'सरजमीं' रिव्यू: काजोल-पृथ्वीराज सुकुमारन ने संभाली कमान, इब्राहिम अली खान ने भी नहीं किया निराश
क्या है खबर?
सैफ अली खान के बेटे इब्राहिम अली खान ने फिल्म 'नादानियां' से अपने एक्टिंग करियर की शुरुआत की थी। पिछले कुछ समय से वह अपने करियर की दूसरी फिल्म 'सरजमीं' को लेकर चर्चा में हैं, जो जियो हॉटस्टार पर रिलीज हो चुकी है। काजोल और साउथ के स्टार पृथ्वीराज सुकुमारन भी इसमें मुख्य भूमिका में हैं। करण जौहर के धर्मा प्रोडक्शंस के बैनर तले बनी ये फिल्म आप देखने की योजना बना रहे हैं तो पहले पढ़ लें ये रिव्यू।
कहानी
पिता की देशभक्ति और बेटे की गद्दारी के बीच झूलती कहानी
कहानी कर्नल विजय मेनन (पृथ्वीराज) की, उसकी पत्नी मेहर (काजोल) और बेटे हरमन (इब्राहिम) के इर्द-गिर्द बुनी गई है। विजय चाहता है कि उसका बेटा भी फौजी बनकर अपनी सरजमीं की रक्षा करे, लेकिन हरमन अपने पिता से बिल्कुल उलट है। विजय की जिंदगी में भूचाल तब आता है, जब पता चलता है कि हरमन एक आतंकी संगठन से जुड़ा हुआ है। जब अपना ही बेटा गद्दार निकलता है तो पिता क्या करता है, यही फिल्म की मूल कहानी है।
अभिनय
काजोल और पृथ्वीराज ने पकड़ा सबसे सही सुर
काजोल ने फिर कमाल कर दिया है। बेटे को लेकर उनकी भावनाएं, दर्द और प्यार अंदर तक झकझोर देता है। पूरी फिल्म में वह सब पर भारी रहीं। उधर पृथ्वीराज के किरदार में वो पीड़ा दिखती है, जो एक पिता ही महसूस कर सकता है। करीब 2 घंटे 17 मिनट की इस फिल्म को काजोल और पृथ्वीराज ने संभालने की कोशिश पूरी की, लेकिन स्टेशन से रफ्तार से छूटी ट्रेन थोड़ी ही देर बाद लूप लाइन पर चली जाती है।
एक्टिंग
पर्दे पर दिखी इब्राहिम की मेहनत
इब्राहिम की 'नादानियां' अगर आपने देखी होगी तो सरजमीं देखने के बाद आप कहेंगे कि उन्होंने खुद पर अच्छी मेहनत की है। उनके चेहरे के हाव-भाव और डरावनी आंखें बिना संवाद के भी प्रभाव छोड़ जाती हैं। फिल्म में अपने किरदार के साथ इंसाफ करने की इब्राहिम की एक ये बढ़िया कोशिश है। शायद 'नादानियां' के लिए मिलीं आलोचनाओं को उन्होंने गंभीरता से लिया है। उन्हें देख लगता है कि फिल्म दर फिल्म उनके अभिनय में निखार आता जाएग।
निर्देशन
कैसा रहा निर्देशन और लेखन?
फिल्म का क्लाइमैक्स चौंकाता है, लेकिन बड़ी कमी इसकी पटकथा और लेखन है। बोमन ईरानी के बेटे कायोज ईरानी की बतौर निर्देशक यह पहली फिल्म है। उन्होंने देशभक्ति, प्यार और बीच की जमीन की कहानी चुनी, लेकिन उनकी ये कहानी दिल पर वार नहीं करती। वो इस कहानी को सही से कहने में नाकाम रहे। फिल्म को सौमिल शुक्ला और अरुण सिंह ने लिखा है। उनके लेखन की खामियां कलाकारों के ईमानदार अभिनय पर भी भारी पड़ती हैं।
जानकारी
ये भी हैं कमियां
कुछेक कमियां और हैं, जो फिल्म देखते हुए बड़ी खलती हैं। बोमन ईरानी जैसे दिग्गज अभिनेता को इसमें बर्बाद कर दिया गया है। काजोल, पृथ्वीराज सुकुमारन और हरमन के बीच पारवारिक जुड़ाव का अभाव भी इसकी कमजोर कड़ियों में से एक है।
निष्कर्ष
देखें या ना देखें?
क्यों देखें?- काजोल और पृथ्वीराज जैसे मंझे हुए कलाकारों के लिए तो इस फिल्म को एक मौका दिया जा सकता है। भले ही कुछ दृश्य हकीकत से कोसों दूर लगें, लेकिन इब्राहिम को एक बिल्कुल जुदा भूमिका में देखना भी फिल्म को दर्शनीय बनाता है। क्यों न देखें?- कुछ बेहद रोमांचक, दमदार कहानी या ज्यादा उम्मीदें बांधकर फिल्म देखेंगे तो ठगे रह जाएंगे। देशभक्ति और पारिवारिक फिल्मों से परहेज है तो भी इससे दूर ही रहें। न्यूजबाइट्स स्टार- 2/5