सदियों पहले पीने के लिए नहीं, हाथ धोने के लिए होता था कॉफी का इस्तेमाल
क्या है खबर?
आजकल लोग अपने दिन की शुरुआत एक कप कॉफी के सेवन से करते हैं, लेकिन क्या आपको पता है कि सालों पहले इसका इस्तेमाल किसी और चीज के लिए जाता था?
दरअसल, 15वीं शताब्दी के दौरान मध्य-पूर्व में कॉफी चर्चा का विषय बना हुआ था, जिसे अरबी में कहवा कहा जाता है।
माना जाता है कि यहां के लोग पहले कॉफी का इस्तेमाल हाथ धोने के लिए करते थे।
इस बात की पुष्टि कई अरबी किताबें भी करती हैं।
जानकारी
नई खोजों का क्या निकला निष्कर्ष?
जीनत फ्रीगुलिया ने अपनी 2019 की किताब 'ए रिच एंड टैंटलाइजिंग ब्रू: ए हिस्ट्री ऑफ हाउ कॉफी कनेक्टेड द वर्ल्ड' में अमेरिकी-फ्रेंच टीम द्वारा की गई अरेबिका कॉफी पर पुरातात्विक खोजों का संदर्भ दिया है।
हालांकि, पेय के रूप में कॉफी की लोकप्रियता से लगभग 5 शताब्दी पहले अरबी वनस्पति विज्ञान और चिकित्सा की किताबों में एक रहस्यमय घटक का जिक्र होना शुरू हुआ था, जो काफी हद तक कॉफी ही जैसा दिखता था।
घटक
बंक के नाम से जाना जाता है घटक
कॉफी बीन्स के लिए इथियोपियाई और अरबी शब्द बुना और बन थे, लेकिन रहस्यमय घटक को बंक कहा जाता था।
कमाल की बात तो यह है कि इस घटक का इस्तेमाल खाने के बजाय हाथों को धोने और सफाई के लिए किया जाता था।
इतना ही नहीं, वनस्पति विज्ञान से लेकर इत्र से जुड़ी कई किताबों में इसके इस्तेमाल के कई तरीकों के बारे में भी बताया गया है।
इस्तेमाल
इन कामों के लिए भी किया जाता था बंक का इस्तेमाल
हाथ धोने के अलावा बंक का इस्तेमाल कई कामों के लिए भी किया जाता था।
10वीं शताब्दी के चिकित्सक अल-रजी ने कहा था कि बंक का इस्तेमाल पसीने की गंध को कम करने के लिए और कलीचूना की जगह किया जाता था। उस वक्त कलीचूना बालों को हटाने के लिए इस्तेमाल किया जाता था।
एक अन्य चिकित्सक के मुताबिक, बंक का उपयोग त्वचा को साफ करने के लिए भी किया जाता था।
स्रोत
हाथ धोने के लिए बंक कैसे बना एक अच्छा घटक?
डॉक्टरों के मुताबिक, बंक की गंध को कम करने की और नमी को अवशोषित करने की क्षमता ही इसे हाथ धोने के लिए एक अच्छा घटक बनाती है।
बंक को बनाने का तरीका 10वीं शताब्दी के हैं, जो 2 अलग-अलग स्रोतों में पाए जाते हैं।
पहला इब्न सय्यर अल-वर्रक से किताब अल-अबीख और दूसरा किताब फी फनुन अल-तिब वाल-इतिर में। यह इब्न अल जज्जर द्वारा लिखा गया इत्र और सुगंधिक पदार्थों पर आधारित एक ग्रंथ है।
कहवा का अस्तित्व
15वीं शताब्दी में अस्तित्व में आया कहवा
15वीं सदी में नियर ईस्ट में कहवा के बारे में चर्चा होना शुरू हो गई थी। उस वक्त कहवा शब्द का इस्तेमाल एक गहरे रंग की वाइन के लिए किया जाता था।
दरअसल, उस समय कॉफी भी 2 तरह से पी जाती थी। पहला कहवा बन्निया के रूप में, जिसमें कॉफी बीन्स को बनाने से पहले भूना जाता था और दूसरा कहवा किशरिया के रूप में, जिसमें हस्क बेरी को हल्का-हल्का भूना जाता था।
जानकारी
ये है पेय के रूप में कॉफी का सबसे पुराना रिकॉर्ड
पेय पदार्थ के रूप में कॉफी का पहला विवरण अब्द अल-कादिर अल-जजीरी से मिलता है। यह इसलिए लिखी गई थी कि कॉफी का सेवन धर्म में स्वीकार्य है या नहीं। इसके बाद कॉफी से जुड़ी कई अन्य किताबें लिखी गईं और खोजें हुईं।
सूफी
सूफी लोग रात में जगने के लिए इस पेय का करते थे इस्तेमाल
शेख अल-धाबानी नामक एक सूफी ने इथियोपिया में लोगों को कॉफी पीते हुए देखा था।
इसके बाद जब वह अपने घर यमन में वापस आए तो वह बीमार हो गए, जिसके बाद उन्होंने कॉफी बीन्स से बना पेय पी लिया।
इस पेय से शेख जल्दी ठीक हो गए, ऊर्जावान महसूस करने लगे और रात में जगे भी रहें।
इसके बाद उन्होंने अपने अन्य भाइयों को इसके बारे में बताया, जिसके बाद से ये लोग कॉफी का इस्तेमाल करने लगे।