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    वायरसों के नाम क्यों बदल रहे हैं वैज्ञानिक?

    वायरसों के नाम क्यों बदल रहे हैं वैज्ञानिक?

    लेखन अंजली
    Jul 09, 2024
    10:40 pm

    क्या है खबर?

    क्या आपको पता है कि डेंगू वायरस का वैज्ञानिक नाम बदल चुका है?

    जी हां, वायरस के वर्गीकरण पर अंतरराष्ट्रीय समिति (ICTV) ने 2022 में डेंगू वायरस का नाम बदलकर ऑर्थोफ्लेविवायरस डेंगुई (Orthoflavivirus denguei) कर दिया था।

    ये एक ऐसे अभियान के तहत किया गया था, जिसमें वैज्ञानिक वायरसों का नामकरण व्यवस्थित करने की कोशिश कर रहे हैं।

    ये अभियान क्या है और वैज्ञानिक ऐसा क्यों कर रहे हैं, आइए इसके बारे में विस्तार से बताते हैं।

    नामकरण

    अब तक कैसे रखा जाता रहा है वायरसों का नाम?

    मानव सभ्यता की शुरुआत से अब तक वायरसों का नाम अक्सर ऐसे स्थानों या जानवरों के नाम पर रखा जाता है, जहां वे पहली बार पाए गए। उदाहरण के तौर पर- स्पेनिश फ्लू, बर्ड (पक्षी) फ्लू या स्वाइन (सुअर) फ्लू।

    इसके अलावा बड़े पैमाने पर वायरसों का नामकरण इनके लक्षणों के आधार पर भी किया जाता रहा है। इनमें डेंगू, येलो फीवर और चिकनगुनिया आदि शामिल हैं।

    जरूरत

    वैज्ञानिकों को क्यों पड़ी नामकरण की नई व्यवस्था बनाने की जरूरत?

    पिछले कुछ समय में विज्ञान ने इतनी प्रगति की है कि आए दिन नए-नए वायरस मिल रहे हैं। 5 साल पहले जहां वायरसों की लगभग 800 ज्ञात प्रजातियां थीं, वहीं अब ये आंकड़ा 14,690 पहुंच गया है।

    इसके अलावा भी लाखों ऐसे वायरस हैं, जिनकी पहचान नहीं हो पाई है। उदाहरण के तौर पर, माना जाता है कि स्तनधारियों में ही लगभग 3.20 लाख वायरस होते हैं।

    ऐसे में इन सभी का पारंपरिक तरीकों से नामकरण पर बहुत अव्यवस्था होगी।

    अन्य कारण

    नामकरण की नई व्यवस्था के और क्या कारण?

    अन्य कारण की बात करें तो कई बीमारियों के एक जैसे लक्षण होते हैं, लेकिन उन्हें पैदा करने वाले वायरस बेहद अलग-अलग होते हैं। इससे संशय पैदा होता है।

    जानवरों पर नामकरण भी संशय पैदा करने वाला है। मंकीपॉक्स मूल तौर पर मूषकों में पाया जाने वाला वायरस है, लेकिन नाम से ऐसा लगता है कि ये बंदरों में पाया जाता है।

    वैज्ञानिकों का मानना है कि अगर नामकरण व्यवस्थित होगा तो इससे दुनियाभर के वैज्ञानिकों में बेहतर समन्वय होगा।

    नया नामकरण

    नामकरण की नई व्यवस्था क्या है?

    नामकरण की नई व्यवस्था में 2 स्तर पर वर्गीकरण है।

    पहला, वायरसों को उनकी जेनेटिक बनावट के आधार पर बांटा जाता है। इसमें कुल 7 श्रेणियां हैं, जो DNA और RNA पर आधारित हैं।

    हालांकि, ये श्रेणियां अपने आप में बहुत बड़ी हैं और इनमें मौजूद वायरस एक-दूसरे से बिल्कुल अलग भी हो सकते हैं।

    इसी कारण दूसरे स्तर के वर्गीकरण में वायरसों को वंश और प्रजाति के आधार पर रियल्म्स, ऑर्डर्स और फैमिलीज में बांटा गया है।

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