बांग्लादेश: आरक्षण विरोधी हिंसा में 105 की मौत, पूरे देश में कर्फ्यू लगाया गया
भारत के पड़ोसी देश बांग्लादेश में छात्रों के आरक्षण विरोधी आंदोलन ने हिंसक रूप ले लिया है। कुछ दिनों पहले शुरू हुई हिंसक झड़पों में अब तक 105 लोग मारे गए हैं और 2,500 से ज्यादा घायल हुए हैं। हालात बिगड़ते देख सरकार ने पूरे देश में कर्फ्यू लगाने का ऐलान कर दिया है। प्रदर्शनकारियों पर काबू पाने के लिए सेना को तैनात किया गया है। प्रदर्शनों से राजधानी ढाका सबसे ज्यादा प्रभावित है।
एक दिन में हुई 52 मौतें
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस हफ्ते छात्र प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच झड़पों में अब तक कम से कम 105 लोग मारे गए हैं। बांग्लादेशी अखबारों ने केवल 19 जुलाई को 17 से लेकर 30 लोगों की मौत की जानकारी दी है। वहीं, AFP ने ढाका मेडिकल कॉलेज और अस्पताल की सूची के हवाले से 52 लोगों के मारे जाने की बात कही है। इससे पहले 18 जुलाई को 22 लोगों के मारे जाने की खबर थी।
शेख हसीना के भाषण के बाद और भड़की हिंसा
हाल ही में बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने सरकारी टेलीविजन पर देश को संबोधित किया था। उन्होंने लोगों से शांति बनाए रखने की अपील की थी। हालांकि, उनके संबोधन के बाद हिंसा और भड़क गई। प्रदर्शनकारियों ने सरकारी टेलीविजन के कार्यालय में आग लगा दी। इस दौरान वहीं सैकड़ों कर्मचारी मौजूद थे। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि प्रधानमंत्री ने आरक्षण के मुद्दे पर कुछ नहीं कहा और केवल आश्वासन दिए।
300 से ज्यादा भारतीय छात्र देश लौटे
बांग्लादेश में हिंसा के मद्देनजर 300 से ज्यादा छात्र भारत लौट चुके हैं। ये लोग त्रिपुरा में अगरतला के पास अखुराह क्रॉसिंग और मेघालय के दावकी क्रॉसिंग से देश लौट आए हैं। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जयसवाल ने कहा कि पड़ोसी देश में रह रहे 15,000 भारतीय सुरक्षित हैं, जिनमें 8,500 के करीब छात्र हैं। उन्होंने कहा कि विदेश मंत्रालय स्थिति पर करीब से नजर रख रहा है। भारतीय उच्चायोग ने 13 नेपाली छात्रों की भी मदद की है।
क्यों प्रदर्शन कर रहे हैं छात्र?
बांग्लादेश में 1971 में पाकिस्तान से आजादी की लड़ाई में लड़ने वाले स्वतंत्रता सेनानियों के बच्चों के लिए सरकारी नौकरियों में 30 प्रतिशत सीटें आरक्षित की गई हैं। प्रदर्शनकारी छात्र इसे खत्म करने की मांग कर रहे हैं। विरोध प्रदर्शनों के समन्वयक नाहिद इस्लाम ने रॉयटर्स से कहा, "हम सामान्य तौर पर आरक्षण प्रणाली के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन हम चाहते हैं कि 1971 के स्वतंत्रता सेनानियों के वंशजों के लिए 30 प्रतिशत आरक्षण कोटा समाप्त कर दिया जाए।"