चंद्रयान-3 के सफर का एक और चरण पूरा, सॉफ्ट लैंडिंग में बचे गिनती के दिन
क्या है खबर?
भारत के चांद मिशन चंद्रयान-3 ने चांद की सतह की तरफ एक और बड़ा कदम बढ़ाया है।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने कहा कि मिशन ने अब 'ऑर्बिट सर्कुलराइजेशन' चरण शुरू कर दिया है।
आज ISRO ने चंद्रयान-3 को 150 किलोमीटर X 177 किमी के एक गोलाकार ऑर्बिट में स्थापित किया है।
अगला ऑपरेशन 16 अगस्त के लिए निर्धारित है, जिसमें मिशन 100 किलोमीटर की गोलाकार चांद की कक्षा में प्रवेश करेगा।
ऑर्बिट
16 अगस्त को बदली जाएगी पांचवीं ऑर्बिट
इंजनों की रोट्रोफायरिंग और कई मैन्युवर के जरिए ऑर्बिट कम किए जाने से चंद्रयान-3 चांद की सतह के करीब पहुंच रहा है और 16 अगस्त को इसका पांचवां ऑर्बिट बदला जाएगा।
इससे पहले ISRO ने चंद्रयान-3 के ऑर्बिट को कम करने के लिए 9 अगस्त को एक सफल ऑपरेशन को अंजाम दिया था।
चंद्रयान-3 चांद के ऑर्बिट में 5 अगस्त को पहुंचा था। और उसी दौरान इसने चांद की तस्वीर भी भेजी थी।
मिशन
23 अगस्त को होगी सॉफ्ट लैंडिंग की कोशिश
17 अगस्त को प्रोपल्शन मॉड्यूल और लैंडर मॉड्यूल अलग होंगे।
18 अगस्त और 20 अगस्त को लैंडर की डीऑर्बिटिंग (ऑर्बिट की ऊंचाई को कम करना) कराई जाएगी।
23 अगस्त को शाम 5 बजकर 47 मिनट पर चंद्रयान-3 की सॉफ्ट लैंडिंग का प्रयास किया जाएगा। यानी लैंडिंग में अब लगभग हफ्ते भर का समय है।
सॉफ्ट लैंडिंग इस मिशन का सबसे चुनौतीपूर्ण कार्य है। सफल लैंडिंग के लिए चंद्रयान-3 में इससे पहले वाले चंद्रयान-2 के मुकाबले कई बदलाव किए गए हैं।
चंद्रयान
सेंसर्स और इंजन के काम न करने पर भी लैंडिंग में सक्षम है चंद्रयान-3
ISRO प्रमुख एस सोमनाथ ने कुछ दिन पहले ही कहा था कि मिशन को इस तरह से बनाया गया है कि यदि चंद्रयान-3 के सभी सेंसर्स और इंजन काम करना बंद भी कर दें, तब भी यह लैंड करने में सक्षम है।
उनके मुताबिक, बस इसका प्रोपल्शन सिस्टम (प्रणोदन प्रणाली) और एल्गोरिदम ठीक से काम करता रहे।
सोमनाथ का कहना है चंद्रयान-3 के लैंडर विक्रम को इस तरह से डिजाइन किया गया है कि यह विफलताओं को संभाल सके।
चुनौती
लैंडिंग के करीब आने पर बढ़ेगी ISRO की चुनौती
सोमनाथ के मुताबिक, ISRO टीम के सामने सबसे बड़ी चुनौती हॉरिजॉन्टल (क्षैतिज) स्थिति वाले विक्रम को वर्टिकल (लंबवत) रूप से उतारना है।
चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग कराने के लिए लैंडर को कई मैन्युवर के जरिए वर्टिकल रूप में लाया जाएगा।
यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि चंद्रयान-2 मिशन के दौरान ISRO लैंडर को चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग कराने में ही विफल रहा था।
ISRO प्रमुख के मुताबिक, चंद्रयान-2 की लैंडिंग में यहीं समस्या हुई थी।