Page Loader
ISRO और ESA के प्रोबा-3 मिशन के दोनों सैटेलाइट क्या काम करेंगे?
प्रोबा-3 मिशन के दोनों सैटेलाइट एक साथ काम करेंगे (तस्वीर: ESA)

ISRO और ESA के प्रोबा-3 मिशन के दोनों सैटेलाइट क्या काम करेंगे?

Dec 05, 2024
09:57 am

क्या है खबर?

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा से आज प्रोबा-3 मिशन को लॉन्च करेगी। यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA) के इस विशेष अंतरिक्ष मिशन को पोलर सैटलाइट लॉन्च व्हीकल (PSLV) से लॉन्च किया जाएगा। प्रोबा-3 एक महत्वपूर्ण मिशन है, जो सूर्य के बाहरी वातावरण (कोरोना) का अध्ययन करेगा। इस मिशन में 2 सैटेलाइट्स (कोरोनाग्राफ और ऑकुल्टर) शामिल हैं। ये दोनों सैटेलाइट्स सूर्य का अध्ययन करने के लिए साथ काम करेंगे, लेकिन उनका काम अलग-अलग होगा।

कोरोनाग्राफ

कोरोनाग्राफ सैटेलाइट करेगा यह काम

कोरोनाग्राफ सैटेलाइट का मुख्य कार्य सूर्य के कोरोना का सटीक अवलोकन करना है। यह सैटेलाइट सूर्य के डिस्क को आंशिक रूप से अवरुद्ध करेगा, जिससे सूर्य के बाहरी वातावरण, यानी कोरोना को देखा जा सकेगा। कोरोनाग्राफ सूर्य के कोरोना के तापमान, संरचना और उसकी गतिशीलता पर शोध करेगा। यह उच्च-गुणवत्ता वाली तस्वीरें प्रदान करेगा, जिससे वैज्ञानिकों को कोरोना की गहरी समझ प्राप्त होगी। कोरोनाग्राफ की भूमिका मुख्य रूप से सूर्य के बाहरी वातावरण के अध्ययन में है।

ऑकुल्टर

ऑकुल्टर का क्या काम होगा?

ऑकुल्टर सैटेलाइट का काम सूर्य की चमकदार डिस्क को ढकना है, ताकि कोरोनाग्राफ सैटेलाइट सूर्य के बाहरी हिस्से का बिल्कुल साफ अध्ययन कर सके। दोनों सैटेलाइट्स के बीच सिर्फ 150 मीटर की दूरी होगी, जिससे यह एक सटीक तकनीक के तहत काम करेगा। ऑकुल्टर का वजन 240 किलोग्राम है और इसका मुख्य उद्देश्य कोरोना की पूरी जानकारी इकट्ठा करना है। यह मिशन भविष्य के अंतरिक्ष अभियानों के लिए सटीक उड़ान तकनीक का प्रदर्शन करेगा।

उद्देश्य और महत्व

क्या है इस मिशन का उद्देश्य और महत्व?

प्रोबा-3 मिशन का उद्देश्य सूर्य के कोरोना का अध्ययन करना है, जो बहुत गर्म होता है और इसके बदलाव अंतरिक्ष मौसम को प्रभावित करते हैं। यह मौसम पृथ्वी के पावर ग्रिड, सैटेलाइट और GPS सिस्टम पर असर डाल सकता है। इस मिशन से सोलर फ्लेयर्स और कोरोनल मास इजेक्शन जैसी घटनाओं को समझने में मदद मिलेगी। इसके अलावा, यह भविष्य के अंतरिक्ष अभियानों के लिए सटीक तकनीक दिखाएगा, जिससे वैज्ञानिकों को सूर्य को बेहतर तरीके से समझने में मदद मिलेगी।