
क्या होता है स्पेसक्वेक और पृथ्वी पर क्या पड़ता है इसका असर?
क्या है खबर?
हम अक्सर भूकंप के बारे में सुनते हैं, जो पृथ्वी के अंदरूनी हिस्सों में हलचल के कारण होते हैं। पृथ्वी के ही समान अंतरिक्ष में भी कुछ ऐसी ही हलचलें होती हैं। वैज्ञानिक इन्हें 'स्पेसक्वेक' कहते हैं।
नासा और अन्य अंतरिक्ष एजेंसियों ने अपने मिशनों से पता लगाया है कि धरती के चुंबकीय क्षेत्र में भी कभी-कभी तेज झटके महसूस होते हैं, जो भूकंप जैसे असर दिखाते हैं लेकिन ये अंतरिक्ष में होते हैं।
स्पेसक्वेक
क्या होता है स्पेसक्वेक?
स्पेसक्वेक दरअसल पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र में अचानक उभरने वाली ऊर्जा की लहर होती है।
जब सूरज से तेज सौर हवाएं या सोलर फ्लेयर्स निकलते हैं और वे पृथ्वी के मैग्नेटोस्फेयर से टकराते हैं, तब यह झटका पैदा होता है। ये झटके धरती के चारों तरफ घूमते चुंबकीय बल क्षेत्र को हिला देते हैं।
यह बिल्कुल उसी तरह का असर होता है जैसे किसी रबर के बैंड को खींचकर छोड़ देने पर उसमें हलचल हो।
प्रभाव
धरती और अंतरिक्ष पर क्या होता है इसका प्रभाव?
स्पेसक्वेक का असर धरती पर तकनीकी चीजों पर ज्यादा होता है।
इससे सैटेलाइट्स की पोजिशन बदल सकती है, नेविगेशन सिस्टम में गड़बड़ी आ सकती है और पावर ग्रिड पर भी असर पड़ सकता है। कभी-कभी ये झटके रेडियो संचार को भी प्रभावित करते हैं।
अंतरिक्ष में अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन (ISS) और वहां मौजूद अंतरिक्ष यात्रियों के लिए यह हलचल थोड़ा खतरा बन सकती है। हालांकि, इसके चलते धरती पर इंसानों को कोई बड़ा नुकसान नहीं होता।
निगरानी
नासा और वैज्ञानिक क्यों करते हैं इसकी निगरानी?
नासा जैसी संस्थान स्पेसक्वेक की लगातार निगरानी करते हैं, ताकि समय रहते संभावित खतरों से निपटा जा सके।
थीमिस मिशन जैसे सैटेलाइट से मिली जानकारी के आधार पर वैज्ञानिक यह समझने की कोशिश कर रहे हैं कि यह घटना कितनी बार और कितनी तेज होती है।
स्पेसक्वेक की सही जानकारी मिलने से सैटेलाइट्स और पावर सिस्टम की सुरक्षा की जा सकती है। इसके साथ ही, इससे सौर तूफानों के असर को भी पहले ही समझा जा सकता है।