#ChampsYouShouldKnow: हॉकी के जादूगर धनराज पिल्लै, जिन्होंने भारतीय हॉकी को नई ऊचाइयों पर पहुंचाया
भारतीय हॉकी टीम के पूर्व कप्तान और लेजेंड खिलाड़ी धनराज पिल्लै को उनके योगदानों के लिए हमेशा याद किया जाएगा। 1989 में भारतीय टीम के लिए डेब्यू करने वाले पिल्लै ने 15 सालों तक भारतीय टीम को अपनी सेवाएं प्रदान की। वैसे तो भारतीय हॉकी बोर्ड के पास पिल्लै द्वारा किए गोल्स की जानकारी नहीं है। लेकिन कुछ आंकड़े इकट्ठा करने वाली संस्थाओं के मुताबिक उन्होंने भारत के लिए 339 मुकाबलों में 170 गोल दागे थे।
पिल्लै के नाम हैं कई रिकॉर्ड
धनराज पिल्लै ने अपने 15 साल के इंटरनेशनल करियर में अनेकों रिकॉर्ड बनाए थे। वह चार ओलंपिक, वर्ल्ड कप, चैंपियन्स ट्रॉफी और एशियन गेम्स खेलने वाले पहले हॉकी खिलाड़ी हैं। पिल्लै ने ओलंपिक (1992 से 2004), वर्ल्ड कप (1990 से 2002) और एशियन (1990 से 2002) गेम्स में लगातार चार बार भाग लिया था। चैंपियन्स ट्रॉफी में पिल्लै 1995, 1996, 2002 और 2003 में खेले थे। उनकी कप्तानी में भारत ने 1998 एशियन गेम्स में जीत हासिल की थी।
पिल्लै ने छोड़ी है भारतीय हॉकी पर बड़ी छाप
भारत हॉकी में विश्व की सबसे मजबूत टीमों में से एक थी लेकिन फिलहाल के समय टीम का प्रदर्शन थोड़ा खराब रहा है। पिल्लै अपने जमाने में टीम के सबसे बेहतरीन और सबसे ज़्यादा मशहूर खिलाड़ी हुआ करते थे। ऐसा कहा जाता है कि पिल्लै अपने आदर्श और भारतीय हॉकी लेजेंड दिवंगत मोहम्मद शाहिद की तरह खेलते थे। पिल्लै के पास गोल करने और टीम को लीड करने की शानदार क्षमता थी.
कई बार विवादों में भी फंसे
पिल्लै एकदम बेबाक किस्म के इंसान हैं और इसी के चलते वह कई बार विवादों में भी फंसे थे। 1998 में पाकिस्तान के खिलाफ सीरीज़ से पहले पिल्लै ने मैच फीस का भुगतान न करने के कारण टीम मैनेजमेंट के खिलाफ बयानबाजी की थी। इसके बाद बैंकाक में हुए एशियाड गेम्स के बाद पिल्लै और छह अन्य खिलाड़ियों को टीम में नहीं चुना गया। टीम मैनेजमेंट ने खिलाड़ियों को नहीं चुनने का ऑफिशियल कारण उन्हें आराम देना बताया था।
पद्मश्री से नवाजित हो चुके हैं पिल्लै
1999-2000 के लिए पिल्लै को भारत का खेल का सबसे बड़ा अवार्ड 'राजीव गांधी खेल रत्न' दिया गया था। इसके अलावा 2001 में भारतीय टीम के लिए उनकी सेवाओं को देखते हुए उन्हें पद्मश्री से नवाजित किया गया था।
'अम्मा मुझे माफ करना, मैं मेडल नहीं ला सका'
2000 में ऑस्ट्रेलिया में खेले गए ओलंपिक में भारतीय हॉकी टीम ने शानदार प्रदर्शन किया था। लेकिन अंतिम ग्रुप मुकाबले में पोलैंड ने भारत को 1-1 के ड्रॉ पर रोक दिया और गोल डिफरेंस की वजह से साउथ कोरिया सेमीफाइनल में पहुंच गया। मैच खत्म होने के बाद होटल पहुंचते ही पिल्लै ने अपनी मां को फोन लगाया और वह फोन पर ही रो पड़े। रोते हुए पिल्लै कह रहे थे, "अम्मा मुझे माफ करना मैं मेडल नहीं ला सका।"
धनराज के जीवन पर छप चुकी है एक किताब
भारत के सबसे बेहतरीन हॉकी लेखक सुदीप मिश्रा ने लगभग एक दशक तक भारतीय टीम को करीब से देखा और पिल्लै के जीवन से जुड़ी किताब लिखी। पिल्लै की किताब का नाम "Forgive Me Amma: The Life & Times of Dhanraj Pillay" है।