कोरोना वायरस: सात अरब लोगों तक वैक्सीन पहुंचाने में आएंगी ये चुनौतियां
दुनियाभर में वैज्ञानिकों की कई टीमें कोरोना वायरस (COVID-19) की रोकथाम के लिए वैक्सीन तैयार करने में जुटी हुई हैं। अब चूंकि कई वैक्सीन ट्रायल के अंतिम चरण में पहुंच गई हैं तो उनके वितरण के बारे में योजनाएं बननी शुरू हो गई हैं। ये भी सवाल उठ रहा है कि दुनिया की सात अरब आबादी तक वैक्सीन कैसी पहुंचाई जाएगी? आइये, उन कुछ चुनौतियों के बारे मे जानते हैं जो वैक्सीन के वितरण को लेकर आने वाली हैं।
"वैक्सीन बनाने की समयसीमा घटकर आधी हुई"
इंग्लैंड में तैयार हो रही वैक्सीन मैन्युफैक्चरिंग एंड इनोवेशन सेंटर (VMIC) के मुख्य कार्यकारी मैथ्यू डचर कहते हैं कि वैक्सीन तैयार करने की समयसीमा लगभग आधी कर दी गई है। पहले जहां लग रहा था कि यह 2022 के अंत तक तैयार होगी, अब उम्मीद है कि इसे अगले साल ऑनलाइन कर दिया जाएगा। वो कहते हैं कि इस तरह की वैक्सीन को असरकार और तेजी से बनाना पूरी दुनिया के लिए महत्वपूर्ण है।
दुनियाभर में होगी वैक्सीन के उत्पादन और वितरण की जरूरत
इस खतरनाक वायरस की वैक्सीन तैयार करने में आगे चल रही ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ने इसके ट्रायल के नतीजे आने से पहले ही इसके उत्पादन के लिए लैबोरेट्रीज का इंतजाम कर लिया है। जाहिर है कि दुनिया के लिए अरबों वैक्सीन की जरूरत होगी। इसलिए दुनियाभर में उनका उत्पादन, वितरण और देखरेख करनी होगी। इंटरनेशनल वैक्सीन एलायंस गावी (Gavi) भी देशों से अपील कर रहा है कि उन्हें वैक्सीन के वितरण के बारे में सोचना शुरू कर देना चाहिए।
अंतरराष्ट्रीय सहयोग जुटाना मुश्किल काम
यह जितना लग रहा है, उतना आसान है नहीं। इस मामले में अंतरराष्ट्रीय सहयोग जुटाना काफी मुश्किल होगा। कई अमीर देश पहले से ही फार्मा कंपनियों के साथ द्वीपक्षीय समझौते कर रहे हैं ताकि अगर वैक्सीन बनती है तो उन्हें उसकी आपूर्ति हो सके।
'वैक्सीन नेशनलिज्म' बड़ी बाधा- सेथ
बीबीसी के मुताबिक, गावी के CEO सेथ बार्क्ले कहते हैं कि उनके सामने सबसे बड़ी बाधा 'वैक्सीन नेशनलिज्म' है। सेथ के अनुसार, "मुझे लगता है कि सभी देशों को दुनिया के नजरिये से देखना चाहिए। न सिर्फ इसलिए कि यह सही तरीका है बल्कि इसलिए भी क्योंकि इससे उन्हें ही फायदा होगा। अगर आपके आसपास के देशों में वायरस फैल रहा है तो आप सफर और व्यापार आदि शुरू नहीं कर सकते। सब सुरक्षित होंगे तभी हम सुरक्षित होंगे।"
वैक्सीन भरने के लिए शीशियों की हो सकती है कमी
विकासशील देशों तक वैक्सीन पहुंचाने की कोशिश के साथ-साथ गावी को इसके वितरण के लिए कुछ बेहद साधारण कदमों पर भी विचार करना होगा। यह तक देखना होगा कि क्या दुनिया में इतनी बड़ी मात्रा में कांच की शीशियां मौजूद हैं, जिनमें वैक्सीन की खुराक भरी जाएंगे। ऐसी रिपोर्ट्स हैं कि शीशियों को लेकर मारामारी हो सकती है। अगर शीशियों की कमी हो सकती है तो वैक्सीन को कम तापमान पर रखने के लिए फ्रीज भी कम रह सकते हैं।
गावी ने कर लिया शीशियों का इंतजाम
बार्क्ले कहते हैं कि वो शीशियों को लेकर काफी चिंतित थे। इसलिए उन्होंने पहले से ही 200 करोड़ खुराक के लिए शीशियां खरीद ली हैं। उनका कहना है कि अगले साल के अंत तक इतनी ही खुराक बन पाएंगी।
वैक्सीन रखने के लिए फ्रीज की उपलब्धता बन सकती है बड़ी चुनौती
वैक्सीन को कम तापमान पर रखने के लिए फ्रीज की जरूरत आदि को लेकर बर्मिंघम यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और कोल्ड चेन लॉजिस्टिक के विशेषज्ञ टॉबी पीटर्स गावी जैसे संगठनों की मदद कर रहे हैं। वो कहते हैं कि केवल वैक्सीन फ्रीज की ही जरूरत नहीं होगी। वैक्सीन की खुराकों को विमान में ले जाने, वहां से स्थानीय स्टोर और आगे लोगों तक पहुंचाने आदि के लिए हर जगह फ्रीज चाहिए होगा। इन सबको बिना कोई गलती किए काम करना होगा।
फूड और ड्रिंक कंपनियों से चल रही बात
इस काम के लिए प्रोफेसर पीटर दुनिया की बड़ी फूड और ड्रिंक कंपनियों से बात कर रहे हैं ताकि उनकी कोल्ड स्टोरेज को वैक्सीन की खुराक रखने के लिए काम में लिया जा सके। यह बहुत बड़ा काम होने वाला है।
वैक्सीनेशन कार्यक्रम चलाना भी होगा चुनौती भरा काम
इसके अलावा देशों के सामने वैक्सीनेशन के लिए भी कई चुनौतियां होंगी। मसलन वैक्सीन की जरूरत किसे है? हाई रिस्क ग्रुप में कौन आते हैं और किसे प्राथमिकता देनी है। इंग्लैंड के वेलकम ट्रस्ट के वैक्सीन प्रमुख डाक्टर चार्ली वेल्लर कहते हैं कि इन सबका निर्धारण करना जरूरी है क्योंकि शुरुआत में वैक्सीन की उपलब्धता मांग से कम होगी। ऐसे में वैक्सीनेशन करना काफी चुनौतीभरा काम रहने वाला है।