कौन हैं द्रौपदी मुर्मू, जो बन सकती हैं देश की पहली आदिवासी राष्ट्रपति?
जुलाई में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव के लिए केंद्र सरकार और विपक्ष दोनों ने अपने-अपने उम्मीदवारों का ऐलान कर दिया है। जहां विपक्ष ने यशवंत सिन्हा को अपना उम्मीदवार घोषित किया है, वहीं भाजपा के नेतृत्व वाले सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) ने द्रौपदी मुर्मू को मैदान में उतारा है। झारखंड की राज्यपाल रह चुकी द्रौपदी मुर्मू आखिर कौन हैं और उनका अब तक का राजनीतिक सफर कैसा रहा है, आइए आपको बताते हैं।
आदिवासी समुदाय से आती हैं ओडिशा में जन्मी द्रौपदी
20 जून, 1958 को ओडिशा के मयूरभंज जिले में जन्मी द्रौपदी मुर्मू आदिवासी समुदाय से आती हैं। भुवनेश्वर के रमादेवी महिला कॉलेज से ग्रेजुएशन करने के बाद उन्होंने ओडिशा सरकार में क्लर्क के तौर पर अपने करियर की शुरूआत की। वह राज्य के सिंचाई और ऊर्जा विभाग में जूनियर सहायक के तौर पर कार्यरत रही थीं। इसके बाद वह शिक्षक बन गईं और रायरंगपुर के श्री अरविंदो इंटिग्रल एजुकेशन एंड रिसर्च सेंटर में मानद शिक्षक के तौर पर पढ़ाया।
मुर्मू ने पार्षद के तौर पर की राजनीतिक करियर की शुरूआत
राजनीतिक करियर की बात करें तो मुर्मू ने 1997 में रायरंगपुर नगर पंचायत के पार्षद के तौर पर शुरूआत की और इस नगर पंचायत की उपाध्यक्ष भी रहीं। इसके बाद वह 2000 और 2009 में दो बार भाजपा की टिकट पर रायरंगपुर सीट से विधायक चुनी गईं। विधायक के तौर पर अपने पहले कार्यकाल के दौरान उन्होंने वाणिज्य, परिवहन और मत्स्य पालन और पशुपालन जैसे मंत्रालय संभाले। तब राज्य में बीजू जनता दल और भाजपा के गठबंधन की सरकार थी।
2015 में बनीं झारखंड की पहली महिला राज्यपाल
मुर्मू को 18 मई, 2015 को झारखंड का राज्यपाल नियुक्त किया गया था और वह छह साल से अधिक समय तक इस पद पर रहीं। वह झारखंड की पहली महिला राज्यपाल थीं। राज्यपाल बनने के बाद ही वह भाजपा की सक्रिय राजनीति से दूर हैं।
राज्यपाल के तौर पर मुर्मू ने लौटा दिया था भाजपा की ही सरकार का विधेयक
झारखंड के राज्यपाल के तौर पर मुर्मू ने कई सराहनीय काम किए। उनका सबसे साहसी कार्य राज्य की भाजपा सरकार का एक विधेयक लौटाना रहा। दरअसल, रघुबर दास के नेतृत्व वाली सरकार ने 2017 में आदिवासियों की जमीनों की रक्षा से संंबंधित छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम और संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम में संसोधन किए थे। ये संसोधन विधानसभा से तो पारित हो गए, लेकिन मुर्मू ने यह कहते हुए उन्हें लौटा दिया कि इनसे आदिवासियों को क्या लाभ होगा।
कष्टों से भरा रहा मुर्मू का जीवन, पति और दो बेटों की असमय मौत
मुर्मू का निजी जीवन बेहद संघर्षों से भरा रहा है। उनकी शादी श्याम चरण मुर्मू से हुई थी, लेकिन कम उम्र में ही उनका निधन हो गया। दोनों की तीन संतानें थीं, लेकिन इनमें से भी दो बेटों का असमय निधन हो गया। अभी मुर्मू की केवल एक बेटी जिंदा है। 2009 के हलफनामे के अनुसार, उनके पास कोई कार नहीं थी और कुल जमापूंजी नौ लाख रुपये थी। उन पर चार लाख रुपये कर्ज भी था।
अगर चुनाव जीती तो पहली आदिवासी राष्ट्रपति होंगी मुर्मू
संसद और विधानसभाओं के आंकड़ों और विपक्ष के राष्ट्रपति उम्मीदवार को देखते हुए मुर्मू की जीत लगभग पक्की मानी जाए तो यह अतिश्योक्ति नहीं होगी। अगर मुर्मू राष्ट्रपति चुनाव जीत जाती हैं तो वह भारत की पहली आदिवासी राष्ट्रपति होंगी। वह ओडिशा से आने वाली देश की पहली राष्ट्रपति भी होंगी। इसके साथ ही वह देश की दूसरी महिला राष्ट्रपति भी बन जाएंगी। उनसे पहले केवल प्रतिभा पाटिल राष्ट्रपति रही हैं।