चिकनकारी का हर धागा कहता है लखनऊ की नवाबी कहानी, जानिए इस कला का इतिहास
क्या है खबर?
लखनऊ का नाम सुनते ही सभी के मन में 2 ख्याल आते हैं, एक अच्छा खाना और दूसरा चिकनकारी की अद्भुत कला।
चिकनकारी न सिर्फ एक खूबसूरत कढ़ाई है, बल्कि यह धागों से बुनी गई एक पूरी विरासत है। चिकन के हर कुर्ते और साड़ी में लखनऊ की तहजीब, इतिहास और नवाबी अंदाज की झलक देखने को मिलती है।
यह कला महज रोजगार का जरिया नहीं है, बल्कि हर एक कलाकार की भावनाओं को समेटता हुआ एक शौक भी है।
मतलब
पहले जानिए क्या होती है चिकनकारी की कला
चिकनकारी एक पारंपरिक कढ़ाई है, जो नवाबों के शहर लखनऊ की पहचान है। इसे आज भी नाजुक और मेहनती हाथों के जरिए किया जाता है, जो इसे और भी खास बनाते हैं।
इस कला में सूती या जॉर्जेट जैसे कपड़ों पर फूलों वाला पैटर्न सिला जाता हैं। इसमें हल्के रंग के कपड़ों पर सूती धागे के जरिए कढ़ाई की जाती हैं।
अब यह कढ़ाई केवल कुर्तियों, साड़ियों और सूट में ही नहीं, बल्कि लहंगों तक में की जानें लगी है।
इतिहास
लखनऊ तक कैसे आई यह शानदार कला?
माना जाता है कि चिकनकारी की कला भारत में तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में आई थी। हालांकि, यह लखनऊ शहर में मुगल काल के दौरान मशहूर हुई थी।
जानकारों की मानें तो मुगल सम्राट जहांगीर की पत्नी महारानी नूरजहां फारसी कढ़ाई तकनीकों से प्रेरित हुई थीं और इस शिल्प कला को भारत लेकर आईं थीं।
समय के साथ, यह एक अलग शैली के रूप में विकसित हुई, जो लखनऊ का पर्याय बन गई।
तरीका
कैसे तैयार होते हैं खूबसूरत चिकनकारी कपड़े?
चिकनकारी हाथों से की जाने वाली कढ़ाई है, जिसमें कुशल कारीगर कपड़े पर डिजाइन बनाते हैं। इसकी शुरुआत ब्लॉक पेंटिंग का सहारा लेकर डिजाइन को कपड़े पर छापने से होती है।
इसके बाद एक-एक धागे को सावधानीपूर्वक कपड़े में पिरोया जाता है और कढ़ाई को अंजाम दिया जाता है। चिकनकारी में कई तरह की कढ़ाई शामिल होती हैं, जैसे कि बखिया, फंदा, मुर्री और जाली।
ज्यादातर कपड़ों को सफेद ही सिला जाता है, जो अलग-अलग रंगों में डाई होते हैं।
कारीगर
कारीगरों के हाथों का जादू लोगों को बनाता है अपना मुरीद
चिकनकारी इसे करने वाले कारीगरों के लिए जीवन जीने का एक तरीका है, जो आज भी इस परंपरा को जीवित रखते हैं।
चिकन का हर एक कपड़ा समर्पण, रचनात्मकता और सांस्कृतिक गौरव की कहानी कहता है। इस कला को करने वाले ज्यादातर कारीगर महिलाएं ही हैं, जो इस कला से प्रेम करती हैं।
ये न केवल लखनऊ, बल्कि उसके आस-पास के जिलों से भी आती हैं। कई महिलाएं अपने घरों से ही इस कारीगरी को करती हैं।
पहचान
कैसे करें नकली ओर असली चिकनकारी के बीच अंतर?
जब से चिकनकारी कला का व्यवसायीकरण हुआ है तब से लोग इसे मशीन से भी करने लगे हैं। मशीन से बनने वाले चिकन के कपड़ों की पहचान करना आसान होता है।
असली चिकनकारी के पैटर्न बेहद समान नहीं होते, बल्कि वे कुछ हद तक अलग हो सकते हैं। वहीं, मशीन से की गई चिकनकारी हमेशा एक समान होती है।
इसके अलावा, असली चिकनकारी कपड़ों के पीछे कई सारे धागे निकले रहते हैं, जो हाथ के काम का सबूत देते हैं।