मेरा खेल के प्रति प्यार कम हो रहा था और मैं तनाव में था।"
"पेरिस पैरालंपिक में भारत पदक संख्या में और इजाफा करेगा"
शरद का विश्वास है कि भारत अगले पेरिस पैरालंपिक में अपनी पदक संख्या में और इजाफा करेगा। इस बारे में उन्होंने कहा, "टोक्यो में हुए खेल भारत के लिए सफल रहे हैं। इनमे बैडमिंटन जैसे नए खेलों को जोड़े जाने से भारत की पदक संख्या में इजाफा हुआ है। ऐसे ही पेरिस पैरालंपिक में निश्चित तौर पर हम और ज्यादा पदक जीतने में सफल होंगे क्योंकि वहां नए खेल भी जुड़ेंगे।"
फिलहाल स्वास्थ्य संबंधित परेशानियों से जूझ रहे हैं शरद
शरद फिलहाल स्वास्थ्य संबंधित परेशानियों से जूझ रहे हैं। उन्होंने कहा, "मैं पदक जीतने के कुछ समय बाद से अस्पताल में भर्ती हूं। मेरे दिल में हल्की सी सूजन है और मैं इसका इलाज करवा रहा हूं। मुझे ये समस्या टोक्यो जाने से पहले से ही है। जहां एक तरफ पदक जीतने वाले अन्य खिलाड़ी अपने समय का लुत्फ उठा रहे हैं, मैं अपने अच्छे समय में भी अस्पताल में हूं। मेरा अभी फोकस अपने स्वास्थ्य पर है।"