
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का नया बयान, बोले- लोकतंत्र में निर्वाचित प्रतिनिधि सबसे ऊपर, संसद सर्वोच्च
क्या है खबर?
न्यायपालिका और कार्यपालिका के अधिकारों पर छिड़ी बहस के बीच उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का नया बयान सामने आया है।
अब उन्होंने कहा है कि लोकतंत्र में निर्वाचित प्रतिनिधि ही अंतिम स्वामी होते हैं और संसद से ऊपर कोई प्राधिकारी नहीं है।
धनखड़ ने दिल्ली विश्वविद्यालय संविधान के 75 वर्ष लागू होने के उपलक्ष्य पर आयोजित कार्यक्रम 'कर्तव्यम' को संबोधित करते हुए ये बातें कहीं।
इस दौरान उन्होंने आपातकाल का भी जिक्र किया।
बयान
उपराष्ट्रपति बोले- संसद सर्वोच्च
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा, "चुनावों के माध्यम से जनप्रतिनिधियों को कई बार गंभीर रूप से जवाबदेह ठहराया जाता है। आपातकाल लगाने वाले प्रधानमंत्री को जवाबदेह ठहराया गया। लोकतंत्र लोगों के लिए है और यह सुरक्षा का भंडार है, यह चुने हुए प्रतिनिधियों की सुरक्षा है।निर्वाचित प्रतिनिधि ही इस बात के अंतिम स्वामी हैं कि संवैधानिक विषय क्या होगा। संविधान में संसद से ऊपर किसी प्राधिकारी की कल्पना नहीं की गई है। संसद सर्वोच्च है।"
आपातकाल
धनखड़ ने आपातकाल को लेकर क्या कहा?
धनखड़ ने आगे कहा, "हम संविधान दिवस और संविधान हत्या दिवस क्यों मनाते हैं? क्योंकि 1949 में संविधान को अपनाया गया था और उस संविधान को 1975 में 'नष्ट' कर दिया गया था। आपातकाल लोकतांत्रिक दुनिया के मानव इतिहास का सबसे काला दौर था। मैं सबसे काला इसलिए कहता हूँ क्योंकि देश की सबसे बड़ी अदालत ने 9 उच्च न्यायालयों के फैसले को नजरअंदाज करते हुए यह फैसला सुनाया था।"
सुप्रीम कोर्ट
धनखड़ ने सुप्रीम कोर्ट पर फिर उठाए सवाल
धनखड़ ने फिर सुप्रीम कोर्ट पर सवाल उठाए।
उन्होंने कहा, "एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रस्तावना संविधान का हिस्सा नहीं है, लेकिन दूसरे मामले में उसने कहा कि यह संविधान का हिस्सा है। संवैधानिक पद औपचारिक या सजावटी हो सकते हैं। मेरे अनुसार, एक नागरिक सर्वोच्च है। हर किसी की भूमिका होती है। लोकतंत्र अभिव्यक्ति और संवाद से ही पनपता है। अगर अभिव्यक्ति के अधिकार का गला घोंटा जाता है तो लोकतंत्र खत्म हो जाता है।"
विवाद
पहले धनखड़ ने कहा था- कोर्ट राष्ट्रपति को आदेश नहीं दे सकती
इससे पहले धनखड़ ने न्यायपालिका पर सवाल खड़े करते हुए कहा था कि कोर्ट राष्ट्रपति को आदेश नहीं दे सकते।
उन्होंने कहा, "भारत में ऐसे लोकतंत्र की कल्पना नहीं की थी, जहां न्यायाधीश कानून बनाएंगे, कार्यकारी जिम्मेदारी निभाएंगे और 'सुपर संसद' के रूप में काम करेंगे।"
धनखड़ की ये टिप्पणी सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले के बाद आई है, जिसमें कोर्ट ने राष्ट्रपति से लंबित विधेयक पर फैसला लेने की समयसीमा निर्धारित की थी।