इस वजह से ख़ुद ही बिजली बनाने लगी पंचायत, अब बेचकर कमा रही 19 लाख रुपये
कुछ कहानियाँ समाज में बदलाव लाने के साथ ही लाखों लोगों को प्रेरित भी करती हैं। कोयम्बटूर से 40 किलोमीटर दूर स्थित ओड़नथुरई पंचायत के आत्मनिर्भर बनने की कहानी भी ऐसी ही है, जिससे पूरे देश को प्रेरणा मिली। यहाँ के सभी गाँव कई मामलों में दूसरे गाँवों से काफ़ी आगे हैं। दरअसल, एक बार 50 हज़ार का बिल देखकर पंचायत ने ख़ुद ही बिजली बनाने का फ़ैसला किया और आज उसे बेचकर सालाना 19 लाख रुपये कमाती है।
सालाना होती है 19 लाख रुपये की कमाई
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि पंचायत के 11 गाँवों में सभी घर पक्के हैं और छत पर सोलर पैनल लगे हैं। गाँव में कंकरीट की सड़कें हैं और हर 100 मीटर पर पीने के पानी की व्यवस्था के साथ हर घर में शौचालय है। ओड़नथुरई पंचायत न केवल अपनी ज़रूरत के लिए ख़ुद ही बिजली बनाती है, बल्कि उसे तमिलनाडु इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड को बेचती भी है। इससे पंचायत को सालाना 19 लाख रुपये की कमाई होती है।
23 साल पहले शुरू हुई थी पंचायत के बदलाव की कहानी
बता दें कि ऐसा करने वाली यह देश की इकलौती पंचायत है। यहाँ के सभी घरों में बिजली मुफ़्त है। पंचायत की इसी ख़ूबी की वजह से विश्व बैंक के विशेषज्ञ, देशभर के सरकारी अधिकारी और 43 देशों के छात्र यहाँ के गाँवों को देखने आ चुके हैं। पंचायत के बदलाव की कहानी आज से 23 साल पहले शुरू हुई थी। उस समय गाँव में छोटी-छोटी झोपड़ियाँ थीं और गाँव गरीबी और असुविधाओं की समस्या का सामना कर रहा था।
ग्राम प्रमुख आर षणमुगम बने बदलाव के जनक
ग्राम प्रमुख रहे आर षणमुगम 1996 में इस बदलाव के जनक बने। वे बताते हैं, "उस समय हर महीने पंचायत का बिजली बिल 2,000 रुपये आता था। अगले एक साल में पंचायत में कुएँ बनवाए गए, स्ट्रीट लाइट लगवाई गई, जिसकी वजह से बिजली बिल बढ़कर 50 हज़ार रुपये पहुँच गया।" उन्होंने आगे बताया, "इसकी वजह से चिंता बढ़ गई। इसी बीच पता चला कि बायोगैस प्लांट से बिजली बन सकती है। उसके बाद हमने बड़ौदा जाकर इसकी ट्रेनिंग ली।"
बैंक से लोन लेकर लगवाई पवनचक्की
2003 में पहला गैस प्लांट लगवाया गया। इसके बाद बिजली बिल आधा हो गया। इसके कुछ समय बाद दो गाँवों में सौर ऊर्जा से चलने वाली स्ट्रीट लाइट्स लगवाई गई। 2006 में षणमुगम को पवनचक्की लगाने का विचार आया, लेकिन पंचायत के पास केवल 40 लाख रुपये रिज़र्व फ़ंड था, जबकि पवनचक्की की टरबाइन 1.55 करोड़ की थी। तब षणमुगम ने पंचायत के नाम पर बैंक से लोन लिया और पंचायत से 110 किलोमीटर दूर 350 किलोवॉट की पवनचक्की लगवाई।
सालाना सात लाख यूनिट बनती है बिजली
इसके बाद बिजली के लिए पूरा गाँव आत्मनिर्भर हो गया। हालाँकि, तब भी 10 गाँवों के लोग सरकारी बिजली पर निर्भर थे। इसके बाद षणमुगम ने एकीकृत सौर ऊर्जा प्रणाली अपनाई। इसके तहत हर घर की छत पर सोलर पैनल लगवाए गए। इसके बाद घरों में दिन में बिजली सोलर पैनल से और रात में पवनचक्की से मिलने लगी। बैंक से लिया गया सारा लोन भी सात साल में चुका दिया गया। अब सालाना सात लाख यूनिट बिजली बनती है।
तमिलनाडु इलेक्ट्रिसिटी को बेच दी जाती है बची हुई बिजली
जानकारी के अनुसार, गाँव की ज़रूरत 4.5 लाख यूनिट बिजली से ही पूरी हो जाती है। बची हुई 2.5 लाख यूनिट बिजली को तीन रुपये प्रति यूनिट के हिसाब से तमिलनाडु इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड को बेच दिया जाता है।
अब खुल गए हैं गाँव के विकास के कई और रास्ते
बता दें कि बिजली के मामले में आत्मनिर्भर होने के बाद से गाँव के विकास के और भी रास्ते खुल गए हैं। आज पंचायत बिजली बिक्री से लगभग 19 लाख रुपये सालाना कमाती है। इस राशि को सभी 11 गाँवों के विकास में ख़र्च किया जाता है। राज्य सरकार की सोलर पावर्ड ग्रीन हाउस स्कीम के तहत 950 घर बनवाए गए हैं। ढाई-ढाई लाख रुपये की लागत से बने हुए ये घर 300 वर्ग फ़ीट क्षेत्र में बने हुए हैं।