'भुज द प्राइड ऑफ इंडिया' का रिव्यू: वॉर ड्रामा की कसौटी पर खरी नहीं उतरी फिल्म
अभिनेता अजय देवगन काफी समय से अपनी वॉर ड्रामा फिल्म 'भुज द प्राइड ऑफ इंडिया' को लेकर सुर्खियों में थे। यह फिल्म 13 अगस्त को स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म डिज्नी प्लस हॉटस्टार पर रिलीज हो चुकी है। फिल्म में संजय दत्त, सोनाक्षी सिन्हा, नोरा फतेही, शरद केलकर और एमी विर्क अहम भूमिकाओं में नजर आए हैं और फिल्म का निर्देशन अभिषेक दुधैया ने किया है। अजय देवगन फिल्म्स और टी-सीरीज के बैनर तले फिल्म का निर्माण हुआ है। जानिए कैसी है फिल्म।
ऐसी है फिल्म की कहानी
फिल्म में अजय भारतीय वायु सेना के स्क्वॉड्रन लीडर विजय कुमार कार्णिक की भूमिका में हैं। 1971 में भारत-पाकिस्तान के बीच हुए युद्ध में वह भुज एयरपोर्ट के इंचार्ज थे। पाकिस्तान के हमले से भुज का एयरबेस नष्ट हो जाता है। अजय (विजय) पास के गांव की महिलाओं की मदद से इसका पुनर्निर्माण करते हैं। फिल्म भुज पर हमले और इसके पुनर्निर्माण के इर्द-गिर्द घूमती है। विपरीत परिस्थितियों में अजय मिशन को अंजाम देते दिखे हैं।
अजय नहीं कर पाए कोई खास कमाल
अजय ने फिल्म में विजय कार्णिक के किरदार को पर्दे पर उतारने की कोशिश की है। हालांकि, वह अपनी हालिया फिल्मों की तरह कोई खास कमाल नहीं कर पाए हैं। फिल्म 'तान्हाजी: द अनसंग वॉरियर' में उनका विराट व्यक्तित्व उभर कर सामने आया था। वह इस फिल्म की स्क्रिप्ट में उलझे हुए नजर आए हैं। वह फिल्म का नैरेशन खुद करते हुए दिखे हैं, जो इसका कमजोर पक्ष साबित हुआ है।
अन्य कलाकारों का कैसा रहा अभिनय?
फिल्म में संजय को रणछोड़दास पग्गी के दमदार किरदार में दिखाया गया है। उन्होंने शानदार अभिनय से अपने किरदार में जान डाल दी है। एक कुल्हाड़ी से वह दुश्मनों से लोहा लेते हुए दिखे हैं। वहीं, शरद ने अपनी भूमिका से दर्शकों का दिल जीतने की कोशिश की है। एमी विर्क ने फ्लाइट लेफ्टिनेंट विक्रम सिंह बाज के किरदार से खुद को साबित किया है। वह अपने किरदार में गंभीर दिखे हैं। सोनाक्षी और नोरा का प्रदर्शन औसत रहा है।
निर्देशन में और अधिक कसावट की थी उम्मीद
अभिषेक ने फिल्म से बॉलीवुड में निर्देशन में कदम रखा है। बड़े कलाकारों से सजी इस फिल्म को कमजोर बनाने में निर्देशक की कमियां भी रही हैं। फिल्म के एक सीन का दूसरे सीन से सही तरीके से तालमेल नहीं बैठा है। इसका मतलब है कि फिल्म की एडिटिंग को सही तरीके से पूरा नहीं किया गया है। फिल्म की कहानी बिखरी हुई सी लगती है। एक वॉर ड्रामा फिल्म में जो गंभीरता और स्थिरता होनी चाहिए, वो नहीं है।
ये रहीं फिल्म की खामियां
पहले हाफ में यह फिल्म अपने नैरेशन में ही उलझ जाती है। शुरुआत के 20-30 मिनट तो फिल्म की पृष्ठभूमि को ही स्पष्ट करने में लग जाते हैं। हालांकि, फर्स्ट हाफ के बाद यह फिल्म रफ्तार पकड़ती है और दर्शकों को बांधने में कामयाब होती है। अजय की पत्नी की भूमिका में प्रणिता सुभाष नजर आई हैं, लेकिन दोनों की केमिस्ट्री के बारे में कोई जानकारी नहीं मिलती। फिल्म के गाने ने भी कोई कमाल नहीं किया है।
फिल्म देखें या इसकी अनदेखी करें?
फिल्म की कहानी बेशक अच्छी है, लेकिन उस कहानी को एक अच्छी स्क्रिप्ट के साथ मेकर्स पर्दे पर उतारने में असफल रहे हैं। ऐसा नहीं है कि इस फिल्म में कुछ भी नहीं है। यदि आप स्वतंत्रता दिवस के मौके पर भुज हमले की कहानी को जानने में रुचि लेते हैं, तो यह फिल्म जरूर देखें। अजय और संजय के चाहने वाले इस फिल्म का लुत्फ उठा सकते हैं। हमारी तरफ से इस फिल्म को दो स्टार।