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हैदराबाद: इस स्टार्टअप कंपनी ने मकई के कचरे से बनाए बैग, जानिए क्या है खासियत 
हैदराबाद की यह कंपनी मकई के कचरे से बनाती है बैग

हैदराबाद: इस स्टार्टअप कंपनी ने मकई के कचरे से बनाए बैग, जानिए क्या है खासियत 

लेखन सयाली
Aug 11, 2024
11:56 am

क्या है खबर?

COVID-19 महामारी के बीच जब लोग सोशल मीडिया पर वीडियो बना रहे थे, तब हैदराबाद के मोहम्मद अजहर मोहिउद्दीन प्लास्टिक प्रदूषण को कम करने के तरीके तलाश रहे थे। इसी कड़ी में उन्होंने एक स्टार्टअप कंपनी की शुरुआत कि, जिसे उन्होंने 'बायो रिफार्म' नाम दिया। यह कंपनी मकई के कचरे का इस्तेमाल करके बायोडिग्रेडेबल बैग (थैलियां) बनाती है। ये बैग 180 दिनों में खुद नष्ट होकर खाद बन जाते हैं। आइए स्टार्टअप के विषय में विस्तार से जानते हैं।

प्लास्टिक प्रदूषण

प्लास्टिक प्रदूषण को कम करने के लिए शुरू की कंपनी

2019 में अजहर ने सोचा कि वह पैसे कमाने के अलावा समाज के लिए कुछ करना चाहते हैं। शीर्ष वैश्विक पर्यावरणीय मुद्दों को खोजते समय उन्होंने पाया कि प्लास्टिक प्रदूषण पर दुनियाभर में कई जागरूकता अभियान और विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। अजहर ने कहा, "बड़े ब्रांड जूट और कपड़े के बैग खरीद सकते हैं, लेकिन मध्यम और छोटे व्यवसाय प्लास्टिक बैग का उपयोग जारी रखते हैं। प्लास्टिक बैग के व्यापक उपयोग के पीछे एक प्रमुख कारण इसकी खूबियां हैं।"

बैग

मकई के कचरे, शर्करा और सेल्यूलोज जैसी सामग्री से तैयार करते हैं बैग

अजहर ने पाया कि प्लास्टिक की थैलियां जल प्रतिरोधी, ताप प्रतिरोधी, टिकाऊ और हल्की होती हैं। वह ऐसा समाधान खोजना चाहते थे, जो प्लास्टिक के गुणों को प्रतिबिंबित करे और पर्यावरण के अनुकूल भी हो। इसी के चलते उन्होंने 'बायो रिफार्म' की शुरुआत कि, जिसमें वह कागज, कपड़े और जूट से भी सस्ते बैग बनाने लगे। वह मकई के कचरे, शर्करा, सेल्यूलोज और अन्य प्राकृतिक घटकों का उपयोग करके टिकाऊ बैग बनाते हैं।

प्रेरणा

1800 के एक बायोपॉलिमर शोध पत्र से मिली बैग बनाने की प्रेरणा

पिछले 2 सालों में इस कंपनी ने 6 मिलियन से अधिक प्लास्टिक थैलियों की जगह ले ली है। अजहर को इसकी प्रेरणा 1800 के दशक के एक बायोपॉलिमर शोध पत्र से मिली थी। उन्होंने बायोडिग्रेडेबल पॉलीमर के बारे में अध्ययन किया, जो मकई और आलू जैसे पौधों से प्राप्त होता है। यह अजहर के लिए एक नए व्यवसायिक प्रयास का आधार बना। कई चुनौतियों का सामना करने के बाद अजहर को बैग बनाने के लिए सही मशीनरी मिली थी।

कंपनी

एक साल बाद ही बंद हो गई थी कंपनी, दोबारा की शुरुआत

अजहर को एडवेंचर पार्क इनक्यूबेटर प्रोग्राम से 1 करोड़ रुपये का फंड मिला। 2022 की शुरुआत में, उन्होंने 22 साल की उम्र में हैदराबाद में अपनी फैक्ट्री का उद्घाटन किया। शुरूआती दिनों में अजहर ने माल इकट्ठा करने, बैग बनाने में श्रमिकों की सहायता करने और बाजार में उत्पाद पहुंचाने जैसे सभी काम अकेले किए। उनकी कंपनी मुनाफा न करने के कारण एक साल के अंदर ही बंद हो गई थी, जिसे उन्होंने दोबारा शुरू किया था।

खूबी

ये बैग 180 दिनों के अंदर ही खाद में तब्दील हो जाते हैं 

आज अजहर की कंपनी 4-5 लाख कैरी बैग, बायोमेडिकल वेस्ट बैग, कचरा बैग, फूड पाउच और बुक रैप्स बना रही है। ये बैग 180 दिनों के भीतर खुद गलकर खाद में तब्दील हो जाते हैं। पिछले साल उनकी वार्षिक आय 1.8 करोड़ रुपये रही थी। प्लास्टिक बैग की कीमत 160 रुपये प्रति किलोग्राम होती है, जबकि इस बैग की कीमत 180 रुपये प्रति किलोग्राम है। अजहर ने कहा, "मुझे खुशी है कि मैं पर्यावरण संरक्षण में योगदान दे रहा हूं।"

जानकारी

इन बैग के इस्तेमाल से पर्यावरण को पहुंचेंगे फायदे

'बायो रिफार्म' में निर्मित इन थैलियों का अलग से निस्तारण नहीं करना पड़ता और ये स्वयं खाद बन जाते हैं। इनकी इस खूबी के कारण प्रदूषण नहीं होता और कम जनशक्ति की आवश्यकता पड़ती है।