कब है हरियाली तीज? जानिए यह त्योहार कजरी और हरतालिका तीज से कैसे है अलग
क्या है खबर?
साल में 3 तीज आती है, जिसमें सबसे पहले हरियाली तीज, फिर कजरी तीज और आखिर में हरतालिका तीज का त्योहार मनाया जाता है।
भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित इन तीनों तीज को पूरे देश में बहुत धूमधाम से मनाया जाता है।
इन तीज पर सुहागन महिलाएं आनंद और सुखी वैवाहिक जीवन की प्रार्थना करने के लिए शिव-पार्वती की पूजा करती हैं।
आइए इन तीनों तीज के बारे में विस्तार से जानते हैं।
पहली तीज
हरियाली तीज की तिथि और महत्व
हरियाली तीज सावन के महीने में शुक्ल पक्ष के तीसरे दिन आता है। इस साल यह 07 अगस्त को है।
पौराणिक कथा के अनुसार, इसी दिन माता पार्वती को 107 जन्मों तक तपस्या करने के बाद भगवान शिव ने अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया था।
इस अवसर पर राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड में सुहागन हिंदू महिलाएं दिनभर निर्जला व्रत रखकर और अपने पतियों की लंबी आयु के लिए प्रार्थना करके हरियाली तीज मनाती हैं।
दूसरी तीज
हरियाली तीज से 15 दिन बाद आती है कजरी तीज
कजरी तीज को कजली तीज या बूढ़ी तीज के नाम से भी जाना जाता है और यह त्योहार भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को आता है। इस साल यह 22 अगस्त को है।
इस त्योहार को राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और बिहार में सुहागन महिलाओं द्वारा मनाया जाता है।
इस अवसर पर विवाहित महिलाएं अपने जीवनसाथी की समृद्धि और लंबी उम्र के लिए दिनभर का उपवास रखती हैं।
तीसरी तीज
हरियाली तीज से अलग है हरतालिका तीज
हरियाली और हरतालिका तीज में काफी अंतर है।
जहां हरियाली तीज भगवान शिव और माता पार्वती के मिलन के उपलक्ष्य में मनाई जाती है।
वहीं हरतालिका तीज मनाने का कारण यह है कि माता पार्वती की सहेलियां उनका अपहरण करके गहरे जंगलों में ले गईं क्योंकि उनके पिता भगवान विष्णु से विवाह करवाना चाहते थे। ऐसे में मां पार्वती ने जंगल में तपस्या जारी रखी और भगवान शिव से विवाह किया।
इस साल हरतालिका तीज 06 सितंबर को है।
तरीके
तीनों तीज को मनाने के तरीके
हरियाली और हरतालिका तीज के मौके पर हिंदू महिलाएं भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा करती हैं। इन त्योहारों पर सुहागन महिलाओं का अपने हाथों पर मेहंदी लगाना, हरे या लाल रंग के कपड़े पहनना, श्रृंगार करना और हरे रंग की चूड़ियां पहनना शुभ माना जाता है।
कजरी तीज पर सुहागिन महिलाएं माता पार्वती को श्रृंगार की 16 वस्तुएं भी अर्पित करती हैं और भगवान शिव को उनकी प्रिय चीजें चढ़ाकर शिव-गौरी के विवाह की कथा सुनती हैं।