'IB71' रिव्यू: विद्युत जामवाल की फिल्म की जान बना विशाल जेठवा का शानदार अभिनय
विद्युत जामवाल की फिल्म 'IB71' ने आज सिनेमाघरों में दस्तक दे दी है। फिल्म ट्रेलर आने के बाद से ही सुर्खियों में थी और प्रशंसक अभिनेता को बड़े पर्दे पर देखने के लिए उत्सुक थे। इस फिल्म में विद्युत न सिर्फ अभिनेता की तरह नजर आए हैं बल्कि वह इसके सह-निर्माता भी हैं। दरअसल, संकल्प रेड्डी के निर्देशन में बनी यह फिल्म विद्युत की प्रोडक्शन कंपनी 'एक्शन हीरो फिल्म्स' की पहली फिल्म है। आइए जानते हैं कैसी है फिल्म।
ऐसी है फिल्म की कहानी
'IB71' की कहानी एक खुफिया मिशन पर आधारित है, जिसमें पाकिस्तान भारत पर हमला करने की योजना बना रहा है तो भारतीय इंटेलिजेंस ब्यूरो को उसे रोकना है। इस मिशन की जिम्मेदारी एजेंट देव जामवाल (विद्युत) पर है, जो पाकिस्तानी लड़ाकू विमानों को रोकने के लिए हवाई क्षेत्र को बंद करने की योजना बनाते हैं। इसके बाद वह आजाद कश्मीर का सपना देखने वाले कासिम कुरैशी (विशाल जेठवा) की मदद से पाकिस्तान को चकमा देने में कामयाब हो जाते हैं।
विशाल बने फिल्म के असली हीरो
'IB71' की जान विशाल का शानदार प्रदर्शन ही है। वह एक कश्मीरी लड़के के रूप में आपको हंसने से लेकर डराने तक में कामयाब रहते हैं। विशाल ने कश्मीरी लहजे इस हद तक अपना लिया है कि वह अपने किरदार से पूरा इंसाफ करते हैं। विशाल का अभिनय इतना जबरदस्त है कि पर्दे पर जब भी वह नजर आते हैं दर्शकों को फिल्म से बांधे रखते हैं। फिल्म की शुरुआत से लेकर उसके अंत तक वह बेहतरीन लगे हैं।
अभिनय के मामले में विद्युत खा गए मात
'IB71' की पूरी कहानी यूं तो विद्युत के इर्द-गिर्द घूमती है, लेकिन वह अपनी अदाकारी से कुछ खास कमाल नहीं कर पाते। एक्शन अवतार में स्क्रीन पर छा जाने वाले विद्युत अभिनय के मामले में मात खाते नजर आए, वहीं अनुपम खेर और दलीप ताहिल भी छाप छोड़ने में ज्यादा सफल नहीं हुए। ऐसे में विशाल को छोड़ दिया जाए तो फिल्म में किसी भी सितारे की अदाकारी उम्दा नहीं लगती और शायद इसलिए उनसे जुड़ाव भी नहीं हो पाता।
निर्देशक का कमजोर प्रदर्शन
'IB71' की शुरुआत काफी धीमी होती है और ऐसे में दर्शक फिल्म से जुड़ाव नहीं महसूस कर पाते। इंटरवल से पहले का समय बस कहानी को समझाने में निकल जाता है, जो इसकी सबसे कमजोर कड़ी है। सच्ची कहानी होने के बाद भी निर्देशक संकल्प कमजोर प्रदर्शन के चलते मात खा जाते हैं। हालांकि, दूसरा भाग दिलचस्प लगता है और कहानी दर्शकों को बांधने लगती है, जहां निर्देशक कुछ हद तक सफल हो जाते हैं।
फिल्म में यहां भी रह गई कमी
भारत-पाकिस्तान के युद्ध पर कई फिल्में बनी हैं और उनमें कमाल की देशभक्ति भी देखने को मिली है, लेकिन इस फिल्म में देशभक्ति की भावना कम ही आती है। फिल्म में एक्शन सीन जितनी भी देर आते हैं बढ़िया लगते हैं, लेकिन वह ज्यादा असर नहीं डाल पाते। साथ ही बैकग्राउंड म्यूजिक भी कुछ खास कमाल नहीं करता। हां, फिल्म के अंत में एक बार जरूर देशभक्ति की भावना आती है। इसके अलावा डायलॉग भी कमजोर लगते हैं।
यहां हो सकता था बदलाव
फिल्म देखने पर ऐसे कई बार लगता है कि कुछ सीन को ज्यादा न दिखाया जाता और सही से एडिट कर दिया जाता तो अच्छा रहता। जैसे कासिम का बार-बार सिनेमाघर में जाकर एक ही फिल्मों को देखना और फिर वापस घर आ जाना बेवजह सा लगता है। इसे एक-दो बार में भी दिखाया जा सकता था। ऐसे में पहले भाग में कई जगह कहानी बेवजह खींचती हुई लगती है।
देखें या नहीं?
क्यों देखें?- अगर आप विद्युत के प्रशंसक हैं और आपको देशभक्ति से जुड़ी फिल्में देखने में दिलचस्पी है तो आप इसे एक बार अपने परिवार के साथ देख सकते हैं। क्यों नहीं देखें?- इस फिल्म में ऐसा कुछ नहीं है, जिसे आप नहीं देखेंगे तो छूट जाएगा और न ही विद्युत का एक्शन ही ज्यादा देखने को मिलेगा। ऐसे में इसके OTT पर आने का इंतजार करना ज्यादा बेहतर विकल्प होगा। न्यूजबाइट्स स्टार- 1.5/5