फिल्म 'ब्लाइंड' रिव्यू: न रहस्य दिखा, न रोमांच; सोनम की कोशिश नाकाम
क्या है खबर?
सोनम कपूर को आखिरी बार 2019 में फिल्म 'जोया फैक्टर' में देखा गया था, जो कब आई-गई, पता ही नहीं चला। 2020 में उन्होंने अपने पिता अनिल कपूर की फिल्म 'AK वर्सेज AK' में छुटमुट किरदार किया।
2022 में सोनम मां बन गईं और अभिनय से ब्रेक ले लिया। अब फिल्म 'ब्लाइंड' के साथ उन्होंने वापसी की है, जिसने 7 जुलाई को जियो सिनेमा पर दस्तक दी है।
अब कैसी रही सोनम की ये वापसी, जानिए फिल्म का रिव्यू पढ़कर।
कहानी
हादसे से शुरू होती कहानी
फिल्म की कहानी के केंद्र में जिया (सोनम) है, जो पुलिस अफसर हैं। उसका मुंहबोला भाई रैपर बनना चाहता है, जिसे क्लब से घसीटकर वह गाड़ी में ले आती है और उसे हथकड़ी से बांध लेती है क्योंकि उसकी परीक्षाएं सिर पर हैं।
दोनों के बीच इसी को लेकर झड़प होती है और वे एक दुर्घटना का शिकार हो जाते हैं। इसके बाद जहां जिया अपने भाई को खो देती है, वहीं उसकी आंखों की रोशनी भी चली जाती है।
कहानी
सिरफिरे किलर और दृष्टिहीन महिला के इर्द-गिर्द घूमती कहानी
जिया अकेली हो जाती है और अपनी नौकरी से भी हाथ धो बैठती है।
उधर शहर में एक के बाद एक हो रहीं लड़कियों की हत्याएं भी सुर्खियों में हैं, जिसका संबंध एक साइको किलर (पूरब कोहली) से है। एक रात उसी किलर से जिया टकराती है, जो उसे भी मारने पर तुला है। जिया किसी तरह उसके चंगुल से निकल जाती है।
अब इस जानलेवा खेल में आगे क्या होता है, इससे आगे की कहानी बताना सही नहीं होगा।
अभिनय
खराब लेखन ने की सोनम की वापसी खराब
सोनम ने कुछ अलग करने की कोशिश तो की। एक दृष्टिहीन लड़की का चुनौतीपूर्ण किरदार उन्होंने पूरे दिल से निभाया।
सोनम ने शुरू से लेकर अंत तक अपने किरदार की संजीदगी को नहीं छोड़ा और एक्शन दृश्यों के साथ भी पूरा इंसाफ किया।
पूरी फिल्म की कमान उन्हीं के हाथ में थी, लेकिन उनकी मेहनत कमजोर लेखन के भेंट चढ़ गई।
सोनम की भूमिका में गहरेपन की कमी काफी खलती है और इसमें गलती सिर्फ और सिर्फ लेखक की है।
जानकारी
अन्य कलाकारों का हाल
किलर बने पूरब कोहली एक बढ़िया कलाकार हैं। उन्हाेंने स्तब्ध किया, लेकिन निर्देशक ने उनका किरदार अधपका छोड़ दिया। उनकी भूमिका विकसित ही नहीं की गई। विनय पाठक, शुभम सराफ और लिलेट दुबे को भी उनकी प्रतिभा के हिसाब से फिल्म में जगह नहीं मिली।
निर्देशन
निर्देशन में कमियां ही कमियां
माना कि निर्देशक शोम मखीजा से रोमांच डालने में चूक हो गई, लेकिन फिल्म के क्रिएटिव डायरेक्टर और निर्माता सुजॉय घोष कैसे चूक गए, जो 'बदला' और 'कहानी' जैसी शानदार सस्पेंस थ्रिलर फिल्में पेश कर चुके हैं।
किरदार बड़े कच्चे हैं। कोई भी भूमिका ठीक से नहीं बुनी गई।
शोम के लेखन में वो बात ही नहीं, जिसकी तारीफ की जाए। लोकेशन और लाइट के अलावा अगर पटकथा पर थोड़ा गौर किया होता तो कलाकारों को खामियाजा न भुगतना पड़ता।
सवाल
मन में उठते हैं ये सवाल
यह समझ नहीं आता कि साइको किलर क्यों एक के बाद एक लड़कियों की जान लेता है? उसे आखिर क्यों लड़कियों से इतनी नफरत है?
फिल्म में एक चीज यह भी अखरती है कि कहानी आज के समय पर सेट है तो क्या सीसीटीवी की मदद से किलर को नहीं पकड़ा जा सकता था?
इसके अलावा जिया की नौकरी जाने के बाद उसका खर्च कैसे चल रहा है?
पूरी फिल्म निकल जाएगी, लेकिन आपको इन सवालों के जवाब नहीं मिलेंगे।
जानकारी
संगीत और सिनेमैटोग्राफी
इस 2 घंटे की फिल्म में जो सबसे अच्छी बात लगी, वो हैं इसके दृश्य। इसके लिए गैरिक सरकार की तारीफ करनी होगी, जो कैमरे के साथ खेलने में कामयाब रहे। दूसरी तरफ संगीत के नाम पर फिल्म में शोर-शराबे से ज्यादा कुछ नहीं है।
गब्रगब्र
देखें या न देखें?
क्यों देखें?
'ब्लाइंड' देखने की एकमात्र वजह सोनम हैं। कहानी नई है, लेकिन इसे परोसा ठीक से नहीं गया। फ्री के चक्कर में हैं तो खाते-पीते या बाकी काम करते हुए इस फिल्म को देखा जा सकता है।
क्यों न देखें?
अगर आप रोमांच या रहस्य के लालच में फिल्म देखने वाले हैं तो गच्चा खा जाएंगे क्योंकि फिल्म कहने को तो सस्पेंस थ्रिलर है, लेकिन न तो इसमें सस्पेंस है और ना ही थ्रिल।
न्यूजबाइट्स प्लस स्टार- 1.5/5