'गोविंदा नाम मेरा' रिव्यू: बेदम कहानी और कॉमेडी के नाम पर मजाक है फिल्म
विक्की कौशल की फिल्म 'गोविंदा नाम मेरा' आज यानी 16 दिसंबर को डिज्नी प्लस हॉटस्टार पर रिलीज हो गई है। फिल्म में भूमि पेडनेकर और कियारा आडवाणी ने अहम भूमिका निभाई है। शशांक खैतान के निर्देशन में बनी इस फिल्म के प्रोडक्शन का काम करण जौहर ने संभाला है। फिल्म को लेकर दर्शकों के बीच खासा उत्साह था, लेकिन क्या फिल्म देखने के बाद भी उनका यह उत्साह बरकरार रहेगा, यह जानने के लिए पढ़िए 'गोविंदा नाम मेरा' का रिव्यू।
कहानी के केंद्र में है गोविंदा
यह कहानी गोविंदा वाघमारे (विक्की) की है। उसकी पत्नी गौरी (भूमि) ने उसकी जिंदगी में तबाई मचाई हुई है और गोविंदा अपनी गर्लफ्रेंड सुकु (कियारा) के साथ घर बसाने का सपना देखता है, लेकिन उसके इस ख्वाब के बीच रोड़ा बनता है वो विवादित बंगला, जो उसके मृत माता-पिता की निशानी है। गोविंदा की दुनिया तब उलट-पलट होती है, जब गौरी की हत्या हो जाती है। उसकी किस्मत को क्या मंजूर है, ये जानने के लिए आपको फिल्म देखनी होगी।
कॉमेडी जोनर में नही गली विक्की की दाल
सबसे पहले बात करते हैं फिल्म के हीरो विक्की की, जिनकी कॉमेडी देखने को दर्शक उतावले हो रहे थे, लेकिन उनकी सपाट डायलॉग डिलिवरी ने सिर पकड़ने पर मजबूर कर दिया। हालांकि, यहां गलती डायलॉग राइटर की भी है। 'पिघल जाएगा भाई, बर्फ थैली में है', इस तरह के संवादों से भला कौन लोटपोट होगा? विक्की हमेशा गंभीर भूमिकाओं में अच्छे लगे हैं, लेकिन कॉमेडी में हाथ आजमाकर उन्होंने अपनी समझदार हीरो वाली छवि जरूर खराब कर दी।
कियारा और भूमि की औसत अदाकारी
भूमि पेडनेकर से हमेशा की तरह बेहतर की उम्मीद थी, लेकिन पता नहीं क्या सोचकर तो उन्होंने फिल्म के लिए हामी भरी? उनके किरदार का स्कोप ही नहीं था, वहीं पूरी फिल्म में एक ही जैसे हाव-भाव उन्हें पर्दे पर देखने का मजा खराब कर देते हैं। बात करें कियारा की तो वह इसमें एक संघर्षरत कोरियोग्राफर बनी हैं। उन्होंने भी फिल्म में ऐसा कुछ नहीं किया, जिसकी तारीफ की जाए। बस इतना है कि उनकी भूमिका उनपर जंची है।
सरप्राइज पैकेज निकले रणबीर और रेणुका
फिल्म में रणबीर कपूर के महज दो मिनट के किरदार ने महफिल लूट ली। उनका डांस सीक्वेंस मजेदार है, वहीं विक्की की मां बनी रेणुका शहाणे ने भी फिल्म में अपने अभिनय का जलवा दिखाया है। वकील के किरदार में अमेय वाघ भी प्रभावी लगे।
निर्देशन में मात खा गए शशांक
'हम्प्टी शर्मा की दुल्हनिया' और 'बद्रीनाथ की दुल्हनिया' जैसी फिल्में निर्देशित कर चुके शशांक ने 'धड़क' के बाद फिर अपने निर्देशन से निराश कर दिया। फिल्म को लेकर हो-हल्ला मचा हुआ था कि इसमें एक शानदार मर्डर मिस्ट्री को अलग ढंग से परोसा गया है, लेकिन वो नयापन दूर-दूर तक फिल्म में नहीं दिखता। शशांक एक मसालेदार एंटरटेनर देने से चूक गए, वहीं फर्स्ट हाफ निकल जाता है और यह समझ नहीं आता कि आखिर फिल्म कहना क्या चाहती है।
संगीत और सिनेमैटोग्राफी
संगीत भी फिल्म में रंग नहीं भरता। संवादों के साथ गाने भी ठूंसे हुए से लगते हैं और बोर करते हैं। दूसरी तरफ विदुषी तिवारी दृश्यों को कैमरे में कैद करने में वो होशियारी नहीं दिखा पाईं, जो वह गानों की सिनेमैटोग्राफी में दिखाती हैं।
ये भी हैं कमजोर कड़ियां
कॉमेडी फिल्मों में सारा खेल डायलॉग का होता है, लेकिन कमजोर संवादों ने इसका बंटाधार कर दिया। फिल्म में ऐसा कोई किरदार नहीं है, जो याद रह जाए। विक्की और कियारा पर फिल्माए गए डांस नंबर भी असरदार नहीं हैं। फिल्म देख लगता है कि कैसे निर्माता ने एक बिन सिर-पैर की कहानी पर्दे पर लाने की हिम्मत की। कहानी कसी हुई भी नहीं है। क्लाइमैक्स तक पहुंचते-पहुंचते बोरियत से भर जाते हैं। कई दृश्य दोहराए हुए से लगते हैं।
फिल्म देखें या ना देखें?
क्यों देखें?- कुल मिलाकर अगर आप वेल्ले हैं और बिना दिमाग लगाए फिल्म देखने वालों में से हैं तो टाइमपास के लिए आप यह फिल्म देख सकते हैं। हालांकि, थोड़े थ्रिल और सस्पेंस के लिहाज से इसे नंबर मिल सकते हैं। क्यों न देखें?- अगर आप कॉमेडी या यह सोचकर फिल्म देखने की सोच रहे हैं कि इसमें आपको कुछ नया देखने को मिलेगा तो अपना वक्त बर्बाद न करें। हमारी तरफ से 'गोविंदा नाम मेरा' को डेढ़ स्टार।
न्यूजबाइट्स प्लस
'गोविंदा नाम मेरा' करण जौहर की इस साल आई दूसरी ऐसी फिल्म है, जो OTT प्लेटफॉर्म पर स्ट्रीम हुई है। इससे पहले करण का धर्मा प्रोडक्शन 'गहराइयां' लेकर आया था। हालांकि, अमेजन प्राइम वीडियो पर आई उनकी इस फिल्म को दर्शकों ने नकार दिया था।