किसी अंतरिक्ष यात्री को आमतौर पर कितनी ट्रेनिंग लेनी पड़ती है?
किसी भी मानवयुक्त अंतरिक्ष मिशन को सफल बनाने में अंतरिक्ष यात्रियों का सबसे अहम योगदान होता है। कम गुरुत्वाकर्षण के वजह से अंतरिक्ष में रहना पृथ्वी पर रहने से बहुत विपरीत है। ऐसे में अंतरिक्ष में जाने के लिए किसी भी अंतरिक्ष यात्री को काफी लंबे औए कठोर ट्रेनिंग से गुजरना पड़ता है। यह ट्रेनिंग महत्वपूर्ण होती है, जिससे अंतरिक्ष यात्री अंतरिक्ष में सुरक्षित और कुशलता से काम कर सकें। आइए जानते हैं अंतरिक्ष यात्री कौन-कौन सी ट्रेनिंग लेते हैं।
शारीरिक कुशलता और ज्ञान दोनों है जरूरी
शारीरिक कुशलता: अंतरिक्ष यात्री को शारीरिक रूप से कुशल होना जरूरी है, इसलिए उन्हें कड़ी शारीरिक ट्रेनिंग दी जाती है, जिसमें दौड़, तैराकी, वेटलिफ्टिंग और एरोबिक एक्सरसाइज शामिल हैं। विज्ञान और तकनीकी ज्ञान: किसी भी अंतरिक्ष यात्री के लिए शारीरिक कुशलता के साथ विज्ञान, गणित, इंजीनियरिंग और कंप्यूटर साइंस का ज्ञान होना भी बहुत आवश्यक है। इससे अंतरिक्ष में बहुत से तथ्यों को समझने में आसानी होगी, जिससे मिशन से जुड़ी महत्वपूर्ण और बारीक जानकारी वह हासिल कर सकेंगे।
कम गुरुत्वाकर्षण में रहने की ट्रेनिंग होती है जरूरी
जीरो-ग्रेविटी: कम गुरुत्वाकर्षण का अनुभव करने के लिए किसी अंतरिक्ष यात्री 'वोमिट कॉमेट' नामक विशेष विमानों में प्रशिक्षण दिया जाता है, जिसमें वे कुछ समय के लिए भारहीनता का अनुभव कर पाते हैं। वर्चुअल रियलिटी और सिमुलेशन ट्रेनिंग: वर्चुअल रियलिटी और सिमुलेशन ट्रेनिंग के माध्यम से अंतरिक्ष यात्री को अंतरिक्ष में कम गुरुत्वाकर्षण और अन्य स्थितियों में काम करने का अनुभव दिया जाता है। इस अनुभव का उपयोग वे स्पेसवॉक करने के दौरान कर पाते हैं।
ये ट्रेनिंग भी है महत्वपूर्ण
चिकित्सा ट्रेनिंग: अंतरिक्ष में किसी भी आपात स्थिति से निपटने के लिए अंतरिक्ष यात्री को फर्स्ट-एड और अन्य महत्वपूर्ण चिकित्सा प्रक्रियाओं का प्रशिक्षण दिया जाता है। भाषा की ट्रेनिंग: अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन (ISS) में काम करने के लिए अंग्रेजी के साथ-साथ रूसी भाषा का ज्ञान भी आवश्यक है, क्योंकि वहां रूसी अंतरिक्ष यान और उपकरणों का उपयोग होता है। अन्य: कम गुरुत्वाकर्षण अनुभव के लिए पानी के अंदर प्रशिक्षण दिया जाता है और मिशन स्पेसिफिक ट्रेनिंग भी दी जाती है।
कितना समय लगता है?
अंतरिक्ष यात्री को चयन के बाद 2-3 साल की बेसिक ट्रेनिंग से गुजरना पड़ता है। इसके बाद उन्हें मिशन-विशेष ट्रेनिंग दी जाती है, जो अतिरिक्त 1-2 साल तक हो सकती है। हालांकि, किसी वायुसेना पायलट के लिए ट्रेनिंग सरल और कम समय वाली होती है।