रोल्स रॉयस कारों को क्यों नहीं मिलती सेफ्टी रेटिंग? जानिए क्या है इसकी वजह
लोग नई कार खरीदते समय डिजाइन और फीचर के साथ सुरक्षा सुविधाओं को भी प्राथिमकता देते हैं। गाड़ियां कितनी सुरक्षित है, यह पता लगाने के लिए सेफ्टी रेटिंग देखना सबसे अच्छा तरीका है। सभी कार निर्माता अपनी गाड़ियां सेफ्टी रेटिंग के लिए क्रैश टेस्ट के लिए भेजती है। कम लोगों को पता होगा कि दुनिया की सबसे महंगी कार बनाने वाली रोल्स रॉयस की लग्जरी कारों का क्रैश टेस्ट नहीं होता। आइए जानते हैं इसके पीछे की क्या वजह है।
क्या है क्रैश टेस्ट?
कार निर्माता कंपनियां जब नई गाड़ी उतारती हैं तो उन्हें ग्लोबल भारत न्यू कार असिस्टेंस प्रोग्राम (GNCAP) जैसी संस्था में क्रैश टेस्ट के लिए भेजा जाता है। इन गाड़ियों को बच्चों और वयस्कों की सुरक्षा के आधार पर परखा जाता है। इसके बाद इन्हें 0 से लेकर 5 के बीच सेफ्टी रेटिंग दी जाती है। 4-5 रेटिंग गाड़ियों को सुरक्षा के लिहाज से अच्छा माना जाता है। क्रैश टेस्ट के लिए कम से कम 4-5 कार होनी चाहिए।
महंगा पड़ता है क्रैश टेस्ट
रोल्स रॉयस कारें पूरी तरह से ग्राहक की पसंद के अनुसार कस्टमाइज तरीके से बनाई जाती हैं। हर कार एक-दूसरे से अलग होती है। अगर, हर लग्जरी कार का क्रैश टेस्ट किया जाए तो कंपनी को बहुत सारी कारें बनानी पड़ेंगी, जो कि बहुत महंगा होगा। लग्जरी कार निर्माता बहुत कम संख्या में कारें बनाती है। क्रैश टेस्ट के बाद गाड़ी पूरी तरह से खराब हो जाती है। इससे कंपनी को बड़ा नुकसान झेलना पड़ेगा।
क्रैश टेस्ट से ब्रांड की साख पर पड़ सकता है असर
ब्रिटिश लग्जरी कार निर्माता अपनी गाडियों की सेफ्टी को लेकर बहुत गंभीर है। कंपनी अपनी कारों में सबसे अच्छी क्वालिटी के मैटेरियल का इस्तेमाल करती है और उन्हें अपने स्तर पर कई तरह के टेस्ट से गुजारा जाता है। इन गाड़ियों का क्रैश टेस्ट नहीं कराने के पीछे एक कारण यह भी है कि कंपनी अपनी कारों को सबसे सुरक्षित बताती है। क्रैश टेस्ट में कार को नुकसान पहुंचने से ब्रांड की साख पर बुरा असर पड़ सकता है।