क्या ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी द्वारा तैयार कोरोना की वैक्सीन के साइड इफेक्ट होंगे? जानिए विशेषज्ञों की राय
क्या है खबर?
कोरोना वायरस से जारी जंग में पूरी दुनिया की नजर वैक्सीन पर टिकी है। ऐसे में सभी देश वैक्सीन बनाने में जुटे हैं।
इसी बीच अच्छी खबर यह है कि ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की ओर से एस्ट्रेजेनेका के साथ मिलकर तैयार की गई वैक्सीन ChAdOx1 nCoV-19 क्लिनिकल ट्रायल में सुरक्षित साबित हुई है और उससे इम्युन सिस्टम बेहतर होने के भी संकेत मिले हैं।
हालांकि, बड़ा सवाल है कि क्या वैक्सीन के दीर्घकालीन साइड इफेक्ट होंगे? इसके बारे में यहां जाने।
परीक्षण
1,077 लोगों पर किया गया था वैक्सीन का क्लिनिकल ट्रायल
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की ओर से तैयार इस वैक्सीन के क्लिनिकल ट्रायल में कुल 1,077 लोगों को शामिल किया गया था। इनकी उम्र 18 से 55 साल के बीच थी।
यह क्लिनिकल ट्रायल 23 अप्रैल से 21 मई के बीच ब्रिटेन के पांच अस्पतालों में आयोजित किया गया था।
ट्रायल कुल 56 दिनों तक चला और अब इसके परिणाम आने के बाद वैक्सीन के कारगर होने के संकेत मिले हैं। जल्द ही तीसरे चरण का ट्रायल शुरू होगा।
साइड इफेक्ट
क्लिनिकल ट्रायल के दौरान सामने आए ये साइड इफेक्ट
द प्रिंट के अनुसार क्लिनिकल ट्रायल के दौरान इस वैक्सीन के कोई गंभीर साइड इफेक्ट सामने नहीं आए, लेकिन अधिकतर वॉलेंटियरों में इसके हल्के साइड इफेक्ट जरूर देखे गए।
क्लिनिकल ट्रायल के दौरान करीब 70 प्रतिशत वॉलेंटियरों ने मांसपेशियों में दर्द, थकान, सिरदर्द, सर्दी लगना और बुखार की शिकायत की थीं।
हालांकि, शोधकर्ताओं के अनुसार ये गंभीर साइड इफेक्ट नहीं थे और इन्हें सामान्य पेरासिटामोल की खुराक से ही दूर कर दिया गया था।
जानकारी
पेरासिटामोल लेने वाले वॉलेंटियरों में कम नजर आए साइड इफेक्ट
रिपोर्ट की माने तो क्लिनिकल ट्रायल के दौरान वैक्सीन देने से पहले वॉलेंटियरों को पेरासिटामोल की भी खुराक दी गई थीं। चौंकाने वाली बात यह थी कि जिसने भी इस खुराक को लिया था, उसके बहुत कम साइड इफेक्ट नजर आए थे।
स्पष्टीकरण
दीर्घकालीन साइड इफेक्ट निर्धारित करने के लिए नहीं है पर्याप्त डाटा
वैक्सीन के दीर्घकालीन साइड इफेक्ट होने को लेकर ऑक्सफोर्ड वैक्सीन ग्रुप के डायरेक्टर एंड्रयू जे पोलार्ड ने इंडिया टुडे को बताया कि दीर्घकालीन साइड इफेक्ट निर्धारित करने के लिए उनके पास पर्याप्त डाटा उपलब्ध नहीं है। महामारी के दौर में आपके पास इसके लिए पर्याप्त समय नहीं होता है।
उन्होंने कहा कि बड़ी बात यह है कि इस प्रकार के टीके का उपयोग पहले व्यापक रूप से किया गया है और लोगों को इसी का लाभ मिल सकता है।
क्वालिटी
वैक्सीन की क्वालिटी पर नहीं पड़ेगा कोई असर
वैक्सीन की क्वालिटी प्रभावित होने के सवाल पर एंड्रयू जे पोलार्ड ने कहा कि वैक्सीन बनाने का कोई शॉर्टकट तरीका नहीं है। क्लिनिकल ट्रायल अब भी उसी प्रक्रिया के तहत किया जा रहा है, जैसे सामान्य दिनों में वैक्सीन बनाते समय किया जाता है। इसलिए क्वालिटी पर असर पड़ने की कोई बात नहीं है।
उन्होंने कहा कि उन्हें अभी भी यह साबित करना है कि वैक्सीन वास्तव में कारगर है और लोगों की कोरोना वायरस से सुरक्षा कर सकती है।
कीमत
1,000 रुपये के करीब हो सकती है वैक्सीन की कीमत
भारत में इस वैक्सीन का प्रोडक्शन करने जा रही पुणे स्थित सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के CEO अदर पूनावाला ने कहा कि वह बड़े पैमाने पर इस वैक्सीन का उत्पादन करने जा रहे हैं और इस सप्ताह इसकी स्वीकृति लेंगे।
उन्होंने बताया कि वह दिसंबर तक वैक्सीन की 30-40 करोड़ खुराक बनाने में सफल होंगे।
भारत में इसकी कीमत 1,000 रुपये के आसपास होगी। उन्होंने कहा इसके उत्पादन और वितरण में सरकारी मशीनरी की जरूरत होगी।
प्रक्रिया
ऐसे काम करती है वैक्सीन
एंड्रयू पोलार्ड ने कहा कि यह एक चिंपांजी एडेनोवायरस वायरल वेक्टर (ChAdOx1) वैक्सीन है जो SARS-CoV-2 स्पाइनल प्रोटीन बढ़ाती है।
इसे चिंपांजियों में सामान्य सर्दी जुकाम पैदा करने वाले वायरस में जेनेटिकली बदलाव लाकर तैयार किया गया है।
जब वैक्सीन लोगों की कोशिकाओं में प्रवेश करती है तो यह स्पाइक प्रोटीन आनुवंशिक कोड वितरित करती है। इससे स्पाइक प्रोटीन बढ़ता हैं और कोरोना वायरस के खिलाफ इम्युन सिस्टम को मजबूती मिलती है।