कैसे हुई थी मकर संक्रांति पर पतंग उड़ाने की शुरुआत? जानिए इसका धार्मिक महत्त्व
क्या है खबर?
मकर संक्रांति हिंदू धर्म का महत्वपूर्ण त्योहार है, जो सूर्य की उत्तरायण यात्रा का जश्न मनाता है।
यह पर्व सर्दियों के खत्म होने और शीतकालीन फसलों की कटाई का प्रतीक होता है।
इस दिन घरों में खिचड़ी जैसे पकवान बनाए जाते हैं, गंगा जल से स्नान किया जाता है और ब्राह्मणों को दान दिया जाता है।
इस त्योहार का जश्न बिना पतंग उड़ाए अधूरा माना जाता है, जिसके पीछे की कहानी भी बेहद दिलचस्प है।
पतंग उड़ाना
किसने की थी पतंग उड़ाने की परंपरा की शुरुआत?
मकर संक्रांति को कई जगहों पर पतंग पर्व के नाम से भी जाना जाता है। इसका कारण साफ है, क्योंकि इस दिन आसमान में हजारों पतंग उड़ती हुई नजर आती हैं।
हालांकि, इस मजेदार रिवाज के पीछे एक धार्मिक कहानी छिपी हुई है। तमिल में लिखी गई तन्नाना रामायण में कहा गया है कि इस पर्व पर पतंग उड़ाने की शुरुआत भगवान राम ने की थी।
उनके द्वारा उड़ाई गई पतंग इंद्रलोक तक जा पहुंची थी।
महत्त्व
क्या है इस रिवाज का धार्मिक महत्त्व?
पतंग उड़ाना बेहद मजेदार तो होता ही है, साथ ही इसका धार्मिक महत्त्व भी होता है। कहा जाता है कि मकर संक्रांति पर पतंग उड़ाने से लोग एक दूसरे को प्रेम का संकेत भेज सकते हैं।
इसकी वजह यह है कि पतंग को एकता, स्वतंत्रता, प्रेम और शुभता का प्रतीक माना जाता है।
इसके अलावा, सर्दी के दौरान पतंग उड़ाने से शरीर को धूप लगती है, जिससे विटामिन-D और अन्य पोषक तत्व भी मिल सकते हैं।
सावधानियां
पतंग उड़ाते समय बरतें ये सावधानियां
पतंग उड़ाते समय सावधानी बरतना जरूरी होता है, क्योंकि इस दौरान कई दुर्घनाएं भी हो सकती हैं। सबसे पहले हवा की स्थिति देखें और खुली जगह पर ही पतंग उड़ाएं।
इसके अलावा, चीनी मांझे से चोट लगने का खतरा रहता है, इसीलिए इसके बजाय सूती मांझे का इस्तेमाल करें।
छत पर पतंग उड़ाते समय रेलिंग के करीब न जाएं और बिजली के तारों पर भी पतंग को न फंसने दें। अगर, पतंग कहीं अटके तो उसे जोर से न खीचें।
त्योहार
मकर संक्रांति से जुड़े पौराणिक तथ्य
मकर संक्रांति के दिन गंगा स्नान करना चाहिए, क्योंकि इससे सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है।
इस पर्व पर दान-पुण्य करने का विशेष महत्त्व होता है, जिससे सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।
पौराणिक कथाओं के मुताबिक, महाभारत में भीष्म पितामह ने अर्जुन द्वारा तैयार की गई बाणों की शय्या पर अंतिम सांस लेने के लिए मकर संक्रांति की सुबह का इंतजार किया था, क्योंकि ऐसा कहा जाता है कि इस दिन स्वर्ग के द्वार खुले होते हैं।