
दुर्लभ मोतियों से बने 17वीं सदी के बर्तनों की हुई नीलामी, लाखों में लगी कीमत
क्या है खबर?
पुराने समय में मोतियों से न केवल जेवर बनाए जाते थे, बल्कि उनसे बर्तन जैसी अन्य वस्तुएं भी तैयार की जाती थीं। समय के साथ ये वस्तुएं या तो टूट जाती थीं या संग्रहालयों में रख दी जाती थीं।
हालांकि, आज के समय में अगर ये वस्तुएं मिल जाएं तो उन्हें खरीदने के लिए लोग लाखों रुपये खर्च कर देते हैं।
भारत के 'मोतियों की मां' कहलाए जाने वाले क्रिस्टलीकृत खनिज से बने 17वीं सदी के बर्तन नीलाम हुए हैं।
नीलामी
कब और कहां आयोजित की गई इस संग्रह की नीलामी?
मोती की सीपियों से बने चमचमाते बर्तनों का यह संग्रह स्कॉटलैंड स्थित एडिनबर्ग के पास पेनिकुइक एस्टेट में पाया गया था।
इस संग्रह की नीलामी ल्योन और टर्नबुल नामक नीलामी घर द्वारा आयोजित करवाई गई थी। यह संग्रह इस्लामी और भारतीय कला नीलामी का हिस्सा था, जिसे लंदन में बेचा गया था।
आपको जानकार हैरानी होगी की इन बर्तनों को 80 लाख रुपये से अधिक की कीमत पर नीलाम किया गया है।
इतिहास
क्या है इन दुर्लभ बर्तनों का इतिहास?
पेनिकुइक एस्टेट का स्वामित्व 1654 से क्लर्क परिवार के पास है, जिसकी वास्तुकला स्कॉटलैंड की सबसे बेहतरीन वास्तुकला में से एक है।
जॉन क्लर्क नामक व्यापारी ने इस संपत्ति को 1654 में खरीदा था। नीलामी घर ने बताया कि गुजरात में बसने वाले पुर्तगालियों को 'मोतियों की मां' खनिज उसकी चमक के कारण पसंद आया था।
इसके बाद उन्होंने कारीगरों की मदद से इसके बर्तन, फर्नीचर, हथियार और कवच आदि बनवाए थे।
इतिहासकारों
यूरोप के अमीर लोग इन बर्तनों को करते थे जमा
19वीं सदी के कला इतिहासकारों का मानना था कि इस प्रकार के बर्तन अपने आकार के कारण यूरोप में बनाए जाते होंगे।
हालांकि, ड्रेसडेन ग्रीन वॉल्ट्स में 1586 की सूची में रिकॉर्ड किए गए उदाहरण से पता चलता है कि इस शैली के बर्तनों को 16वीं शताब्दी की शुरुआत में यूरोप लाया गया था।
इन बर्तनों को यूरोप के अमीर लोगों द्वारा खरीदा जाता था, जो इन्हें अपने कला के संग्रह का हिस्सा बनाते थे और प्रदर्शित करते थे।
वस्तुएं
दुनियाभर के लोगों को है भारतीय और इस्लामी कला में दिलचस्पी
नीलामी की प्रमुख क्रिस्टीना सैन ने कहा, "नीलामी एक छोटी पेशकश थी, जिसमें उच्च गुणवत्ता की कला और पेंटिंग शामिल थीं। कम से कम 15 देशों के लोगों ने इन्हें खरीदने में दिलचस्पी दिखाई थी।"
नीलामी के दौरान केवल 104 लॉट में ही लगभग 80 प्रतिशत वस्तुएं बिक गई थीं, जिनकी कुल कीमत 4 करोड़ रुपये से भी अधिक लगी थी।
इसके जरिए सामने आया कि आज भी दुनियाभर के लोग भारतीय और इस्लामी कला को पसंद करते हैं।