हीरामंडी की असली कहानी क्या है, जिसे पर्दे पर उतारने जा रहे संजय लीला भंसाली?
इन दिनों संजय लीला भंसाली की वेब सीरीज 'हीरामंडी' खूब चर्चा में है और हो भी क्यों न, यह भंसाली की पहली वेब सीरीज जो है। इसे लेकर दर्शकों का उत्साह तब और बढ़ गया, जब इससे कलाकारों की पहली झलक सामने आई। यह भंसाली के करियर का अब तक का सबसे बड़ा और मुश्किल प्रोजेक्ट है। वह खुद यह बता चुके हैं। आइए जानते हैं आखिर क्या है हीरामंडी का इतिहास, जिसे दर्शकों से मुखातिब कराने जा रहे भंसाली।
कहां से आया ये नाम?
महाराजा रणजीत सिंह के बेटे हीरा सिंह की हवेली इस इलाके में थी, वहीं से नाम आया हीरामंडी, जिसने यहां अनाज मंडी का निर्माण कराया। कुछ को ये भी लगता रहा है कि खूबसूरत लड़कियों के चलते इसका नाम हीरामंडी पड़ा। मुगलकाल के दौरान अफगानिस्तान और उजबेकिस्तान की महिलाएं हीरामंडी में रहने के लिए आई थीं। उस समय 'तवायफ' शब्द को गंदी निगाहों से नहीं देखा जाता था। ये वो दौर था, जब तवायफें सिर्फ राजा-महाराजाओं का मनोरंजन करती थीं
कभी संगीत का गढ़ होता था हीरामंडी
पाकिस्तान के लाहौर में बसा हीरामंडी एक समय तवायफों के घुंघरुओं की खनक से गूंजता था, लेकिन आज यहां संगीत के नाम पर ढोलक और गिटार की दुकानें हैं। हीरामंडी को बाजार-ए-हुस्न के नाम से भी जाना जाता है। मुगल दौर में यहां राजाओं की दासी और मुलाजिम रहते थे, इसलिए इसे 'शाही मोहल्ला' भी कहते थे। बड़े घरों के लोग यहां अपने बच्चों को संगीत सीखने भेजा करते थे। यह नृत्य कला और संगीत का गढ़ हुआ करता था।
देशभर में मशहूर थीं इलाके की तवायफें
लाहौर की बेहद पुरानी और तंग गलियों के बीच बसा हीरामंडी एक ऐसा इलाका था, जहां की तवायफें देशभर में मशहूर थीं। इस इलाके की एक लंबी गली में लगभग 50 घर थे जो सदियों से नाच-गाने, साज और घुंघरुओं की खनक से आबाद रहा करते थे। यहां की तवायफों की खूबसूरती के किस्से मशहूर थे। इस मंडी में रहने वाली तवायफों के कभी बड़े लोग दीवाने हुआ करते थे। यहां की महिलाओं की एक खास धमक हुआ करती थी।
सजती थी सुरों की महफिल
मुगलकाल में हीरामंडी में सुरों की महफिल सजती थी। आस-पास के बाजारों में भी खूब रौनक रहती थी। एक खास बात उस जमाने में ये हुआ करती थी कि जिस्म का सौदा इन बाजारों में नहीं होता था। जिस्म का सौदा करने वाली वेश्या अलग हुआ करती थीं और नाचने-गाने वाली अलग। हीरामंडी में बचपन से ही लड़कियों को रियाज कराया जाता था और फिर वो गाना शुरू करती थीं। उन्हें शायरी और संगीत की बाकायदा तालीम दी जाती थी।
ब्रिटिश शासनकाल में फीकी पड़ी हीरामंडी की चमक
जब मुगलदौर ढलने लगा तो लाहौर कई बार विदेशी आक्रमणकारियों के निशाने पर आया। अफगान आक्रमणकारियों ने यहां के तवायफखानों को उजाड़ दिया। फिर इस इलाके में वेश्यावृत्ति पनपने लगी। ब्रिटिश राज कायम हुआ तो उन्होंने हीरामंडी को वेश्यावृत्ति की जगह माना। ब्रिटिश शासनकाल में हीरामंडी की चमक ऐसी फीकी पड़ी कि आज तक इसकी रौनक वापस नहीं लौटी। आजादी के बाद सरकार ने यहां आने वाले लोगों के लिए कई बेहतरीन इंतजाम भी करवाए, लेकिन बात नहीं बनी।
दिन के समय सामान्य बाजार जैसा
दिन के समय हीरामंडी पाकिस्तान के किसी सामान्य बाजार जैसा ही होता है, जहां तमाम तरह के सामान और संगीत के उपकरण मिलते हैं। यह खाने-पीने के शौकीनों का अड्डा भी है, लेकिन शाम होते ही यह रेड लाइट एरिया में बदल जाता है।