कौन हैं तबलीगी जमात के प्रमुख मौलाना साद कंधालवी?
इस्लामिक समूह तबलीगी जमात द्वारा 13 से 15 मार्च के बीच आयोजित किए गए एक धार्मिक कार्यक्रम ने अधिकारियों की रातों की नींद हराम कर दी है। यह मस्जिद देश में सबसे ज्यादा कोरोना संक्रमण फैलाने वाला केंद्र बन गई है। संभवतः समारोह में शामिल होने के बाद संक्रमित लोगों ने कम्यूनिटी ट्रांसमिशन की परवाह किए बिना ही लंबी यात्रा की है। उस दौरान जमात का प्रमुख मौलाना साद कंधालवी फरार हो गया। आइए जानते उसके बारे में सब कुछ।
दिल्ली पुलिस ने दर्ज किया साद के खिलाफ मामला
बता दें कि कोरोना वायरस के बढ़ते खौफ के बीच धारा-144 लगने के बावजूद राजधानी में भीड़ जुटाने पर मौलाना साद के खिलाफ दिल्ली पुलिस ने महामारी अधिनियम 1897 के साथ ही भारतीय दंड संहिता की कई धाराओं के तहत मामला दर्ज किया है।
जमात के संस्थापक के पड़पोते हैं मौलाना साद
मौलाना साद का जन्म 10 मई, 1965 को पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कांधला शहर में हुआ था। उनके परदादा मुहम्मद इलियास ने 1927 में जमात की स्थापना की थी। जमात एक बड़े अपारंपरिक संगठन के रुप में पैगंबर मोहम्मद की तरह इस्लाम के सिद्धांतों को बढ़ावा देता है। इसमें कलिमा (विश्वास की घोषणा), सलात (पांच बार की नमाज), इल्म-ओ-ज़िक्र (ज्ञान), इक़ाम-ए-मुस्लिम (मुस्लिम का सम्मान), इखलास-ए-नियात (नियत में ईमानदारी) और तफ्रीघ-ए-वक़्त (माफी का समय) आदि शामिल हैं।
पिता से शिक्षा प्राप्त करने के बाद मौलाना साद ने किया था देवबंद का रुख
मौलाना साद अपने पिता मोहम्मद हारून से प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद देवबंद चले गए। वहां उन्होंने दारुल उलूम से शिक्षा प्राप्त की। उसके बाद उन्होंने दिल्ली में अपनी शिक्षा जारी रखी। साद 1995 और 2015 के बीच संस्था की केंद्रीय सलाहकार परिषद शूरा के प्रमुख बने रहे। 16 नवंबर, 2015 को वो तबलीगी जमात के प्रमुख बन गए, लेकिन उनकी नियुक्ति विवादों में रही थीं।
साद ने खुद को जमात का प्रमुख नियुक्त कर अन्य लोगों को अपने साथ मिलाया
रिपोर्ट्स की मानी जाएं तो शूरा द्वारा ही जमात के प्रमुख की नियुक्ति की जाती है और यह जीवनभर के लिए होती है। हालांकि साद के मामले में ऐसा नहीं था। वो नए शूरा की नियुक्ति से खुश नहीं थे और उन्होंने अन्य सदस्यों को मिलाकर खुद के जमात का प्रमुख होने की घोषणा कर दी। जून, 2016 में मौलाना साद और मोहम्मद जुहैरुल हसन के नेतृत्व वाले जमात के दूसरे गुट के बीच हिंसक झड़प हो गई थी।
साद ने बुजुर्ग और विद्वानों का किया था अपमान
शामली के मौलाना इदरीस ने IANS को बताया कि साद ने बुजुर्गों, विद्वानों और शूरा के सदस्यों का घोर अपमान किया था। अमीर (प्रमुख) की नियुक्ति शूरा की सलाह पर की जाती है, लेनिक साद ने सर्वोच्च परिषद का कोई भी आदेश नहीं माना।
साद से खुश नहीं है जमात के सभी लोग
साद के संगठन का नेतृत्व संभालने के बाद से ही तबलीगी जमात विवादों में रही है। दारुल उलूम देवबंद भी पिछले तीन साल से मौलाना साद से नाराज है और उसने कुरान की गलत व्याख्या के आरोप में साद के खिलाफ फतवा तक जारी किया था। हालांकि उनके परिवार की माने तो साद के पास लोगों का समर्थन है। उसके रिश्तेदार मौलाना बदरूल हसन ने कहा कि उनके गृह क्षेत्र में साद के कार्यक्रमों में लोगों की भीड़ उमड़ती है।
रिश्तेदारों ने किया साद द्वारा सरकार का सम्मान करने का दावा
साद के रिश्तेदार हसन ने कहा कि उनके परिवार को 14वीं शताब्दी के शासक मुहम्मद बिन तुगलक से जमीन का एक टुकड़ा मिला था और साद भगौड़ा नहीं है। उन्होंने कहा कि साद ने हमेशा सरकार का सम्मान किया और उनके आदेशों की पालना की है। यही कारण है कि पूर्व में उनके खिलाफ दर्ज हुए किसी मामले की कॉपी नहीं मिली है। साद दिल्ली में निजामुद्दीन बस्ती में रहते हैं और उनके तीन बेटे और एक बेटी है।