तालिबान का पंजशीर में दाखिल होने का दावा, विरोधी बलों ने किया खारिज
पंजशीर प्रांत के विरोधी बलों ने प्रांत में दाखिल होने के तालिबान के दावे को खारिज किया है। शनिवार को बयान जारी करते हुए विरोधी बलों ने कहा कि पंजशीर में अभी तक कोई लड़ाई नहीं हुई है और कोई भी प्रांत में दाखिल नहीं हुआ है। बता दें कि पंजशीर अफगानिस्तान का एकमात्र ऐसा प्रांत है जिस पर तालिबान अभी तक कब्जा नहीं कर पाया है और यहां विरोधी बल लड़ाई की तैयारी कर रहे हैं।
तालिबान ने किया था पंजशीर में दाखिल होने का दावा
विरोधी बलों का ये बयान तालिबान के उस बयान के जवाब में आया है जिसमें उसने अपने लड़ाकों के कई तरफ से पंजशीर में दाखिल होने का दावा किया था। तालिबान के सांस्कृतिक आयोग के सदस्य अनामुल्ला समानगनी ने कहा था, "कोई लड़ाई नहीं हुई, लेकिन अफगानिस्तान इस्लामी अमीरात के मुजाहिद्दीन बिना किसी विरोध के कई दिशाओं से अंदर दाखिल हो गए। इस्लामी अमीरात के बल अलग-अलग दिशाओं से पंजशीर में दाखिल हुए हैं।"
पंजशीर में इकट्ठा हो रही हैं तालिबान विरोधी ताकतें
बता दें कि पंजशीर को अफगानिस्तान के कार्यवाहक राष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह और पूर्व मुजाहिदीन कमांडर अहमद शाह मसूद के बेटे अहमद मसूद ने अपना ठिकाना बना रखा है और यहां वे तालिबान विरोधी लड़ाकों को इकट्ठा कर रहे हैं। इन लड़ाकों का नेतृत्व मसूद कर रहे हैं। अन्य प्रांतों से सरकारी सुरक्षा बल पंजशीर आ रहे हैं। मसूद तालिबान से बातचीत कर रहे हैं, लेकिन साथ ही उन्होंने लड़ाई के लिए तैयार होने की बात भी कही है।
भौगोलिक स्थिति बनाती है पंजशीर को खास
काबुल से लगभग 150 किलोमीटर पूर्वोत्तर में स्थित पंजशीर घाटी का अफगानिस्तान के सैन्य इतिहास में अहम स्थान है। इसकी भौगोलिक स्थिति इसे बाकी देश से अलग करती है। चारों तरफ पहाड़ों से घिरी इस घाटी में जाने का रास्ता एक संकरे पास से होकर गुजरता है जिसे सेना की मदद से आसानी से सुरक्षित किया जा सकता है। हिंदूकुश पहाड़ों से घिरी पंजशीर घाटी पर तालिबान और रूस कोई भी आज तक कब्जा नहीं कर पाया है।
पंजशीर घाटी का प्रतिरोध का लंबा इतिहास
पंजशीर घाटी का प्रतिरोध का एक लंबा इतिहास है और इसे महान मुजाहिदीन अहमद शाह मसूद के नाम से जाना जाता है। मसूद ने पहले 1980 के दशक में रूस की सेना को पंजशीर घाटी पर कब्जा नहीं करने दिया और नौ बार उनका हमला नाकाम किया। इसके बाद 1996-2001 के अपने शासन में तालिबान भी इस घाटी पर कब्जा नहीं कर पाया। सालेह मसूद के ही साथी हैं और अब उनके बेटे के साथ कंधा मिलाकर खड़े हैं।