#NewsBytesExclusive: चाय की दुकान से भारतीय फुटबॉल टीम के सफर की कहानी खुद जैकीचंद की जुबानी
वो कहते हैं न कि यदि आप कोई सपना देख रहे हैं तो उसको पूरा करने के लिए आपको काफी त्याग भी करने पड़ते हैं। यदि आपको सफल बनना है तो फिर परिस्थितियों से समझौता करने की बजाय आपको कड़ी मेहनत करनी होगी। कुछ ऐसी ही कहानी है मणिपुर में चाय बेचने वाली मां और दूसरे के खेतों में काम करने वाले पिता के यहां जन्में भारतीय फुटबॉल टीम के स्टार जैकीचंद सिंह की। जानें, उनकी कहानी उन्हीं की जुबानी।
काफी तंगी थी, लेकिन फिर भी फुटबॉलर बनना था सपना
जैकीचंद की मां चाय की दुकान चलाती थीं और पिता दूसरों के खेत में किसानी का काम करते थे। हालांकि, जैकी का सपना था कि वह प्रोफेशनल फुटबॉलर बनें। भले ही उनके पास पैसों की तंगी थी, लेकिन उनका सपना था कि वह प्रोफेशनल फुटबॉलर बनेंगे और अपने परिवार की मदद करेंगे। दिक्कतों के बारे में पूछने पर जैकी ने कहा, "घर छोड़कर हमारे पास खुद की जमीन नहीं थी, लेकिन मेरा सपना था कि मैं फुटबॉलर बनूं।"
पहली बार 5,000 रुपये मिलने पर हुए थे काफी खुश
हमेशा पिता का सपोर्ट बने रहने की वजह से जैकी ने फुटबॉल के मैदान पर शुरुआत से ही अपनी चमक बिखेरी थी। सुब्रोतो कप में अंडर-14 टूर्नामेंट खेलते हुए जैकी की टीम चैंपियन बनी थी जिसके बाद उन्हें 5,000 रुपये ईनाम के तौर पर मिले थे। उस लम्हे को याद करते हुए जैकी कहते हैं, "5,000 रुपये पाकर जब मैंने अपने परिवार की मदद की तो मुझे बहुत ज़्यादा खुशी महसूस हुई थी।"
लोकल कोच के स्कूटी की रोशनी में पिता की साइकिल पर बैठकर आते थे जैकी
जैकी टूर्नामेंट खेलने जाते थे तो उनके पिता हमेशा उनके साथ होते थे। रात में लौटते समय जैकी अपने पिता की साइकिल पर बैठे रहते थे और पीछे से उनके लोकल कोच अपनी स्कूटी की लाइट दिखाते हुए उन्हें घर तक पहुंचाते थे।
प्रोफेशनल फुटबॉलर बनने पर रहा पूरा ध्यान
बचपन से ही फुटबॉल से दिल लगा बैठने वाले जैकी ने बेहद कम पढ़ाई की है और उनका ध्यान हमेशा प्रोफेशनल बनने और पैसे कमाने पर ही था। अपने संघर्ष के दिनों को याद करते हुए जैकी ने कहा, "जब कभी बाहर खेलने जाते थे तो मेरे घरवाले बेहद कम पैसे भेज पाते थे और इसीलिए मैं कमरे से बाहर नहीं निकलता था। मेरा पूरा ध्यान पैसे कमाने और प्रोफेशनल फुटबॉलर बनने पर रहता था।"
अवार्ड तो खूब मिलते थे, लेकिन पैसे की दिक्कत हमेशा होती थी
जैकी ने लोकल अंडर-12, अंडर-14 टूर्नामेंट्स में अपनी प्रतिभा की झलक दिखाई थी और उन्हें वहां ढेर सारे अवार्ड मिलते थे। हालांकि, केवल अवार्ड से काम नहीं चलता क्योंकि सबसे जरूरी चीज पैसे तो उन्हें मिलते नहीं थे। उस दौर को याद करते हुए जैकी ने कहा, "बेस्ट प्लेयर, टॉप स्कोरर का अवार्ड मिलता था तो मां खुश हो जाती थी, लेकिन पैसे नहीं मिले यह जानकर वह दुखी भी होती थी।"
FC गोवा को मानते हैं अपना फेवरिट क्लब
जैकी के मुताबिक पुणे और मुंबई में उन्हें लॉन्ग बॉल खेलना पड़ता था और क्रॉसिंग पर ही ज़्यादा फोकस रहता था, लेकिन गोवा में उन्हें उनके मन मुताबिक फुटबॉल खेलने को मिल रहा है। कोच वही करा रहे हैं जो जैकी को पसंद है।
आर्मी ब्वॉयज अकादमी में मिली ट्रेनिंग, शिलॉन्ग लीग और आई-लीग से पहचान
जैकी ने आर्मी ब्वॉयज अकादमी में फुटबॉल की ट्रेनिंग ली, लेकिन बाद में आर्मी स्कूल छोड़कर शिलॉन्ग के क्लब रॉयल वहिन्गदोग चले गए। आई-लीग सेकेंड डिवीजन में शानदार प्रदर्शन का फल जैकी को FC पुणे सिटी के साथ ISL कॉन्ट्रैक्ट के रूप में मिला। इसके बाद जैकी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और उन्होंने 2015 में ही भारतीय फुटबॉल टीम के लिए भी अपना डेब्यू किया। जैकी ने कहा, "रॉयल वहिन्गजोह ज्वाइन करना मेरे करियर का टर्निंग प्वाइंट रहा।"
भारतीय टीम में वापसी के लिए बेकरार हूं- जैकीचंद
12 मार्च, 2015 को नेपाल के खिलाफ भारतीय फुटबॉल टीम के लिए डेब्यू करने वाले जैकीचंद ने पिछले डेढ़ साल में भारत के लिए केवल 2 मुकाबले खेले हैं। भारतीय टीम में जगह नहीं बना पाने का कारण पूछने पर जैकी ने कहा, "मुझे ग्रोइन इंजरी हुई थी जिसके कारण मैं टीम से बाहर था। उसके बाद से मुझे खेलने का मौका नहीं मिला, लेकिन मैं फिलहाल भारतीय टीम में वापसी के लिए बेकरार हूं।"