पश्चिम बंगाल विधानसभा में नया महिला सुरक्षा विधेयक पेश, क्या है प्रावधान?
क्या है खबर?
पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (TMC) की सरकार ने मंगलवार को विधानसभा में नया महिला सुरक्षा विधेयक पेश किया। इस विधेयक में रेप के दोषी को 10 दिन में मृत्युदंड का प्रावधान है।
अपराजिता महिला और बाल विधेयक (पश्चिम बंगाल आपराधिक कानून एवं संशोधन) 2024 में महिलाओं और बच्चों के लिए सुरक्षित वातावरण बनाने का प्रस्ताव है।
बिल का विपक्ष में बैठे भाजपा के विधायकों ने भी समर्थन किया। मंगलवार को इसे पारित कर राज्यपाल के पास भेजा जाएगा।
विधेयक
विधेयक के लिए बुलाया गया है 2 दिवसीय विशेष सत्र
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस विधेयक को पेश करने के लिए सोमवार को विधानसभा का 2 दिवसीय विशेष सत्र बुलाया है। विधेयक को राज्य के कानून मंत्री मलय घटक ने पेश किया।
नए विधेयक का उद्देश्य राज्य में लागू होने वाले भारतीय न्याय संहिता (BNS) 2023, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS), 2023 और यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम 2012 में संशोधन करना है।
इसमें दोषियों के लिए पैरोल के बिना आजीवन कारावास की सजा प्रस्तावित है।
संशोधन
विधेयक में और क्या होंगे प्रावधान?
विधेयक में रेप और महिलाओं के खिलाफ अपराधों की जांच की समयसीमा को 3 सप्ताह तक सीमित करने का प्रस्ताव है, ताकि पीड़ितों को न्याय दिलाने में तेजी लाई जा सके।
ऐसे मामलों को निपटाने के लिए समर्पित विशेष कोर्ट की स्थापना की जाएगी, ताकि तेजी से अधिक केंद्रित न्यायिक प्रक्रिया सुनिश्चित हो।
विधेयक में अपराजिता टास्क फोर्स बनाने का भी निर्णय लिया गया है, जो आवश्यक संसाधनों से लैस होगी और नए कानूनों के तहत मामलों की जांच करेगी।
कानून
क्यों लाया गया विधेयक?
कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज के सभागार में 9 अगस्त को महिला डॉक्टर का बुरी तरह रेप किया गया और बाद में उसकी हत्या कर दी गई।
इसके खिलाफ बंगाल समेत पूरे देश में रोष दिखा और डॉक्टर 11 दिन की हड़ताल पर चले गए। सुप्रीम कोर्ट के आश्वासन पर डॉक्टर काम पर लौटे। मामले में आरोपी संजय रॉय गिरफ्तार है।
विरोध-प्रदर्शन और लोगों की नाराजगी देखते हुए मुख्यमंत्री बनर्जी ने नया कानून लाने का वादा किया था।
जानकारी
राज्यपाल के हस्ताक्षर से बन जाएगा कानून
पश्चिम बंगाल विधानसभा में पास होने के बाद विधेयक को राज्यपाल सीवी आनंद बोस के पास भेजा जाएगा। राज्यपाल के हस्ताक्षर के बाद नया कानून बन जाएगा। हालांकि, अगर राज्यपाल चाहें तो इसे राष्ट्रपति के विचार के लिए भी आरक्षित रख सकते हैं।