उत्तराखंड में ग्रामीणों के साथ प्रवास करती हैं गौरैया, नए अध्ययन से हुआ खुलासा
भारतीय वन्यजीव संस्थान (WII) एक अध्ययन कर रहा है, जो उत्तराखंड की गौरैया और ग्रामीणों के बीच एक दिलचस्प संबंध का खुलासा करता है। उत्तराखंड वन विभाग द्वारा प्रायोजित इस शोध का उद्देश्य इस क्षेत्र में रहने वाली गौरैया की पारिस्थितिकी और जनसंख्या को समझना है। निष्कर्षों से पता चलता है कि ये पक्षी ग्रामीणों के साथ प्रवास करते हैं, जो सर्दियों के दौरान दक्षिण की ओर चले जाते हैं और गर्मियों में ऊंचाई वाले गांवों में लौट आते हैं।
शोधकर्ताओं ने गौरैयों के पैरों में बांधे थे छल्ले
अध्ययन के एक भाग में WII के शोधकर्ताओं ने व्यक्तिगत पहचान के लिए लगभग 200 गौरैयों के पैरों में छल्ले या बैंड पहनाए थे। WII के वैज्ञानिक आर सुरेश कुमार ने पुष्टि करते हुए कहा, "उत्तराखंड में गौरैया अद्वितीय हैं, क्योंकि वे 3,500 मीटर और उससे भी अधिक ऊंचाई पर पाई जाती हैं।" उन्होंने यह भी बताया कि ये गौरैया सर्दियों के महीनों के दौरान क्षेत्र छोड़ने वाले लोगों के साथ नीचे की ओर पलायन करती हैं।
शोधकर्ताओं ने भोटिया जनजाति वाले गावों में भी किया शोध
इस अध्ययन ने भोटिया जनजाति के सांस्कृतिक आख्यान को भी उजागर किया है, जो मलारी, नीती, गमसाली और द्रोणागिरी जैसे गांवों में रहते हैं। यहां के ग्रामीणों और गौरियों के बीच का यह अनोखा बंधन पर्यटकों के लिए एक विशिष्ट कहानी प्रस्तुत करता है। उत्तराखंड में इंसानों और गौरैया के बीच का यह रिश्ता इन गावों में रहने वाले समुदायों के सांस्कृतिक जीवन में एक नया आयाम भी जोड़ता है।
लोगों के साथ मिलकर रहती हैं गौरैया
लोगों के करीब रहने के लिए जानी जाने वाली घरेलू गौरैया का विकास जंगलों के बजाय इंसानों के साथ-साथ हुआ है। ऐसा अनुमान है कि उन्होंने पहली बार मनुष्यों के साथ लगभग 10,000 साल पहले बातचीत की थी। ये पक्षी कई वर्षों से बगीचों और इमारतों में लोगों के साथ शांति से रहते हैं। हालांकि, पिछले 20 सालों के दौरान दुनिया भर के लगभग हर शहर में इसकी संख्या में कमी आई है।
अध्ययन के दौरान उत्तराखंड में चलाया जा रहा है संरक्षण जागरूकता अभियान
अध्ययन में स्थानीय निवासियों के बीच संरक्षण जागरूकता अभियान भी शामिल है। पुरोला, रुद्रपुर और हरिद्वार सहित विभिन्न स्थानों में नेस्ट बॉक्स वितरित किए गए हैं। WII में पीएचडी स्कॉलर, रेनू बाला ने घोंसले के लिए पर्याप्त जगह उपलब्ध कराने के महत्व पर जोर दिया। भविष्य में WII की एक टीम नेलांग, उत्तरकाशी और अन्य ऊंचाई वाले गांवों में घरेलू गौरैया का सर्वेक्षण करेगी, ताकि ठंडी जलवायु और भोजन की आदतों के प्रति उनके अनुकूलन को समझा जा सके।