अक्टूबर तक आ सकती है फ्लैक्स-फ्यूल वाहनों के लिए गाइडलाइन, कीमतों पर पड़ेगा असर
पिछले महीने खबर आई थी कि सरकार ऑटो सेक्टर में फ्लैक्स-फ्यूल इंजन को अनिवार्य करने पर विचार कर रही है। अब ऑटो कंपनियों को जल्द ही ऐसे पैसेंजर और कमर्शियल वाहनों के निर्माण के लिए कहा जा सकता है जो पेट्रोल-डीजल की जगह फ्लैक्स-फ्यूल का उपयोग करते हों। इस साल अक्टूबर तक नई गाइडलाइंस आएंगी, जिनमें फ्लैक्स-फ्यूल वाहनों के इंजन की कॉन्फिगरेशन से जुड़े नियमों और दूसरी चीजों को तय किया जा सकता है।
क्या होते हैं फ्लैक्स-फ्यूल वाहन?
पेट्रोलियम सचिव तरुण कपूर ने बताया कि वाहनों को चलाने के लिए जैव ईंधन के ज्यादा उपयोग को सुनिश्चित करने के लिए सरकार फ्लैक्स फ्यूल वाहनों (FFV) के उपयोग को बढाने पर विचार कर रही है। फ्लैक्स-फ्यूल वाहन इथेनॉल ब्लेंड के विभिन्न स्तरों के साथ गैसोलीन और डोप्ड पेट्रोल दोनों पर चल सकता है। इस तरह के वाहन से लोगों को कीमत और सुविधा के अनुसार गैसोलीन और डोप्ड पेट्रोल में स्विच करने का विकल्प मिलता है।
मौजूद समय मे भी होता है इथेनॉल का प्रयोग
मौजूदा नियमों के अनुसार, पेट्रोल में 10 फीसदी तक इथेनॉल मिलाया जा सकता है। हालांकि, कम आपूर्ति और परिवहन चुनौतियों की वजह से 10 प्रतिशत इथेनॉल मिला पेट्रोल केवल 15 राज्यों में उपलब्ध है, जबकि अन्य राज्यों में फ्लैक्स फ्यूल शून्य से पांच प्रतिशत के बीच है। इसी क्रम में सरकार ने 2023 तक 10 फीसदी इथेनॉल ब्लेंडिंग और 2030 तक 20 फीसदी इथेनॉल ब्लेंडिंग का लक्ष्य रखा था, जिसे संशोधित कर अब 2025 तक कर दिया गया है।
पेट्रोल की तुलना में सस्ता है फ्लैक्स फ्यूल
जानकारी के लिए आपको बता दें कि इथेनॉल ईंधन की कीमत करीब 60-62 रुपये प्रति लीटर पड़ेगी, जबकि देश के कई शहरों में पेट्रोल की कीमत 100 रुपये प्रति लीटर के पार जा चुकी है। इस प्रकार फ्लैक्स-फ्यूल से आम आदमी को प्रति लीटर 40 रुपये तक की बचत हो पाएगी। साथ ही ग्राहकों के पास कच्चे तेल से बने ईंधन के अलावा 100 फीसदी इथेनॉल से बना ईंधन इस्तेमाल करने का विकल्प होगा।
वाहनों की लागत में हो सकती है वृद्धि
अगर फ्लैक्स-फ्यूल के उपयोग के लिए मानकों को अनिवार्य कर दिया गया तो ऑटोमोबाइल कंपनियों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। पहले से ही भारत में 10 प्रतिशत इथेनॉल ब्लेंडेड पेट्रोल के उपयोग और BS6 मानक की शुरूआत ने वाहन बनाने की लागत में इजाफा किया है। अब ऐसे में ब्लेंडिंग को 20 प्रतिशत तक ले जाने के लिए वाहन कॉन्फिगरेशन में किए जाने वाले बदलाव से अतिरिक्त निवेश की आवश्यकता होगी, जिससे कीमतें बढ़ेंगी।