माधुरी दीक्षित की 'मजा मा' में मजा नहीं आया, कमजोर स्क्रिप्ट ने फेरा पानी
अभिनेत्री माधुरी दीक्षित की फिल्म 'मजा मा' आज स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म अमेजन प्राइम वीडियो पर रिलीज हुई है। फिल्म से उनके लुक को बेहद पसंद किया गया था। इस फिल्म में गजराव राव, ऋत्विक भौमिक, बरखा सिंह, रजित कपूर, शीबा चड्ढा और सिमोन सिंह जैसे कलाकार नजर आए। इसका निर्देशन आनंद तिवारी ने किया है। अमृतपाल सिंह बिंद्रा ने फिल्म के निर्माण की जिम्मेदारी संभाली है। आइए जानते हैं दो घंटे 14 मिनट की यह फिल्म कैसी है।
समलैंगिकता को केंद्र में रखकर बुनी गई है कहानी
गुजराती पृष्ठभूमि पर आधारित फिल्म में माधुरी ने एक समलैंगिक मां (पल्लवी) का किरदार निभाया है। इसमें अभिनेता गजराव (मनोहर) उनके पति की भूमिका में दिखे हैं। ऋत्विक माधुरी के बेटे तेजस बने हैं, जिनका बरखा सिंह (ईशा) के साथ रिश्ता तब खतरे में पड़ जाता है, जब लोगों को माधुरी के समलैंगिक होने के बारे पता चलता है। इसमें समलैंगिकता के मुद्दे से उपजे कई सवालों को टटोलने की कोशिश की गई है।
न्यूजबाइट्स प्लस
भारत में समलैंगिक संबंधों को कानूनी मान्यता मिली है, लेकिन समलैंगिक शादी अभी भी गैरकानूनी है। सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में ऐतिहासिक फैसले में समलैंगिकता को अपराध मानने वाली धारा 377 को रद्द करते हुए समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया था।
कैसा रहा माधुरी सहित अन्य कलाकारों का अभिनय?
माधुरी ने अपने किरदार के साथ न्याय करने की कोशिश की, लेकिन कहानी ने उनका साथ नहीं दिया। वह अभिनय के मोर्चे पर औसत लगीं। माधुरी के साथ गजराव की जोड़ी अटपटी और पूरी तरह से बेमेल लगी। ऋत्विक अपने किरदार में इमोशन नहीं ला पाए। पूरी फिल्म में ऋत्विक और सृष्टि का रोमांस बनावटी-सा लगता है। नकली से लगते अमेरिकी उच्चारण की अंग्रेजी बोलते हुए रजित, शीबा और बरखा अपनी कमजोरी को दर्शाते हैं।
कहानी में नहीं है ट्विस्ट और रोमांच
फिल्म की कहानी में ना कोई ट्विस्ट और ना ही रोमांच है। पहले से यह संकेत मिलने लगता है कि कहानी का अंत क्या होगा। स्क्रिप्ट की यही कमजोरी दर्शकों को बांधने में विफल साबित हुई। मेकर्स को समलैंगिकता की कहानी कहने का सलीका नहीं आया। एक गंभीर विषय पर बनी यह फिल्म कभी भी गंभीरता का एहसास नहीं दिलाती। समलैंगिकता की तह में जाकर किरदारों को मजूबत होने नहीं दिया गया।
निर्देशन में कच्चे खिलाड़ी साबित हुए आनंद
निर्देशन की पिच पर आनंद कच्चे खिलाड़ी साबित हुए। माधुरी जैसी दिग्गज अभिनेत्री की मौजूदगी को वह नहीं भुना पाए। फिल्म में बेबाकी से समलैंगिकता के मुद्दे को भी नहीं उकेरा गया। माधुरी के किरदार को और खुलकर सामने लाया जा सकता था। 'लव पर स्क्वायर फिट' और 'बंदिश बैंडिट्स' जैसी फिल्मों का निर्देशन कर चुके आनंद की यह फिल्म देखकर लगता ही नहीं कि यह उनकी फिल्म है।
फिल्म के म्यूजिक में नहीं है दम
जो लोग अच्छी म्यूजिक की उम्मीद लगाए फिल्म देखेंगे, उन्हें निराशा हाथ लगेगी। फिल्म के गाने कोई खास नहीं हैं, जो दर्शकों की जुबां पर चढ़ जाएंगे। फिल्म के डायलॉग भी साधारण ही हैं।
क्या है फिल्म की अच्छाइयां?
मेकर्स इस कोशिश के लिए बधाई के पात्र हैं कि उन्होंने उस मुद्दे पर फिल्म बनाई, जिस पर बात करने से लोग कतराते हैं। फिल्म में होमोसेक्सुअल और गे जैसे शब्द खूब इस्तेमाल किए गए हैं। आधुनिक पीढ़ी की फिल्मों में ऐसी बाते की जा रही हैं, यह अच्छी बात हो सकती है। फिल्म में हल्की-फुल्की कॉमेडी अच्छी लग सकती है। इसके अलावा फिल्म रिश्तों के ताने-बाने को भी दर्शाती है। हमेशा की तरह माधुरी का डांस देखने लायक है।
फिल्म देखें या नहीं?
माधुरी के प्रशंसक यह फिल्म देख सकते हैं। अभिनेत्री ने फिल्म में पहली बार इस प्रकार का किरदार निभाया है। यह एक OTT प्लेटफॉर्म के मिजाज की हल्की-फुल्की और सपाट फिल्म है। उन लोगों को अपना समय बर्बाद नहीं करना चाहिए, जो अच्छी कहानी वाली फिल्म देखने के शौकीन हों। समलैंगिकता पर बनी फिल्म में इमोशन ढूढ़ने वालों को भी इसमें कुछ नहीं मिलेगा। हमारी तरफ से इस फिल्म को पांच में से दो स्टार।