30 प्रतिशत तक गिरा कच्चे तेल का भाव, जानें सऊदी अरब ने क्यों कम की कीमतें
सोमवार को कच्चे तेल की कीमतों में 30 प्रतिशत से अधिक की गिरावट आई। 1991 के खाड़ी युद्ध के बाद ये सबसे बड़ी प्रतिशत गिरावट है। सऊदी अरब के तेल की कीमतों में कटौती करने के बाद ये गिरावट दर्ज की गई है। रूस को सबक सिखाने के लिए सऊदी अरब ने ये कदम उठाया है। रूस और सऊदी अरब की इस लड़ाई की पृष्ठभूमि में कोरोना वायरस के कारण कम हुई तेल की मांग है।
इसलिए आमने-सामने आए सऊदी अरब और रूस
दरअसल, कोरोना वायरस के बढ़ते प्रकोप के कारण दुनियाभर में तेल की मांग कम हुई है। इसे देखते हुए तेल निर्यातक देशों का समूह OPEC तेल उत्पादन में कटौती करने पर विचार कर रहा था और इसे लेकर शुक्रवार को रूस के साथ उसकी बैठक हुई थी। लेकिन रूस तेल के उत्पादन में कटौती करने को तैयार नहीं हुआ जिसके बाद वो और OPEC देशों का नेतृत्व करने वाला सऊदी अरब आमने-सामने आ गए।
सऊदी अरब ने छह से आठ डॉलर प्रति बैरल घटाई कीमत
इसके बाद सऊदी अरब ने अप्रैल के लिए अपने कच्चे तेल की कीमतें छह से आठ डॉलर प्रति बैरल तक घटा दीं और इसका सीधा असर तेल के बाजार पर देखने को मिला। अंतरराष्ट्रीय बेंचमार्क ब्रेंट क्रूड फ्यूचर का भाव 14.25 डॉलर यानी 31.5 प्रतिशत टूटकर 31.02 डॉलर प्रति बैरल पर आ गया। खाड़ी युद्ध के दौरान 17 जनवरी, 1991 के बाद ये सबसे बड़ी प्रतिशत गिरावट और 12 फरवरी, 2016 के बाद कीमतों में सबसे बड़ी गिरावट है।
अमेरिका के वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट क्रूड में भी 27.4 प्रतिशत गिरावट
इसी तरह अमेरिकी वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट (WTI) क्रूड की कीमतें भी 11.28 डॉलर यानी 27.4 प्रतिशत टूटकर 30 डॉलर प्रति बैरल पर आ गईं। खाड़ी युद्ध के बाद ये सबसे बड़ी प्रतिशत गिरावट और 22 फरवरी, 2016 के बाद कीमतों में सबसे बड़ी गिरावट है।
तेल का उत्पादन बढ़ाने की सोच रहा है सऊदी अरब
अंतरराष्ट्रीय समाचार एजेंसी 'रॉयटर्स' से बातचीत करते हुए दो सूत्रों ने बताया कि OPEC और रूस के बीच मौजूदा समझौते के मार्च में खत्म होने के बाद सऊदी अरब अगले महीने यानी अप्रैल से तेल उत्पादन को एक दिन में 10 मिलियन बैरल से ऊपर बढ़ाने की योजना बना रहा है। यूरेशिया समूह ने मामले पर टिप्पणी करते हुए कहा है कि सऊदी अरब और रूस ऐसे 'ऑइल प्राइस वॉर' की शुरूआत कर रहे हैं जो सीमित और सामरिक रहेगा।
क्या होगा इस टकराव का असर?
कोरोना वायरस के कारण घटी मांग के बीच अगर सऊदी अरब और रूस में ये टकराव जारी रहता है तो इसके कारण कच्चे तेल की कीमतें और नीचे जा सकती हैं। यूरेशिया ने अपने बयान में कहा कि इस टकराव के कारण कई हफ्तों और महीनों तक कीमतें घटाने की प्रक्रिया चलेगी। उसने कहा कि जब कीमतें बेहद कम हो जाएंगी तो रूस और OPEC को पहले की तरह किसी समझौते पर पहुंचना होगा।
2014 से 2016 के बीच आखिरी बार भिड़े थे रूस और सऊदी अरब
सऊदी अरब, रूस और अन्य बड़े तेल निर्यातक देशों में आखिरी बार ऐसा टकराव 2014 से 2016 के बीच देखने को मिला था जब अमेरिका में शैल तेल उत्पादन बढ़ने के बाद बाजार में हिस्सेदारी के लिए उन्होंने लगातार कीमतें घटाई थीं।
भारत पर क्या असर पड़ेगा?
अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में इस गिरावट का असर भारत के घरेलू बाजार पर भी पड़ सकता है। हर दिन पेट्रोल और डीजल की कीमतों में कमी हो रही है और विशेषज्ञों के अनुसार भारत में पेट्रोल और डीजल की कीमतें 5-6 रुपये प्रति लीटर तक सस्ती हो सकती हैं। हालांकि इससे ज्यादा गिरावट की उम्मीद नहीं की जा सकती क्योंकि अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारत का रुपया कमजोर बना हुआ है।