किसी फिल्म का हिट, सुपरहिट, ब्लॉकबस्टर या फ्लॉप होना कैसे तय होता है?
क्या है खबर?
फिल्मों के बिजनस पर मीडिया से लेकर कलाकारों के फैंस तक, लगभग सभी की खास नजर रहती है।
आपने अकसर सुना होगा कि कोई फिल्म 100-200 करोड़ रुपये कमाकर भी सुपरहिट नहीं कहलाती, जबकि कुछ फिल्में महज 60-70 करोड़ रुपये कमाने के बाद भी सुपरहिट कही जाने लगती हैं।
आखिर किन आधार पर फिल्मों को फ्लॉप, हिट, सुपरहिट या ब्लॉकबस्टर का टैग दिया जाता है? आइए समझते हैं इसका पूरा गणित।
शुरुआत
सबसे पहले जानिए कौन करता है फिल्म पर खर्चा
प्रोड्यूसर वह है जो फिल्म का निर्माण कर रहा है, जिसने फिल्म के लिए पैसे लगाए हैं। प्रोड्यूसर फिल्म के लिए लेखक, निर्देशक, संगीतकार, कोरियोग्राफर आदि की नियुक्ति करता है। कलाकारों की फीस समेत हर तरह के खर्चे उठाता है।
प्रोड्यूसर कोई एक शख्स भी हो सकता है और कंपनी भी। आमतौर पर प्रोडक्शन कंपनी के मालिक को ही फिल्म का प्रोड्यूसर कहा जाता है।
जैसे, यदि फिल्म धर्मा प्रोडक्शन की है तो करण जौहर को प्रोड्यूसर कहा जाता है।
डिस्ट्रीब्यूटर
बनाकर डिस्ट्रीब्यूटर को बेच दी जाती है फिल्म
डिस्ट्रीब्यूटर का काम है फिल्म की मार्केटिंग करना और उसे रिलीज कराना।
प्रोड्यूसर की ही तरह डिस्ट्रीब्यूटर भी कोई एक व्यक्ति भी हो सकता है और कोई एक कंपनी भी।
यशराज फिल्म्स, एरोज इंटरनैशनल, रिलायंस एंटरटेनमेंट, वायाकॉम 18 जैसी कंपनियां प्रोडक्शन और डिस्ट्रीब्यूशन दोनों का काम करती हैं।
जरूरी नहीं है कि जिस कंपनी ने फिल्म बनाई है वही फिल्म को डिस्ट्रीब्यूट भी करे। वहीं कई बार कंपनियां अपनी फिल्मों का डिस्ट्रीब्यूशन खुद करना चुनती हैं।
घाटा
अकसर प्रोड्यूसर की बजाय डिस्ट्रीब्यूटर को क्यों होता है घाटा?
फिल्म बनने के बाद प्रोड्यूसर फिल्म को डिस्ट्रीब्यूटर को बेच देता है।
प्रोड्यूसर फिल्म को इसको बनाने में लगी लागत से ज्यादा पैसों में बेचता है। यही वजह है कि बॉक्स ऑफिस पर जब कोई फिल्म पिटती है तो आप सुनते हैं कि डिस्ट्रीब्यूटर को घाटा हुआ।
'लाइगर' और 'लाल सिंह चड्ढा' जैसी फिल्मों के पिटने पर फिल्म के कलाकार और प्रोड्यूसर डिस्ट्रीब्यूटर्स के नुकसान की भरपाई के लिए आगे आए थे और उन्हें कुछ पैसे लौटाए थे।
शब्दावली
कमाई समझने के लिए समझिए इन शब्दों का मलतब
फिल्म बनाने और उसके प्रचार पर खर्च हुए कुल पैसों को फिल्म का 'लैंडिंग कॉस्ट' कहा जाता है। फिल्म का मुनाफा इसके 'लैंडिंग कॉस्ट' से ही तय होता है।
आप फिल्म के लिए जो टिकट खरीदते हैं, उसमें एंटरटेनमेंट टैक्स और अन्य तरह के चार्ज भी शामिल होते हैं। टिकट की कीमत से हुई कुल कमाई को फिल्म का 'ग्रॉस कलेक्शन' कहते हैं।
वहीं टैक्स हटाकर जो पैसा डिस्ट्रीब्यूटर को मिलता है उसे फिल्म का 'नेट कलेक्शन' कहते हैं।
गणित
क्या है हिट-फ्लॉप का गणित?
यदि फिल्म की कमाई अपनी 'लैंडिंग कॉस्ट' के आसपास तक पहुंच जाए तो उसे औसत फिल्म कहेंगे, वहीं अगर फिल्म 'लैंडिंग कॉस्ट' के 100 प्रतिशत से थोड़ा सा भी ज्यादा यानी 101-120 प्रतिशत की कमाई करे तो उसे हिट कहते हैं।
अगर कोई फिल्म अपने 'लैंडिंग कॉस्ट' के 150 प्रतिशत तक की कमाई कर ले तो वह सुपरहिट कहलाती है। वहीं ब्लॉकबस्टर वे फिल्में होती हैं जो अपनी लागत से करीब 150 से 170 प्रतिशत तक की कमाई करे।
जानकारी
ये होती हैं फ्लॉप और ब्लॉकबस्टर फिल्में
जो फिल्में अपनी 'लैंडिंग कॉस्ट' से 200 प्रतिशत या उससे ज्यादा का नेट बॉक्स ऑफिस कलेक्शन कर लेती हैं, उन्हें ऑलटाइम ब्लॉकबस्टर कहा जाता है और जो फिल्में अपनी लागत के आसपास भी न पहुंच पाएं वे फ्लॉप हो जाती हैं।
तुलना
उदाहरण से समझें गणित
'द कश्मीर फाइल्स' करीब 100 करोड़ कमाने के बाद ही सुपरहिट कहलाने लगी थी, वहीं 'ब्रह्मास्त्र' जैसी फिल्म को हिट कहलाने के लिए भी 400 करोड़ रुपये तक पहुंचने की मशक्कत करनी पड़ी।
ऐसा इसलिए, क्योंकि 'द कश्मीर फाइल्स' करीब 15 करोड़ रुपये में बनी थी, फिल्म ने 250 करोड़ रुपये से ज्यादा कमाए। यह फिल्म ऑलटाइम ब्लॉकबस्टर हुई। वहीं 'ब्रह्मास्त्र' का बजट 410 करोड़ रुपये था, इसलिए फिल्म को हिट होने के लिए 410 करोड़ का आंकड़ा छूना पड़ा।
कमाई
सिर्फ आपके खरीदे टिकट से ही नहीं होती फिल्म की कमाई
सुपरहिट-फ्लॉप होने में मुख्यत: नेट बॉक्स ऑफिस कलेक्शन को गिना जाता है, लेकिन निर्माताओं की कमाई सिर्फ फिल्म के टिकट से ही नहीं होती।
निर्माता फिल्म के सैटेलाइट राइट्स और OTT राइट्स बेचकर टीवी चैनल और स्ट्रीमिंग पार्टनर से भी पैसा कमाते हैं।
फिल्म के गानों से होने वाले लाभ को भी निर्माता म्यूजिक कंपनी के साथ साझा करते हैं।
कई बार फिल्म में किसी खास ब्रांड का जिक्र होता है, ऐसे में उस ब्रांड से भी पैसा मिलता है।