कोरोना वायरस: फाइजर और मोडर्ना की वैक्सीनों में क्या समानताएं और अंतर हैं?

वैज्ञानिकों की एक साल की अथक मेहनत अब रंग लाने लगी है और कोरोना वायरस की संभावित वैक्सीनों के ट्रायल्स के नतीजे आने लगे हैं। अब तक दो कंपनियों- फाइजर और मोडर्ना- की संभावित वैक्सीनों के अंतिम चरण के ट्रायल्स के अंतरिम नतीजे आ चुके हैं और दोनों को ही बेहद प्रभावी पाया गया है। आइए जानते हैं कि इन दोनों कंपनियों की वैक्सीनों में क्या समानताएं और क्या अंतर हैं और भारत के लिए कौन सी बेहतर है?
सबसे पहले बात समानताओं की। फाइजर और मोडर्ना की वैक्सीनों में सबसे बड़ी समानता इनकी तकनीक है और दोनों ही वैक्सीनों को बेहद नई mRNA तकनीक के जरिए बनाया गया है। इन तकनीक में वायरस के जिनोम का प्रयोग कर कृत्रिम RNA बनाया जाता है जो सेल्स में जाकर उन्हें कोरोना वायरस की स्पाइक प्रोटीन बनाने का निर्देश देता है। इन स्पाइक प्रोटीन की पहचान कर सेल्स कोरोना की एंटीबॉडीज बनाने लग जाती हैं।
मोडर्ना और फाइजर की वैक्सीनों की खुराकों में भी समानता है और दो खुराक दिए जाने के बाद ही ये कोरोना वायरस के खिलाफ इम्युनिटी पैदा करती हैं। दोनों ही कंपनियां अमेरिकी हैं और इसे भी इनके बीच एक समानता माना जा सकता है।
अब बात अंतरों की। फाइजर और मोडर्ना की वैक्सीनों में सबसे बड़ा अंतर स्टोरेज से संबंधित है। जहां फाइजर की वैक्सीन को डीप फ्रीज यानि माइनस 94 डिग्री फारेनहाइट (माइनस 70 डिग्री सेल्सिलस) पर स्टोर करने रखना जरूरी है और सामान्य फ्रीजर में ये मात्र पांच दिन तक स्थिर रह सकती है। वहीं मोडर्ना की वैक्सीन 36 डिग्री फारेनहाइट से लेकर 46 डिग्री फारेनहाइट (2 डिग्री सेल्सिलस से 7.78 डिग्री सेल्सिलस) के तापमान पर एक महीने स्थिर रह सकती है।
फाइजर और मोडर्ना की वैक्सीनों की दो खुराकों के बीच अंतराल भी अलग-अलग है। जहां फाइजर की वैक्सीन की दो खुराकों को तीन हफ्ते के अंतराल पर दिया जाता है, वहीं मोडर्ना की वैक्सीन की दो खुराकों के बीच चार हफ्ते का समय होना जरूरी है। इसी अंतराल का ही असर था कि एक साथ ट्रायल शुरू करने के बावजूद फाइजर ने मोडर्ना से पहले अपने अंतरिम नतीजे जारी कर दिए।
मोडर्ना और फाइजर की वैक्सीनों की फंडिंग में भी अंतर है। जहां मोडर्ना को कोरोना वैक्सीन के विकास और वितरण के लिए चलाए गए अमेरिकी सरकार के 'ऑपरेशन वार्प स्पीड' के तहत लगभग एक अरब डॉलर की फंडिंग मिली है, वहीं फाइजर इस ऑपरेशन से दूर रही है और उसने वैक्सीन खरीद के सौदों के जरिए फंडिंग इकट्ठा की है। अमेरिकी सरकार से भी उसने 1.95 अरब डॉलर में 10 करोड़ खुराकें प्रदान करने का समझौता किया है।
मोडर्ना और फाइजर की वैक्सीनों में एक छोटा सा अंतर इनकी प्रभावशीलता को लेकर है। जहां फाइजर की वैक्सीन कोरोना वायरस का संक्रमण रोकने में 90 प्रतिशत प्रभावी पाई गई है, वहीं मोडर्ना की वैक्सीन इससे थोड़ी अधिक 94.5 प्रतिशत प्रभावी है।
चूंकि फाइजर और मोडर्ना दोनों की शुरूआती खुराकें अमेरिका और यूरोपीय देशों को जानी हैं, इसलिए भारत के लिए निजी तौर पर उनका बहुत ज्यादा महत्व नहीं है। संभावनाओं के आधार पर भी बात करें तो भारत में डीप फ्रीजर की व्यवस्था नहीं है और इसलिए फाइजर की वैक्सीन का भारत में उपयोग लगभग नामुमकिन है। वहीं मोडर्ना सामान्य फ्रीजर में भी स्थिर रह सकती है और जरूरत पड़ने पर इसका भारत में उपयोग किया जा सकता है।