#NewsBytesExplainer: भारत में पहली बार इस फिल्म पर लगा था प्रतिबंध, क्या था विरोध का कारण?
बॉलीवुड में फिल्मों पर प्रतिबंध लगना आम सी बात हो गई है। अक्सर जिन फिल्मों को लेकर विवाद खड़ा होता है, उन पर रोक लगा दी जाती है। कुछ महीने पहले अदा शर्मा की फिल्म 'द केरल स्टोरी' पर विवाद के चलते कुछ राज्यों में रोक लगी थी, जिसे हटा भी दिया गया, लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत में किस फिल्म पर पहली बार कब और क्यों प्रतिबंध लगा था। आइए इस बारे में विस्तार से जानते हैं।
अंग्रेजों के शासन के दौरान शुरू हुआ रोक लगाने का सिलसिला
भारत में फिल्मों पर प्रतिबंध लगाने का सिलसिला अंग्रेजों के समय से चला आ रहा है। ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि फिल्मों पर रोक लगाना भारतीय फिल्मों के इतिहास जितना ही पुराना है। दरअसल, अंग्रेजों के शासन के दौरान फिल्मों को लोगों के बीच राजनीतिक चेतना जगाने और उनके खिलाफ गुस्सा जताने के लिए बनाया जाता था। इनमें पुरानी कथाओं के साथ स्वतंत्रता संग्राम के दौरान की हकीकत दिखाई जाती थी, इसलिए अंग्रेज इनका विरोध करते थे।
रोक लगने वाली पहली फिल्म बनी 'भक्त विदुर'
भारतीय इतिहास में पहली बार जिस फिल्म पर प्रतिबंध लगा था, उसका नाम था 'भक्त विदुर'। 1921 में आई इस मूक फिल्म का निर्देशन कांजीभाई राठौड़ ने किया था और इसकी निर्माता कोहिनूर फिल्म कंपनी थी। 'भक्त विदुर' की कहानी महाभारत महाकाव्य पर आधारित थी। इसमें धृतराष्ट्र और पांडु के सौतेले भाई और कौरवों और पांडवों के बीच हुए युद्ध को दिखाया गया था। हालांकि, अंग्रेजों ने फिल्म की कहानी पर ही आपत्ति जताते हुए इस पर रोक लगा दी।
महात्मा गांधी से प्रेरित था विदुर का किरदार
दरअसल, फिल्म में दिखाए गए विदुर के किरदार को महात्मा गांधी से प्रेरित बताया गया था। विदुर ने गांधी जैसी ही टोपी और कपड़े पहने थे। सेंसर बोर्ड ने भी फिल्म देखने के बाद कहा था, "हम जानते हैं कि आप क्या कर रहे हैं, ये विदुर नहीं, गांधी हैं और हम इसकी इजाजत नहीं देंगे।" इसके बाद ब्रिटिश सरकार ने कराची और मद्रास में फिल्म पर रोक लगाई और यह भारत में बैन होने वाली पहली फिल्म बन गई।
...इसलिए भड़क गई थी ब्रिटिश सरकार
1919 में भारत में रोलेट एक्ट पास हुआ था, जिसका देशभर में विरोध हो रहा था। पंजाब के जलियांवाला बाग में लोग इस कानून का विरोध करने के लिए इकट्ठा हुए तो जनरल डायर ने उन पर गोलियां बरसा दीं। इस प्रदर्शन का नेंतृत्व गांधी कर रहे थे। लोगों की मौत के बाद भी उन्होंने विरोध जारी रखा था। इस फिल्म में भी कई राजनीतिक घटनाएं दिखाई गईं और नतीजतन ब्रिटिश सरकार ने भड़क कर फिल्म पर प्रतिबंध लगा दिया।
न्यूजबाइट्स प्लस
रोलेट एक्ट को काला कानून भी कहा जाता है। इस कानून से अंग्रेजों को अधिकार मिला था कि वे किसी भी भारतीय को अदालत में बिना मुकदमा दायर करे जेल भेज सकते हैं और लोग मुकमदा कराने वाले का नाम तक नहीं जान सकते थे।
1939 में दूसरी बार लगाया गया प्रतिबंध
1939 में ब्रिटिश सरकार ने अपने शासन काल के दौरान एक और फिल्म 'त्याग भूमि' पर प्रतिबंध लगाया। 22 हफ्तों तक चली इस तमिल भाषी फिल्म में गांधी और उनके आदर्शों का महिमामंडन करने की बात कही गई थी। इतना ही नहीं के सुब्रमण्यम द्वारा निर्देशित फिल्म में स्वतंत्रता आंदोलन और कांग्रेस को समर्थन देना भी प्रतिबंध करने की वजह बना था। मालूम हो कि इस फिल्म की कहानी कल्कि के इसी नाम से लिखे गए उपन्यास पर आधारित थी।
आजाद भारत में भी नहीं थमा सिलसिला
1958 में आई बंगाली फिल्म 'नील आकाशेर' पर आजाद भारत में पहली बार प्रतिबंध लगा था। निर्देशक मृणाल सेन ने फिल्म में एक ही नीले आसमान के नीचे रहने के बाद भी अमीर और गरीब के बीच बढ़ते हुए फासले को दिखाया था। ऐसे में फिल्म को लेकर राजनीतिक विरोध बढ़ने लगा और तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने इस पर रोक लगा दी। हालांकि, 3 महीने बाद ही फिल्म पर लगी रोक को हटा दिया गया था।
सेंसर बोर्ड और राज्य सरकार के पास नहीं रोक लगाने का अधिकार
सेंसर बोर्ड के पास फिल्मों पर रोक लगाने का कोई अधिकार नहीं होता है। हालांकि, फिल्मों को रिलीज से पहले सेंसर बोर्ड से सर्टिफिकेट लेना होता है। अगर ऐसा नहीं होता तो फिल्म सिनेमाघरों में नहीं आ पाती और उसके हालात प्रतिबंध जैसे ही बन जाते हैं। दूसरे ओर, 2011 में प्रकाश झा की फिल्म 'आरक्षण' को लेकर दिए गए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक, राज्य सरकार बोर्ड से सर्टिफिकेट मिलने के बाद फिल्मों पर पाबंदी नहीं लगा सकती।
केंद्र सरकार ले सकती है अहम फैसला
केंद्र सरकार फिल्म के सेंसर बोर्ड से पास होने के बाद भी सिनेमेटोग्राफी एक्ट 1952(5E) के तहत फिल्म परे प्रतिबंध लगा सकती है। अगर जरूरत पड़े तो केंद्र सरकार सेंसर बोर्ड के सर्टिफिकेट को भी रद्द कर सकती है। 2022 में सिनेमेटोग्राफी कानून में बदलाव का बिल भी पेश किया गया था, जो इसी साल पारित हुआ है। इस बिल में प्रावधान है कि दर्शकों को अगर फिल्म से आपत्ति है तो केंद्र सरकार उस पर रोक लगा सकती है।
इन फिल्मों पर लग चुकी है रोक
2014 में आई फिल्म 'अनफ्रीडम' और 1994 में आई 'बैंडिट क्वीन' को सेंसर बोर्ड ने मंजूरी नहीं दी थी, जिसके बाद यह सिनेमाघरों में नहीं रिलीज हो सकी। दीपा मेहता की फिल्म 'फायर' समलैंगिक रिश्तों पर बनी थी और इसको लेकर कई संगठनों ने विरोध जताया था, जिसके चलते इस पर प्रतिबंध लग गया था। जॉन अब्राहम की फिल्म 'वाटर' और 'परजानिया' भी सिनेमाघरों तक नहीं पहुंच पाई थी। 'परजानिया' की रिलीज पर तो बजरंग दल ने आपत्ति जताई थी।