क्या है सेंसर बोर्ड और कैसे मिलते हैं फिल्मों को सर्टिफिकेट? जानिए पूरी प्रक्रिया
फिल्मों को सिनेमाघरों में आने से पहले केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (CBFC) की नजरों से गुजरना पड़ता है। CBFC को आम भाषा में सेंसर बोर्ड कहते हैं। सेंसर बोर्ड से पास होने के बाद ही फिल्म सिनेमाघरों में रिलीज हो पाती है। हाल में रिलीज हुई 'KGF चैप्टर: 2' को बोर्ड ने U/A सर्टिफिकेट देकर पास किया। अक्सर फिल्मों को मिले प्रमाणपत्र के कारण विवाद होता रहता है। आइए जानते हैं कि भारत में सेंसर बोर्ड कैसे काम करता है।
किस प्रकार की संस्था है CBFC?
सेंसर बोर्ड एक वैधानिक संस्था है, जो सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अंतर्गत काम करती है। यह बोर्ड हमारे देश की फिल्मों को उसके कंटेंट के हिसाब से सर्टिफिकेट प्रदान करता है। सिनेमेटोग्राफी एक्ट 1952 के तहत फिल्मों की रिलीज से पहले उन्हें सर्टिफिकेट देना जरूरी है। सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति केंद्र सरकार करती है। बता दें कि CBFC के सदस्य किसी सरकारी पद पर नहीं होते।
किन श्रेणियों में फिल्मों को दिया जाता है प्रमाणपत्र?
फिल्मों को कंटेंट के हिसाब से चार श्रेणियों में बांटा गया है। पहली श्रेणी U यानी यूनिवर्सल है। इसके तहत फिल्मों को सभी वर्ग के दर्शक देख सकते हैं। दूसरी श्रेणी U/A है, जिसके अंतर्गत 12 साल से कम उम्र के बच्चे अपने पैरेंट्स या बड़े लोगों की निगरानी में फिल्म देख पाएंगे। तीसरी श्रेणी A है, जिसके तहत सिर्फ व्यस्क लोगों को फिल्म देखने का अधिकार है। आखिरी श्रेणी S है, जो खास वर्ग के लोगों के लिए है।
किन परिस्थितियों में फिल्म को पास नहीं करेगा सेंसर बोर्ड?
सिनेमेटोग्राफी एक्ट 1952 के दिशानिर्देश में लिखा गया है, 'एक फिल्म को प्रमाणित नहीं किया जाएगा यदि इसका कोई हिस्सा भारत की संप्रभुता और अखंडता, राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों और सार्वजनिक व्यवस्था के विरुद्ध है।' बोर्ड इस तथ्य पर गौर फरमाता है कि कहीं फिल्म के कंटेंट के कारण अदालत की अवमानना और किसी चीज की मानहानि तो नहीं हो रही है। फिल्म का समाज पर क्या प्रभाव पड़ेगा, इसका अवलोकन सेंसर बोर्ड करता है।
फिल्म को पास करने में कितना समय ले सकता है बोर्ड?
सेंसर बोर्ड किसी भी फिल्म को सर्टिफिकेट देने में अधिक-से-अधिक 68 दिनों का वक्त ले सकता है। सबसे पहले आवेदन की जांच की जाती है। इसमें लगभग एक सप्ताह का समय लगता है। इसके बाद फिल्म को जांच समिति के पास भेजा जाता है और जांच समिति इसे 15 दिनों के भीतर सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष के पास भेजती है। अध्यक्ष फिल्म की जांच में अधिकतम 10 दिनों का समय ले सकता है। फिर सर्टिफिकेशन की प्रक्रिया शुरू होती है।
नौ जगहों पर हैं सेंसर बोर्ड के क्षेत्रीय कार्यालय
सेंसर बोर्ड का मुख्यालय मुंबई में है और कोलकाता, चेन्नई, बेंगलुरू, तिरुवनंतपुरम, हैदराबाद, नई दिल्ली, कटक और गुवाहाटी में इसके क्षेत्रीय कार्यालय मौजूद हैं। इन क्षेत्रीय कार्यालयों में भी फिल्म सर्टिफिकेशन के लिए आवेदन दिया जा सकता है।
फिल्मों को पास करने के लिए की गई दो पैनल की व्यवस्था
सेंसर बोर्ड में फिल्म को पास करने के लिए दो पैनल की व्यवस्था की गई है। इसमें पहला पैनल जांच समिति होता है। इसमें चार सदस्य होते हैं, जिनमें दो महिलाओं का होना अनिवार्य है। अधिकांश फिल्में इसी पैनल के जरिए पास हो जाती हैं। मालूम हो कि इस पैनल में बोर्ड के अध्यक्ष शामिल नहीं हैं। जांच समिति फिल्म को परखने के बाद लिखित में सुझाव देकर एडिटिंग करती है। बाद में रिपोर्ट अध्यक्ष को भेजी जाती है।
जांच समिति के बाद रिवाइजिंग कमिटी के पास जाती है फिल्म
दूसरा पैनल रिवाइजिंग कमिटी होता है, जिसमें अध्यक्ष के अलावा नौ सदस्य हो सकते हैं। जब जांच समिति फिल्म को सर्टिफिकेट देने से मना कर देती है, तो मामला रिवाइजिंग कमिटी के पास पहुंचता है। खास बात यह है कि इसमें पैनल के सदस्यों की पहचान गुप्त रखी जाती है। इस पैनल में उन्ही सदस्यों को स्थान मिलता है, जो पहले पैनल में शामिल ना हों। आपत्ति होने पर इस पैनल के पास भी फिल्म को रोकने का अधिकार है।
अगर सेंसर बोर्ड फिल्म ना पास करे तो क्या है उपाय?
अगर सेंसर बोर्ड फिल्म को पास करने से इनकार कर देता है, तो मेकर्स के पास एक आखिरी रास्ता बचता है। मेकर्स फिल्म का सर्टिफिकेट हासिल करने के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते हैं। हालांकि, इस प्रक्रिया में थोड़ी देरी लगती है।
पिछले साल FCAT के खात्मे के बाद मजबूत हुआ सेंसर बोर्ड
पहले फिल्म प्रमाणन अपीलीय न्यायाधिकरण (FCAT) भी था, जिसे पिछले साल सरकार ने रद्द कर दिया। इसमें रिटायर्ड जजों के अलावा फिल्म इंडस्ट्री के लोग होते थे। FCAT के रद्द होने से बोर्ड की शक्तियां बढ़ी हैं। पहले सेंसर बोर्ड की मनमानी के खिलाफ मेकर्स को FCAT में अपील करने का अधिकार होता था। अनुराग कश्यप की 'उड़ता पंजाब' को जब बोर्ड ने पास करने से मना कर दिया था, तो FCAT के हस्तक्षेप के बाद फिल्म को सर्टिफिकेट मिला।
सेंसर बोर्ड और फिल्ममेकर्स में विवाद
फिल्ममेकर्स और सेंसर बोर्ड में खींचतान होती रही है। सेंसर बोर्ड उस समय विवादों में आ गया था, जब उसकी तरफ से फिल्म 'उड़ता पंजाब' से 80 से ज्यादा दृश्यों को हटाने के लिए कहा गया। इससे फिल्ममेकर अनुराग काफी नाराज हो गए थे। हंसल मेहता की 'अलीगढ़' में समलैंगिक शब्द के इस्तेमाल पर बोर्ड ने ऐतराज जताया था। 'क्या कूल हैं हम' और 'मस्तीजादे' जैसी फिल्मों पर सेंसर बोर्ड की कैंची खूब चली।