WHO ने मंकीपॉक्स का नाम बदलकर MPOX क्यों किया?
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने मंकीपॉक्स बीमारी का नाम बदलकर MPOX रख दिया गया है। दुनियाभर के वैज्ञानिक पिछले काफी समय से इसकी मांग कर रहे थे और विशेषज्ञों से विचार-विमर्श के बाद अब WHO ने इस पर अंतिम मुहर लगा दी है। उसने कहा कि मंकीपॉक्स नाम का इस्तेमाल धीरे-धीरे खत्म किया जाएगा और अगले एक साल तक दोनों नामों का साथ-साथ इस्तेमाल होगा। आइए समझने की कोशिश करते हैं कि WHO ने मंकीपॉक्स का नाम क्यों बदला है।
सबसे पहले जानें कैसे पड़ा था मंकीपॉक्स नाम
मंकीपॉक्स एक जूनोटिक (एक प्रजाति से दूसरी प्रजाति में फैलने वाली) वायरस है जो पॉक्सविरिडाइ फैमिली के ऑर्थोपॉक्सवायरस जीनस से आता है। इस वायरस का सबसे पहले 1958 में पता चला था। तब रिसर्च के लिए तैयार की गई डेनमार्क की बंदरों की बस्ती में इस वायरस के कारण पॉक्स जैसी बीमारी देखी गई थी। इसी से इस बीमारी को 'मंकीपॉक्स' नाम मिला, हालांकि इससे चूहे जैस जानवर सबसे अधिक संक्रमित होते हैं।
अफ्रीकी और समलैंगिक लोगों के खिलाफ भेदभाव का कारण बना नाम
इंसानों में मंकीपॉक्स का पहला मामला 1970 में अफ्रीकी देश कांगो में सामने आया था। मौजूदा संक्रमण में भी अश्वेत और हिस्पैनिक समुदाय के लोग इस वायरस से सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं और "मंकीपॉक्स" नाम उनके खिलाफ चली आ रहे रूढ़िवादी और नस्लवादी सोच को बढ़ावा देता है। इसके अलावा 2022 में इसके ज्यादातर मामले समलैंगिक पुरुष समुदाय में सामने आए हैं। इसी कारण कई बार मंकीपॉक्स नाम को उनके लिए भी नस्लवादी तरीके से इस्तेमाल किया जाता है।
भेदभाव के चलते वैज्ञानिकों ने की थी नाम बदलने की सिफारिश
इन्हीं भेदभावों और स्टिग्मा (कलंक) से बचने के लिए 30 वैज्ञानिकों के एक समूह ने मंकीपॉक्स का नाम बदलने की सिफारिश की थी। उन्होंने कहा था कि मंकीपॉक्स की उत्पत्ति अभी भी अज्ञात है और इस बात के प्रमाण अधिक हैं कि अफ्रीका से बाहर इस वायरस का प्रसार लंबे समय से चल रहा है। उन्होंने कहा था कि नया नाम विशेष क्षेत्र के लिए पैदा हो रही गलतफहमी, भेदभाव और बदनामी को दूर करने का काम करेगा।
वर्तमान में क्या है मंकीपॉक्स संक्रमण की स्थिति?
2022 मंकीपॉक्स का पहला मामला लंदन में सामने आया था और यहां 6 मई, 2022 को अफ्रीकी देश नाइजीरिया से लौटे एक शख्स को इससे संक्रमित पाया गया था। इसके बाद ये वायरस तेजी से फैल रहा है। WHO के अनुसार, अब तक 110 देशों में इसके 81,107 मामले सामने आ चुके हैं और 55 लोगों की मौत हुई है। हालिया समय में इसके 92.3 प्रतिशत मामले अमेरिकी देशों और 5.8 प्रतिशत मामले यूरोपीय देशों में सामने आए हैं।
कैसे फैलता है मंकीपॉक्स वायरस?
मंकीपॉक्स वायरस से संक्रमित किसी जानवर या इंसान के संपर्क में आने पर कोई भी व्यक्ति इस वायरस से संक्रमित हो सकता है। ये वायरस टूटी त्वचा, सांस और मुंह के जरिए शरीर में प्रवेश करता है। ये वायरस एक इंसान से दूसरे इंसान में भी फैल सकता है। छींक या खांसी के दौरान निकलने वाली बड़ी श्वसन बूंदों से ये प्रसार होता है। संक्रमित व्यक्ति की किसी चीज से संपर्क में आने पर भी ये वायरस फैल सकता है।
क्या हैं मंकीपॉक्स से संक्रमण के लक्षण?
इंसानों में मंकीपॉक्स से संक्रमण के लक्षण चेचक जैसे ही हैं, हालांकि ये थोड़े हल्के होते हैं। बीमारी की शुरूआत बुखार, सिरदर्द, मांसपेशियों और पीठ में दर्द, थकावट और ठंड लगने से होती है। लक्षण दिखने के एक से तीन दिन के अंदर पीड़ित के दाने होने लगते हैं। सबसे पहले उसके चेहरे पर दाने होते हैं और फिर वो पूरे शरीर पर फैल जाते हैं। ज्यादातर मामलों में दो से चार हफ्ते बाद ये बीमारी ठीक हो जाती है।