सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया- दोषी नेताओं को आजीवन चुनाव लड़ने से नहीं रोक सकते
केंद्र सरकार ने उस याचिका का विरोध किया है, जिसमें आपराधिक मामलों में दोषी पाए गए राजनेताओं को जीवनभर चुनाव लड़ने से रोकने की मांग की गई थी। चुनाव सुधार से जुड़े मामलेे में कानून मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट में इस याचिका का विरोध किया है। याचिकाकर्ता अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय ने अपराधी साबित होने पर सरकारी कर्मचारियों को नौकरी से निकालने वाले नियम का हवाला देते दोषी राजनेताओं के चुनाव लड़ने पर रोक लगाने की मांग की थी।
नेता भी जनसेवक, अलग बर्ताव नहीं किया जा सकता- याचिका
द प्रिंट के अनुसार, याचिकाकर्ता उपाध्याय का तर्क था कि नेता भी जनसेवकों की श्रेणी में आते हैं इसलिए उनके साथ अलग तरह का बर्ताव नहीं किया जाना चाहिए। इसके विरोध में कानून मंत्रालय ने कहा कि सजा के मामले में नेताओं और सरकारी कर्मचारियों को एक समान नहीं देखा जा सकता क्योंकि दोनों अलग-अलग नियमों के तहत आते हैं। नेता जनप्रतिनिधि कानून (RPA) के तहत आते हैं तो नौकरशाहों के लिए सर्विस रुल्स का प्रावधान है।
अपराध करने की सूरत में कोई भेदभाव नहीं- सरकार
मंत्रालय की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में दायर हलफनामे में कहा गया है कि चुने हुए जनप्रतिनिधि लोगों की सेवा करने के लिए ली गई शपथ से बंधे होते हैं। इसमें आगे कहा गया है कि अपराध करने की सूरत में दोनों में से किसी के साथ भेदभाव नहीं किया जाता है। दोनों को ही भारतीय दंड संहिता (IPC) और दूसरे लागू कानूनों का सामना करना पड़ता है। उपाध्याय ने अपनी पहले से दायर याचिका में यह संशोधन किया था।
अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करता है RPA- याचिका
उपाध्याय के अनुसार, जनप्रतिनिधि कानून संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करता है क्योंकि एक तरफ जहां दोषी पाए जाने पर सरकारी कर्मचारियों को जिंदगीभर नौकरी करने से रोक दिया जाता है, वहीं एक जनप्रतिनिधि को केवल कुछ समय के लिए अयोग्य ठहराया जाता है। दूसरी तरफ सरकार ने अपने हलफनामे में कहा कि उम्मीद की जाती है कि जनप्रतिनिधि देश के हित के लिए काम करेंगे। वो पहले से ही RPA और दूसरे नियमों से बंधे हैं।
कानून में बदलाव की मांग
उपाध्याय ने अपनी याचिका में RPA के कई भागों पर सवालों पर उठाया है। ये भाग दोषी पाए जाने पर जनप्रतिनिधियों को अयोग्य ठहराने से जुड़े हैं। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से इस कानून में बदलाव करने की भी मांग की है। इस पर सरकार ने कहा कि ऐसा कोई भी आदेश कानून में संशोधन की जरूरत पैदा करेगा। सरकार ने दलील दी कि नेता किसी कानन से ऊपर नहीं हैं, लेकिन वो पहले से कई कानूनों से बंधे हुए हैं।